श्री रामजन्मभूमि आंदोलन में अनगिनत कारसेवकों के समर्पण को सम्मान देते हुए, इंदौर में श्री अहिल्योत्सव समिति ने देवी अहिल्या राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया। असंख्य कारसेवकों की ओर से यह पुरस्कार श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महामंत्री श्री चंपतरायजी ने स्वीकार किया।
इस अवसर पर पूर्व केंद्रीय मंत्री सुमित्रा ताई महाजन ने अहिल्योत्सव समिति में अपने संस्मरणों को साझा किया।
पश्चात परम पूजनीय सरसंघचालक मोहनजी भागवत ने श्री चंपतराय जी को पुरस्कार और प्रशस्तिपत्र भेंट किया।
अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए श्री चंपतरायजी ने जन्मभूमि आंदोलन के ज्ञात-अज्ञात कारसेवकों का स्मरण किया। उन्होंने बताय कि जन्मभूमि की मुक्ति के लिए लिए 75 युद्ध लड़े गए थे। यह पुरस्कार इन लड़ाइयों के अनेकों योद्धाओं को समर्पित करते हुए उन्हें नमन किया।
उन्होंने बताया कि कैसे साधु संतों को अभियान से जोड़ा गया। रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ प्रारंभ कर संपूर्ण समाज को जागृत किया गया।
श्रद्धेय अशोक सिंघल को याद करते हुए उन्होंने कहा कि वे संकल्प के धनी और आत्मोत्सर्ग के लिए तत्पर रहते थे। उनकी प्रेरणा से कई कारसेवकों ने अपने प्राण दिए है। श्री चंपतरायजी ने यह पुरस्कार ऐसी सभी विभूतियों को समर्पित किया।
श्री चंपतराय जी ने जन्मभूमि का केस लड़ने वाले अधिवक्ता श्री पाराशर जी का उल्लेख किया जिन्होंने सदा नंगे पैरों से ही मामले की पैरवी की।
उन्होंने कहा कि जन्मभूमि पर खड़ा मंदिर रामजी का तो है ही, बल्कि हिन्दुस्तान की मूंछ का गौरव भी है। ।
श्री चंपतराय जी के उद्बोधन के पश्चात पूजनीय सरसंघचालक जी का पाथेय प्राप्त हुआ।
अपने प्रेरक वक्तव्य में उन्होंने कहा कि जिस वैकुंठ द्वादशी को भगवान श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा हुई, उसे हमने प्रतिष्ठा द्वादशी के रूप में मानना चाहिए।
राम, कृष्ण और शिव भारत के स्व को प्रकट करते है। श्री राम भारत को उत्तर से दक्षिण तक जोड़ते हैं। श्री कृष्ण पूर्व से पश्चिम को जोड़ते है, शिव यहां के कण कण में स्थित है। यही भारत की अपनी प्रकृति का “स्व” है।
ऊपरी उपचार और व्यवहारों का परिवर्तन इस “स्व” को बदल नहीं सकता। सभी भारतवासियों में यह अनिवार्य तत्व है।
श्री राम मंदिर आंदोलन भारत के इसी “स्व” के जागरण का उपक्रम था।
भारत की उन्नति का मार्ग भी राम मंदिर से ही जाता है।
अहिल्या माता का शासनकाल रामराज्य की तरह ही था। अयोध्या में श्री राम मंदिर बना, अब जन-जन के मन में बनना चाहिए। यही भाव राष्ट्र निर्माण की राह प्रशस्त करेगा।