अराजक और अस्थिर बांग्लादेश और पूर्वोत्तर

भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर, पड़ोसी देश म्यांमार और बांग्लादेश की घटनायें एक-दूसरे से संबंधित है। यह सभी घटनायें एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है। अमेरिकी सरकार ने बांग्लादेश के राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप किया, लोकतंत्र और स्वतंत्र चुनाव को बढ़ावा देने की आड़ में कई सारे प्रतिबंध लगाए। यह कार्यवाही बांग्लादेश में राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने का एक रणनीतिक हिस्सा है। बांग्लादेशी अधिकारियों ने दावा किया है कि उनके पास बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यवाहक प्रमुख और खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान और सऊदी अरब में आईएसआई अधिकारियों के बीच बैठकों के सबूत हैं। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी दावा किया था कि बांग्लादेश और म्यांमार के कुछ हिस्सों को काटकर एक नया ईसाई देश बनाने की साजिश रची जा रही है। अमेरिका उनसे एक हवाई पट्टी बनाने की मांग भी कर रहा था। अमेरिका ने बांग्लादेश नेशनल पार्टी और उसके सहयोगी जमात-ए-इस्लामी को भी समर्थन दिया था। जमात-ए-इस्लामी, बांग्लादेश बनने के बाद से ही कई तरह की अस्थिर गतिविधियों में शामिल रहा है और कहीं ना कहीं पाकिस्तान का समर्थक भी है।
बांग्लादेश की सबसे बड़ी समस्या अस्थिरता और अराजकता रही है। बांग्लादेश बनने के बाद से कभी भी सरकार पूर्ण मजबूती के साथ स्थिरता से नहीं चल पाई। मुजीबुर रहमान ने भारत के सहयोग से मुक्ति वाहिनी बनाई और बांग्लादेश का गठन किया। परंतु सेना में गुटबाजी और महत्वाकांक्षाएं होना के कारण वह तीन साल बाद ही लगभग पूरे परिवार सहित सेना द्वारा मार दिए गए। मुजीबुर्रहमान की दो बेटियाँ शेख हसीना और उनकी बहन शेख रिहाना ही बचीं, जो उस समय देश से बाहर थीं। जिया उर रहमान मिलिट्री कमांडर थे, जिसने शेख मुजीबुर्रहमान का आजादी के संग्राम मे साथ दिया। शेख मुजीब की हत्या के बाद उन्होंने देश का शासन संभाला। वह ही शेख हसीना को बांग्लादेश वापस लेकर आया और उसे राजनीति में स्थापित किया। बाद में उसने अपनी पत्नी बेगम खालिदा जिया को भी राजनीति में उतार दिया और 1977 में राष्ट्रपति बन बैठा और चार साल बाद 1981 में उनकी भी सैन्य तख्तापलट में हत्या कर दी गई।
इसके बाद बांग्लादेश के सैन्य प्रमुख मोहम्मद इरशाद ने देश की सत्ता पर कब्जा कर लिया। इरशाद को हटाने के लिए हसीना और जिया दोनों साथ आईं और जीत भी हासिल की, परंतु इरशाद के हटने के बाद वे एक दूसरे के खिलाफ हो गईं। खालिदा को शेख हसीना के खिलाफ करने में उस समय सीआईए का बहुत बड़ा हाथ था। वहाँ के कट्टर मुस्लिमों का एक धड़ा पाकिस्तान समर्थक है, जो भारत विरोधी हैं। वहाँ पर अरब देशों से पेट्रो-डॉलर फंडिंग वाले कट्टरपंथी तब्लीगियों का भी अच्छा प्रभाव बनता जा रहा है। जमात-ए-इस्लामी भी विदेशी फंडिंग पाती है, साथ ही वह आईएसआई और सीआईए के संपर्क सहयोग में भी है।
वर्तमान में केवल शेख हसीना ही भारत समर्थक और सहयोगी हैं और अमेरिकन डीप स्टेट को नापसंद है। अब अंतरिम सरकार प्रमुख मोहम्मद यूनुस को बनाया गया है, जिन्होंने 1984 में माइक्रोफाइनेंस स्कीम के नाम पर गरीब बांग्लादेशी नागरिकों को विदेशी पैसे बांटकर उनका दोहन किया। बांग्लादेश की गरीबी में कोई सुधार नही आया, परंतु विदेशी धन के माध्यम से बांग्लादेश के लोगों और अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने का प्रयास किया, जिसकी शेख हसीना प्रबल विरोधी है। इन पर टैक्स चोरी और अत्यधिक ब्याज से लोगों के दोहन के आरोप लगते रहे, साथ ही यह विदेशी प्रतिनिधित्व के प्रबल समर्थक हैं।

म्यांमार का संघर्ष राज्य बनाने वाले बर्मी बहुसंख्यकों व अल्पसंख्यकों के मध्य है। अल्पसंख्यक मुख्य रूप से सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित हैं, जबकि बर्मी देश के मध्य और दक्षिणी हिस्सों पर हैं। कई अल्पसंख्यक समूह प्राकृतिक संसाधनों, जुए, ड्रग्स या विदेशी सहायता (खासकर मिशनरीज) के माध्यम से खुद को बनाए रखते हैं। वह अक्सर चीनी और अमेरिकन हथियारों की सहायता से संघर्ष को कम तीव्रता पर जारी रखते हैं, जिससे इसकी निरंतरता बनी रहती है। ऐसा करने के पीछे ड्रग्स और जंगल पहाडों पर मिलने वाले आर्थिक संसाधन के माध्यम से होने वाली आय भी कारण है। 

शेख हसीना, जिस ईसाई-यहूदी लोगों का एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के प्रयासों की ओर इशारा कर रही थीं, वह वहाँ रहने वाले ईसाई धर्म में परिवर्तित हो चुके समूहों की पुरानी मांग है। ईसाई राष्ट्र “ज़ोगाम”, जिसे “ज़ालेंगम” (स्वतंत्रता की भूमि)की तर्ज पर कहा जाता है, एक प्रस्तावित कुकी राज्य है। इस अलग राष्ट्र में म्यांमार के सागाइंग डिवीजन और चिन राज्य के बड़े हिस्से, भारतीय राज्य मिज़ोरम और मणिपुर के कुकी-बसे हुए इलाके और बांग्लादेश के चटगाँव डिवीजन के बंदरबन जिले और आस-पास के इलाके शामिल करने का विचार है। अमेरिका समेत यूरोपियन समुदाय इस मांग को हवा देता रहता है और कुकी समुदाय का सहायक भी है।
यह क्षेत्र कुकी-चिन आतंकवादी समूहों के उग्रवाद से जूझ रहा है जिसमे ज़ोमी, चिन-कुकी-मिज़ो जातीय समूह शामिल है। भारत, म्यांमार और बांग्लादेश के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले एक जातीय समूह हैं। उनकी उत्पत्ति म्यांमार की चिन पहाड़ियों और भारत में मणिपुर, मिज़ोरम और नागालैंड के आस-पास के क्षेत्रों से जुड़ी हुई है। जहाँ वो बाहर से धीरे धीरे इन क्षेत्रों में प्रवास करके बस गए और अलग-अलग समुदायों का निर्माण किया।
शेख हसीना के साथ सीआईए बांग्लादेश को अमेरिकी सेना के लिए दक्षिण एशिया को नियंत्रित करने के लिए एक सैन्य हवाई पट्टी बनाने में विफल रही। इस सैन्य अड्डे और कुकी चिन के अपने समर्थकों के साथ अमेरिका बहुत आसानी से दक्षिण पूर्व एशिया के साथ भारत और चीन को भी नियंत्रित कर सकता है। यही कारण रहा मणिपुर भी पिछले डेढ़ दो साल से अशांत बना हुआ है।
भारत सरकार ने मणिपुर में अवैध ड्रग्स की खेती पर लगाम लगाई और व्यापार को बंद करने के उद्देश्य से वहाँ फसल को आग लगा दी। इसके बाद ही वहाँ पर चीन और अमेरिका प्रायोजित हिंसा भड़क उठी। सेना की कार्यवाही में कुकी उग्रवादियों की भी काफी कमर टूटी है, इसलिए मणिपुर को अशांत किया गया। वहाँ पर नेहरू ने भारतीय साधुओं के प्रवेश पर रोक लगा दी थी और यूरोपीय मूल के वेरियर एल्विन को उत्तर पूर्वी मामलों पर सलाहकार नियुक्त किया था। आज, नागालैंड में लगभग 90% ईसाई हैं। दूसरी कसर पूर्वोत्तर में इनर लाइन परमिट लगाकर उस हिस्से को भारत से लगभग अलग थलग कर दिया।
ऐसे समय में भारत की क्या भूमिका होनी चाहिए। मेघालय ने बांग्लादेश के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तत्काल प्रभाव से रात्रि कर्फ्यू लगा दिया है। BSF ने 4,096 किलोमीटर लंबी भारत-बांग्लादेश सीमा पर अपनी सभी संरचनाओं में “हाई अलर्ट” जारी किया जहाँ एक ओर मणिपुर समस्या है, वहीं चिकन नैक का स्थाई समाधान भी बांग्लादेश के माध्यम से निकल सकता है। दूसरी ओर त्रिपुरा तथा बांग्लादेशी शरणार्थियों की भी समस्याएँ हैं, जो कि शेख हसीना और उनके नेटवर्क के माध्यम से सुलझ सकती हैं।

– लेखक : अभिषेक अग्रवाल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *