संघ के पहले गृहस्थ प्रचारक निमाड़ के भाऊसाहब भुस्कुटे, जिन्होंने इमरजेंसी में जेल में रहकर सत्याग्रहियों को संस्कृत व अंग्रेजी सिखायी।

14 जून को श्रद्धेय भाऊसाहब भुस्कुटे जी की जन्मजयंती है।

श्री भाऊसाहब भुस्कुटे – एक आदर्श स्वयंसेवक …

संघ कार्य करते हुये राष्ट्रधर्म आराधना करने वाले सहस्त्रों प्रचारकों ने अपना जीवन समर्पित किया ऐसे ही एक श्रेष्ठ प्रचारक थे 14 जून, 1915 को ब्रह्मपुर (बुरहानपुर,मध्य प्रदेश) में जन्मे श्री गोविन्द कृष्ण भुस्कुटे, जो भाऊसाहब भुस्कुटे के नाम से प्रसिद्ध हुए।

इनके पूर्वजों के शौर्य से प्रभावित होकर पेशवा ने उन्हें बुरहानपुर, टिमरनी और निकटवर्ती क्षेत्र की जागीर उपहार में दे दी थी। उस क्षेत्र में लुटेरों का बड़ा आतंक था; पर इनके पुरखों ने उन्हें कठोरता से समाप्त किया। इस कारण इनके परिवार को पूरे क्षेत्र में बड़े आदर से देखा जाता था।

इनका परिवार टिमरनी की विशाल गढ़ी में रहता था। उच्च शिक्षण हेतु नागपुर आने के बाद 1932 की विजयादशमी से ही वे नियमित शाखा पर जाने लगे। भाऊसाहब ने 1937 में बी.ए आनर्स, 1938 में एम.ए तथा 1939 में कानून की परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसी दौरान उन्होंने संघ शिक्षा वर्गों का प्रशिक्षण भी पूरा किया और संघ योजना से प्रतिवर्ष शिक्षक के रूप में देश भर के वर्गों में जाने लगे।

जब भाऊसाहब ने प्रचारक बनने का निश्चय किया, वे अपने माता-पिता की एकमात्र सन्तान थे अतः डा. हेडगेवार ने उन्हें गृहस्थ जीवन अपनाकर प्रचारक जैसा काम करने की अनुमति दी इस प्रकार वे प्रथम गृहस्थ प्रचारक बने। वे संघ से केवल प्रवास व्यय लेते थे, शेष खर्च वे अपनी जेब से करते थे।

यद्यपि भाऊसाहब बहुत सम्पन्न परिवार के थे; पर उनका रहन सहन इतना साधारण था कि किसी को ऐसा अनुभव ही नहीं होता था। प्रवास के समय अत्यधिक निर्धन कार्यकर्त्ता के घर रुकने में भी उन्हें कोई संकोच नहीं होता था। धार्मिक वृत्ति के होने के बाद भी वे देश और धर्म के लिए घातक बनीं रूढ़ियों तथा कार्य में बाधक धार्मिक परम्पराओं से दूर रहते थे। द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी सब कार्यकर्त्ताओं को भाऊसाहब से प्रेरणा लेने को कहते थे।

1948 में उन्हें गिरफ्तार कर छह मास तक होशंगाबाद जेल में रखा गया; पर मुक्त होते ही उन्होंने संगठन के आदेशानुसार फिर सत्याग्रह कर दिया। इस बार वे प्रतिबंध समाप्ति के बाद ही जेल से बाहर आये। आपातकाल में 1975 से 1977 तक पूरे समय वे जेल में रहे। जेल में उन्होंने अनेक स्वयंसेवकों को संस्कृत तथा अंग्रेजी सिखाई। जेल में ही उन्होंने ‘हिन्दू धर्म: मानव धर्म’ नामक ग्रन्थ की रचना की।

उन पर प्रान्त कार्यवाह से लेकर क्षेत्र प्रचारक तक के दायित्व रहे। भारतीय किसान संघ की स्थापना होने पर श्री दत्तोपन्त ठेेंगड़ी के साथ भाऊसाहब भी उसके मार्गदर्शक रहे। 75 वर्ष पूरे होने पर कार्यकर्त्ताओं ने उनके ‘अमृत महोत्सव’ की योजना बनायी। भाऊसाहब इसके लिए बड़ी कठिनाई से तैयार हुए। वे कहते थे कि मैं उससे पहले ही भाग जाऊँगा और तुम ढूँढते रह जाओगे। वसंत पंचमी (21 जनवरी, 1991) की तिथि इसके लिए निश्चित की गयी; पर उससे बीस दिन पूर्व एक जनवरी, 1991 को वे सचमुच चले गये।

श्रद्धेय भाऊसाहब की स्मृति में नर्मदापुरम जिले की बनखेड़ी तहसील अंतर्गत गोविंदनगर में भाऊ साहब भुसकुटे स्मृति न्यास नामक शिक्षा, कौशलविकास, कृषि विज्ञान व ग्रामोत्थान सहित विभिन्न सामाजिक कार्यों हेतु एक विशाल प्रकल्प संचालित होता है।

जन्मजयंती पर आपको सादर नमन है।

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