राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रथम गृहस्थ प्रचारक भाऊ साहब भुस्कुटे जी की जयंती

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भाऊ साहब भुस्कुटे का जन्म 14 जून, 1915 को मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में हुआ था इनका परिवार टिमरनी की विशाल गढ़ी में रहता था। प्राथमिक शिक्षा अपने स्थान पर ही पूरी कर वे पढ़़ने के लिए नागपुर आ गये। 1932 की विजयादशमी से वे नियमित संघ की शाखा पर जाने लगे।

1933 में उनका सम्पर्क डा. हेडगेवार से हुआ। भाऊसाहब ने 1937 में बी.ए आनर्स, 1938 में एम.ए तथा 1939 में कानून की परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसी दौरान उन्होंने संघ शिक्षा वर्गों का प्रशिक्षण भी पूरा किया और संघ की योजना से प्रतिवर्ष शिक्षक के रूप में देश भर के वर्गों में जाने लगे।

जब भाऊसाहब ने प्रचारक बनने का निश्चय किया, तो वंश समाप्ति के भय से घर में खलबली मच गयी; क्योंकि वे अपने माता-पिता की एकमात्र सन्तान थे। प्रारम्भ में उन्हें झाँसी भेजा गया; पर फिर डा. हेडगेवार ने उन्हें गृहस्थ जीवन अपनाकर प्रचारक जैसा काम करने की अनुमति दी। 1941 में उनका विवाह हुआ और इस प्रकार वे प्रथम गृहस्थ प्रचारक बने। वे संघ से केवल प्रवास व्यय लेते थे, शेष खर्च वे अपनी जेब से करते थे यद्यपि भाऊसाहब बहुत सम्पन्न परिवार के थे; पर उनका रहन सहन इतना साधारण था कि किसी को ऐसा अनुभव ही नहीं होता था।

1948 में गांधी हत्याकाण्ड के समय उन्हें गिरफ्तार कर छह मास तक होशंगाबाद जेल में रखा गया; पर मुक्त होते ही उन्होंने संगठन के आदेशानुसार फिर सत्याग्रह कर दिया। इस बार वे प्रतिबंध समाप्ति के बाद ही जेल से बाहर आये। आपातकाल में 1975 से 1977 तक पूरे समय वे जेल में रहे। जेल में उन्होंने अनेक स्वयंसेवकों को संस्कृत तथा अंग्रेजी सिखाई। जेल में ही उन्होंने ‘हिन्दू धर्म: मानव धर्म’ नामक ग्रन्थ की रचना की।

उन पर प्रान्त कार्यवाह से लेकर क्षेत्र प्रचारक तक के दायित्व रहे। भारतीय किसान संघ की स्थापना होने पर श्री दत्तोपन्त ठेेंगड़ी के साथ भाऊसाहब ने भी मार्गदर्शक की भूमिका निभाई। उनके जन्म के 75 वर्ष पूरे होने पर कार्यकर्त्ताओं ने उनके ‘अमृत महोत्सव’ की योजना बनायी। भाऊसाहब इसके लिए बड़ी कठिनाई से तैयार हुए। वे कहते थे कि मैं उससे पहले ही भाग जाऊँगा और तुम ढूँढते रह जाओगे। वसंत पंचमी (21 जनवरी, 1991) की तिथि इसके लिए निश्चित की गयी; पर उससे बीस दिन पूर्व एक जनवरी, 1991 को वे सचमुच संसार से चले गये।

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