सहकार, कृषि और उद्योग हमारे विकास के आधार स्तंभ – डॉ. मोहन भागवत जी

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संघ शताब्दी के उपलक्ष्य में कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में ‘उद्यमी संवाद – नए क्षितिज की ओर’ कार्यक्रम

विविधताओं को कैसे संभालना है, यह भारत को पूरी दुनिया को सिखाना है

राष्ट्र को परम वैभव संपन्न बनाने के लिए सबको साथ चलना है

जयपुर, 13 नवम्बर । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत जी ने कहा कि विविधताओं को कैसे संभालना है, यह हमें दुनिया को सिखाना है क्योंकि दुनिया के पास ऐसा तंत्र नहीं है जो भारत के पास है।

सरसंघचालक जी गुरुवार को संघ शताब्दी वर्ष के अवसर पर ‘100 वर्ष की संघ यात्रा श्रृंखला’ के अंतर्गत कॉन्स्टीट्यूशन क्लब, जयपुर के पृथ्वीराज चौहान सभागार में ‘उद्यमी संवाद – नए क्षितिज की ओर’ कार्यक्रम में राजस्थान के प्रमुख उद्यमियों को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि संघ को प्रत्यक्ष अनुभव किए बिना संघ के बारे में राय मत बनाइए। संघ से जुड़ने के लिए शाखा में आइए, जो आपको अनुकूल लगे वह काम आप कर सकते हैं। संघ पूरे समाज को ही संगठित करना चाहता है। पूरा समाज संघ बन जाए यानी प्रमाणिकता से, निःस्वार्थ बुद्धि से सब लोग देश के लिए जिएं।

उन्होंने कहा कि संघ के 100 वर्ष की यात्रा पूर्ण होने के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम कोई सेलिब्रेशन नहीं है, बल्कि आगे के चरण की दृष्टि से अपने कार्य की वृद्धि का विचार करने के लिए कार्यक्रम किए जा रहे हैं। राष्ट्र को परम वैभव संपन्न और विश्वगुरु बनाना किसी एक व्यक्ति के वश में नहीं है। यह सबका काम है और इसके लिए सबको साथ लेकर चलना है।

उन्होंने कहा कि संघ की स्थापना किसी एक विषय को लेकर नहीं हुई। संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार क्रांतिकारी थे। वे इंडियन नेशनल कांग्रेस के बहुत सक्रिय कार्यकर्ता थे। उसके आंदोलनों में संघ स्थापना के पहले और एक बार स्थापना के बाद, दो बार जेल गए। जो देश हित और समाज हित में चल रहा था, उसमें वह सक्रिय रहे। असहयोग आंदोलन में उन पर राजद्रोह का अभियोग लगा। उन्होंने बचाव में पक्ष रखना चुना क्योंकि इससे दोबारा भाषण का मौका मिलता। उनके बचाव भाषण को सुनकर जज को कहना पड़ा कि उनका बचाव भाषण पहले भाषण से भी अधिक राजद्रोही है। डॉ. हेडगेवार ने अनुभव किया कि समाज में डेढ़ हजार साल से जो दुर्गुण आ रहे थे, उन्हें दूर करना जरूरी है। उन्हें महसूस हुआ कि संपूर्ण हिन्दू समाज को संगठित किए बिना भारत इस पुरानी बीमारी से मुक्त नहीं होगा। इसलिए उन्होंने एक दशक तक विचार और प्रयोगों के बाद संघ की स्थापना की।

सरसंघचालक जी ने कहा कि संघ किसी को नष्ट करने के लिए नहीं बना है। भारत वर्ष में हमारी पहचान हिन्दू है। हिन्दू शब्द सबको एक करने वाला है। हमारा राष्ट्र संस्कृति के आधार पर एक है, न कि राज्य के आधार पर। पुराने समय में जब राज्य अनेक थे तब भी हम एक देश थे, पराधीन थे तब भी एक देश थे। उन्होंने कहा कि समाज की स्वस्थ अवस्था का नाम समाज का संगठन है। संघ व्यक्ति निर्माण का काम करता है। संघ स्वयंसेवक तैयार करता है, स्वयंसेवक बाकी सब काम करते हैं।

उन्होंने संघ कार्य के आगामी चरण के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि सारा समाज देश हित में जिए, ये संघ का आगे का काम है। समाज की सज्जन शक्ति जागृत हो, सामाजिक समरसता का वातावरण बने और मंदिर, पानी, शमशान सबके लिए खुले होने चाहिए। परिवार के सभी सदस्य सप्ताह में कम से कम एक बार एकत्र आएं और अपना भोजन एवं भजन, अपनी भाषा और अपनी परंपरा के अनुसार करें। पानी बचाने, पेड़ लगाने और प्लास्टिक हटाने जैसे पर्यावरण संरक्षण के कार्यों के लिए भी हमें आगे आना चाहिए। स्व का बोध और स्वदेशी का भाव सबके मन में जागृत हो, देश स्वनिर्भर बने। नागरिक कर्तव्य और नागरिक अनुशासन के प्रति हम सजग बनें और नियम, कानून, संविधान का पालन करें।

सारा समाज एक बनकर अपना-अपना काम अपनी-अपनी पद्धति से करे ताकि हम सभी एक दूसरे के बाधक नहीं, बल्कि पूरक बनें।

उन्होंने कहा कि सहकार, कृषि और उद्योग हमारे विकास के आधार स्तंभ हैं। कृषि, व्यापार, उद्योग परस्पर साथ आकर, परस्पर निर्भर होकर तीनों एक साथ प्रगति करें। छोटे और मध्यम उद्योग अर्थव्यवस्था को विकेंद्रित करते हैं। इन उद्योगों को अपने देश के अंदर सुचारू रूप से चलने का वातावरण देना, ये बड़े उद्योगों का काम है। छोटे उद्योगों को रोजगार, कौशल, उत्पादन की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ाना चाहिए।

इससे पूर्व राजस्थान क्षेत्र संघचालक रमेश चंद्र अग्रवाल ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. हेमंत सेठिया ने किया।

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