श्रीराम जन्‍मभूमि मंदिर का निर्माण : एक नये युग के सूत्रपात का समय – रवि प्रकाश

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आत्मग्लानि से आत्मविश्वास की ओर जाने वाली एक अद्भुत गौरव यात्रा की तरफ हम अपने पग बढ़ा चुके हैं. अतीत की विवेचना से बाहर आने का समय आ चुका है. अब समय आया है राम मंदिर निर्माण कार्य के साथ-साथ राम राज्‍य की स्‍थापना का. रामराज्‍य से तात्‍पर्य राजा रामचंद्र के राज्‍याभिषेक से नहीं है. हम राम राज्‍य की जिन बातों को अपने धार्मिक ग्रंथों में पढ़ते आए हैं अब उसे साकार करने का समय आ गया है. अब समय आ गया है एक नये भारत के अभ्‍युदय का.  वर्तमान सामाजिक आर्थिक परिदृश्‍य ने भी हमें यह अवसर उपलब्‍ध करा दिया है कि हम नव निर्माण की प्रक्रिया की शुरूआत कर सकते हैं. अब तक रामराज्‍य की चर्चा रूपक के रूप में होती रही है. गांधी जी भी रूपक में रामराज्‍य का उल्‍लेख करते रहे हैं. जब भी रामराज्‍य का जिक्र रूपक के रूप में होता रहा है वहां इसका तात्‍पर्य एक ऐसे राज्‍य से है, जिसमें  सहानुभूति, समावेश, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के साथ-साथ लोकतांत्रिक मूल्‍यों को सुदृढ़ करना है. आदर्श शासन प्रणाली की पहल की शुरूआत राष्‍ट्रीय स्‍तर से हो और नागरिकों के जीवनशैली पर अंतहीन गुणवत्ता वाले प्रभाव दिखाई दें.   रामराज्‍य शब्‍द का प्रयोग अब तक जिस रूपक के रूप में किया जाता रहा है अब उसे साकार करने की दिशा में आगे बढ़ जाना चाहिए. समय के साथ-साथ रूपक के मानदंड भी बदलने होंगे. आधुनिकता और मशीनीकरण का समावेश आवश्‍यक होगा. दशरथ के अयोघ्‍या में भी मूल स्‍वरूप में बदलाव किये बिना भी समय के साथ बदलाव सापेक्षित है. पुराणों में जिस रामराज्‍य की चर्चा की गई है,  उसमें संताप मुक्‍त समाज की बात कही गई है. एक ऐसा समाज जिसमें न कोई भूखा होगा और न ही कोई नंगा होगा. संपन्‍नता और सुसंस्‍कृत जीवन का मेल होगा. धरा पर रहने वाला प्रत्‍येक प्राणी स्‍वस्‍थ होगा. रामराज्य में प्रकृति और पर्यावरण की स्थिति प्रकृति केन्द्रिक विकास की ओर इशारा करती है. उस समय जल की कोई समस्‍या नहीं थी. नागरिकों के लिए शुद्ध हवा उपलब्‍ध था. बरसात भी समय पर होती थी. कठिन नहीं है इस लक्ष्‍य को पाना. एकात्‍मता, एकरसता और संपन्‍नता से इस लक्ष्‍य को प्राप्‍त किया जा सकता है. हमारे समाज की स्थिति जब तक ऐसी नहीं होगी तब तक रामराज्‍य साकार नहीं हो सकेगा. समाज और सरकार के लक्ष्‍य को एकात्‍म होना पड़ेगा. स्‍वाभिमान और आध्‍यात्मिक लक्ष्‍य के प्रति अनुराग जरूरी होगा. श्रेष्‍ठजनों को अपने आचार, विचार और व्‍यवहार में परिचर्तन लाना होगा. क्‍योंकि सामान्‍य जन श्रेष्‍ठ जनों का ही अनुकरण करते हैं. इस सत्‍य को झुठलाया नहीं जा सकता है. जिस दिन श्रेष्‍ठजन इस बात को समझ जाएंगे, उसी दिन से समाज में बदलाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. रामराज्‍य का अर्थ होता है धर्म. धर्म के आधारित संस्‍कारित समाज और फिर उसके अनुरूप सत्‍ता. इस व्‍यवस्‍था में मानव केन्द्रित विकास नहीं होता है. संस्‍कृति और धर्म के अनुकूल प्रकृति केन्द्रिक विकास पथ पर चलना होता है.   राममंदिर निर्माण के साथ-साथ रामराज्‍य की दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्‍त हो सकता है. सभ्‍यतामूलक दृष्टि से भारत दुनिया का नेतृत्‍व करता रहा है. वक्‍त बदलने के साथ तौर तरीके बदल गये. इसका दुष्‍परिणाम यह हुआ कि हम आगे बढ़ने के बजाए पीछे चले गये. वैभव का वशीकरण और आलस्‍य जैसे दुर्गुणों ने हमें उन्‍नति के बजाये अवनति के मार्ग पर पहुंचा दिया. समय का चक्र घूम रहा है. प्रतिकूल परिस्थितियां अनुकूल होती दिख रही हैं. इसमें वैश्विक महामारी भी प्रमुख भूमिका निभा रही है. संक्रमण का यह दौर हमें फिर से प्राकृतिक जीवन शैली को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा है.  
प्राकृतिक जीवन शैली को जनमानस प्रगति विरोधी समझने की भूल करते हैं. क्‍योंकि प्रगति के मूल्‍यांकन का हमारा तरीका ही गलत है. हमारे प्रगति का पैमाना भौतिकवादी है, जबकि उसे आत्मिक होना चाहिए. कोरोना के संक्रमण ने हमें यथार्थ का अहसास करा दिया है. यही वजह है कि हम में से कुछ लोग मानव केन्द्रित विकास की जगह प्रकृति केन्द्रित वि‍कास की दिशा में बढ़ना चाहते हैं. देश की अर्थव्‍यवस्‍था अब एक नई दिशा में आगे बढ़ने के लिए तैयार है जिसमें देशी, स्‍वदेशी और विकेन्‍द्रीकरण का प्रभुत्‍व होगा. सरकार और समाज दोनों को यह बात समझ में आ जानी चाहिए कि देश का विकास रामराज्‍य में निहित है और इस दिशा में प्रयास शुरू किये जाने चाहिएं. 
प्रयासों की रूपरेखा क्‍या हो. यह भी तय करना होगा कि कार्यों को किस प्रकार चरणों में बांटा जा सकता है. उचित समय आने पर यह तय करना पड़ेगा. इन चीजों को तय करने में सरकार को समाज और समुदायों को साथ लेकर चलना पड़ेगा. जब तक समाज और समुदाय का साथ नहीं होगा तब तक परिवतर्न की दिशा में आगे नहीं बढ़ा जा सकता है. सामाजिक, राजनीतिेक और आर्थिक व्‍यवस्‍थाओं की जरूरतों को ध्‍यान में रखते हुए कालावधि आधारित योजनाएं बनानी पड़ेंगी. कालखंड की समय सीमा को निर्धारित करना भी एक महत्‍वपूर्ण कार्य होगा. जैसे कि अल्‍पकालिक, मध्‍यकालिक और दीर्घकालिक. जब तक हम समय सीमा में बंध कर काम करना शुरू नहीं करेंगे, तब तक वांछित फल की कल्‍पना नहीं कर सकते हैं. ये योजनाएं तभी फलदायी होंगी जब उनमें न सिर्फ मौलिकता होंगी बल्कि उसके क्रियान्‍वयन का तरीका भी अनूठा होगा. इसे साकार करने के लिए समाज और सरकार दोनों को महत्‍वपूर्ण और सक्रिय भूमिका निभानी होगी. भारत, राम का भारत है, इतना कह देना पर्याप्‍त नहीं है. ऐसी सामाजिक परिस्थितियां बनानी होंगी, जिससे भारत, राम का भारत बन सके. सरकारी संसाधन और राजसत्‍ता से इस लक्ष्‍य को हासिल नहीं किया जा सकता है.   
भारत की सत्‍ता के संचालन के चार सूत्र हैं. धर्मसत्‍ता, समाजसत्‍ता, राजसत्‍ता और अर्थसत्‍ता. भारत की सत्‍ता इन्‍हीं चार सूत्रों से संचालित होती है. इन सूत्रों में मूल्‍यबोध और दायित्‍वबोध का समावेश भी जरूरी है. समाज की पहल के बिना सही दिशा में बढ़ना  असंभव सा कार्य है. इसलिए समाज में समरसता का भाव जरूरी है. वर्तमान समाज समरस नहीं है. समुदायों की सोच में भिन्‍नता है. परस्‍पर विश्‍वास का अभाव है. कहीं कहीं तो विरोधाभासी भी हैं. हमें एकरसता का भाव लाने का प्रयास करना चाहिए. यह एक ऐसा विषय है जो संवेदनशील होने के साथ-साथ जटिल भी है. इसके जटिल होने के पीछे सैकड़ों वर्षों के कटु अनुभव हैं. इन अनुभवों को भूलना किसी के लिए भी आसान नहीं है. मगर समय की मांग है यदि भूलेंगे नहीं तो आगे नहीं बढ़ पाएंगे. 
लेखक: भारत विकास परिषद के पश्चिम रीजन के रीजनल सेक्रेटरी हैं.

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