मालवा और निमाड़ अंचल में मनाये जाने वाले संजा पर्व की संकलित जानकारी

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“संजा पर्व” भाद्रपद माह के शुक्ल पूर्णिमा से पितृमोक्ष अमावस्या तक पितृपक्ष में कुंआरी कन्याओं द्वारा मनाया जाने वाला पर्व है। यह पर्व मुख्य रूप से मालवा-निमाड़, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र आदि में मनाया जाता है। संजा पर्व में श्राद्ध के सोलह ही दिन कुंवारी कन्याएँ शाम के समय एक स्थान पर एकत्रित होकर गोबर के मांडने मांडती हैं और संजा के गीत गाती हैं व संजा की आरती कर प्रसाद बांटती हैं। सोलह ही दिन तक कुंवारी कन्याएँ गोबर के अलग-अलग मांडने मांडती है तथा हर दिन का एक अलग गीत भी होता है।संजा पर्व पर मालवा, निमाड़, राजस्थान व गुजरात के क्षेत्रों में कुंवारी कन्याएं गोबर से दीवार पर 16 दिनों तक विभिन्न कलाकृतियां बनाती हैं तथा उसे फूलों व पत्तियों से श्रृंगारित करती हैं। वर्तमान में संजा का रूप फूल-पत्तियों से कागज में तब्दील होता जा रहा है। “संजा” मालवा क्षेत्र में युवा लड़कियों के समूह द्वारा गाये जाने वाले गीत, लोक संगीत एक पारंपरिक मधुर और लुभावना उत्सव है। समृद्धि और खुशी का आह्वान करने हेतु लड़कियां गाय के गोबर से संजा की मूरत बनाती है और उसे पत्ती और फूलों के साथ सजाती है तथा शाम के दौरान संजा की पूजा करती है। 16 दिन के बाद, अपने साथी संजा को विदाई देते हुए यह उत्सव समाप्त होता है। |

अपनी अनूठी व बेमिसाल लोक परंपरा व लोककला के कारण ही मालवा क्षेत्र की देश में एक विशिष्ट पहचान है, यहीं की गौरवमयी संस्कृति की सौम्य, सहज व सुखद अभिव्यक्ति का पर्व है – संजा !

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