बेंगलुरू, दिल्ली, राम मंदिर और कुछ बातें जो हम समझ जाएं तो बेहतर है…!

सौरभ कुमार

\"\"

बेंगलुरू में एक फेसबुक पोस्ट पर पुलिस स्टेशन में आग लगा दी गई. आरोप है कि कर्नाटक के कांग्रेस विधायक अखंड श्रीनिवासमूर्ति के रिश्तेदार ने प्रोफेट मुहम्मद को लेकर फेसबुक पोस्ट की. इस बात पर हजारों की भीड़ नारे लगते हुए सड़कों पर निकल आई, अब तक तीन लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है, लगभग 60 पुलिसकर्मी घायल हैं.

यह घटना अकेली नहीं है, इससे पहले उत्तर प्रदेश के एक नेता कमलेश तिवारी की भी हत्या इसी आरोप के बाद की जा चुकी है. कमलेश तिवारी को जान से मारने की धमकियां मिलीं और सुरक्षा के बावजूद उनके कार्यालय में घुसकर उन्हें गोली मार दी गई. जून में खबर आई थी कि सीरिया में एक 14 साल के बच्चे को जान से मार दिया गया, आरोप वही, इस्लाम का अपमान! कुछ दिनों पहले ही पकिस्तान में ईश निंदा के एक आरोपी को सरेआम कोर्ट में सुनवाई के दौरान गोली मार दी गयी और पाकिस्तानी लोगों ने गोली मारने वाले को हीरो बना दिया. 1990 से अब तक पकिस्तान में 77 लोगों की हत्या इसी तरह की जा चुकी है, आरोप वही, इस्लाम का अपमान! और 2015 में फ्रेंच मैगज़ीन चार्ली हेब्दो के ऑफिस में हुई गोलीबारी आपको याद ही होगी.

ये सारे उदहारण बताने का उद्देश्य बस इतना है कि आप समाज जाएं कि ये कट्टरता किसी शहर, राज्य या देश तक सीमित नहीं है. इस कट्टरता का कारण अशिक्षा, बेरोजगारी या सामाजिक दबाव नहीं है. इस कट्टरता की जड़ें कहां हैं, आज ये तलाशने व समझने की आवश्यकता है. खैर इस लेख में हम भारतीय परिपेक्ष्य में इस कट्टरता का पैटर्न और भारतीय समाज पर इसके प्रतिकूल प्रभावों पर चर्चा करेंगे. हम समझने का प्रयास करेंगे कि किस तरह धर्म के चोले में बैठी एक विचारधारा धीरे-धीरे भारतीय समाज को अस्थिर करने की कोशिशों में लगी है.

बेंगलुरु, दिल्ली और राम मंदिर

बेंगलुरु, दिल्ली और राम मंदिर ये तीन घटनाएं तात्कालिक भी हैं और इस विषय की गंभीरता को समझने के लिए उपयुक्त भी. बेंगलुरु की सड़कों पर आगजनी कर रही उन्मादी भीड़ को देखकर आपके मन में एक प्रश्न जरुर आया होगा कि आखिर कैसे कुछ ही समय में एक फेसबुक पोस्ट के खिलाफ हजारों की भीड़ सड़कों पर उतर आई? क्या ये हिंसा तात्कालिक थी या इसके पीछे कोई गहरी साजिश है? बेंगलुरू में हुए इन दंगों का पैटर्न दिल्ली के दंगों से बहुत ज्यादा अलग नहीं है. हां, मुद्दे अलग हैं, लेकिन हिंसा का स्वभाव, उद्देश्य और तरीका बहुत हद तक एक ही जैसा है.

हम इस पैटर्न को शाहीन बाग मॉडल ऑफ़ रायट कहेंगे, ताकि समझने में आसानी हो. सबसे पहले कुछ संगठन दंगों की योजना बनाते हैं. अलगाववादी और विदेशी ताकतें इन योजनाओं की फंडिंग करती हैं और फिर शुरू होता है खेल दंगों की स्क्रिप्ट लिखने का. पहले इलाके के मुसलमानों के सामने एक “नॉन इशू” इस तरह से रखा जाता है मानो वो उनके अस्तित्व का प्रश्न हो. फिर इस मुद्दे को आधार बनाकर उन्हें गोलबंद किया जाता है. ये गोलबंदी आम तौर पर उन इलाकों में होती है, जहां मुस्लिमों की संख्या या तो हिन्दुओं से ज्यादा हो या लगभग बराबर.

इसके बाद शुरू होता है एग्जिक्यूशन – भीड़ सड़कों पर निकलती है, नारेबाजी करती है. माहौल धीरे धीरे गर्म होता है और शुरू हो जाती है पत्थरबाजी, फिर आगजनी और कट्टर उन्मादी नारे. समय समय पर देश में इस तरह के दंगें, हिंसा होते रहे हैं – उद्देश्य की डर बना रहे, राजनैतिक सामाजिक दबाव बना रहे. एक तरफ यह हिंसा हो रही होती है और दूसरी तरफ वामपंथी लिबरल पर्दा तैयार करते हैं, इन घटनाओं को, हिंसा को कवर देते हैं. कभी एक मुस्लिम युवक की कहानी चलने लगी, जिसने अपने पड़ोसी हिन्दू को बचाया और कभी एक फर्जी बनाया गया वीडियो, जिसमे कुछ लोग मंदिर बचा रहे हैं. ये पोस्ट्स “भारत की असली तस्वीर” बोलकर खूब चलाई जाती है, और हिंसा की तस्वीरों को धो दिया जाता है. जो सड़कों पर तलवार लेकर दौड़ रहे थे वो अचानक सेकुलरिज्म के हीरो बन जाते हैं और समाज के सामूहिक कृत्य को ढंक दिया जाता है. खैर दिल्ली दंगों में ये पर्दा काम नहीं आया और ताहिर हुसैन के बयानों ने सारा सच खोल दिया. अगर आप इस प्रोपगेंडा मशीन को और अच्छे से समझना चाहते हैं तो एक बार ताहिर हुसैन के कबुलनामे को पढ़िए और फिर जाकर “लिबरल” गुट के बुद्धिजीवियों के ट्विटर पर जाकर देखिये की उन्होंने इसे ढंकने के लिए क्या जाल बुना है.

इस विचारधारा में स्वीकार्यता है ही नहीं, यह बस डोमिनेशन में भरोसा करती है. मुग़ल शासन का मिजाज अभी भी इस देश के इस्लामिक विचारकों के दिमाग से उतरा नहीं है. आपने राम मंदिर भूमिपूजन से पहले आये बयानों को देखा होगा, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने हाजिय सोफिया का उदाहरण दे दिया, आल इंडिया इमाम संघ के अध्यक्ष ने खुल्लम खुल्ला धमकी दे दी कि एक दिन मंदिर तोड़ कर दोबारा मस्जिद बनाएंगे. ओवैसी के बयान और ट्विटर के ट्रेंड्स में आपने प्रतिक्रिया देखी. ये प्रतिक्रिया तब थी जब हिन्दू समाज ने अपने आराध्य के मंदिर के निर्माण के लिए 500 वर्षों का इंतज़ार किया है और ये निर्माण सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हो रहा है.

हम ही दे रहे हैं इस आतताई विचार को मजबूती

आज तुष्टिकरण ख़त्म हुआ है, तब जाकर ये मुद्दे प्रकाश में आ रहे हैं. समाज का एक छोटा सा हिस्सा जागरूक हुआ है तो हम इन चुनौतियों को पहचान पा रहे हैं. मगर अफसोस की इस जाग्रति को कट्टरता का नाम दे दिया जाता है. इस्लाम की इस मिलिट्री डॉक्ट्रिन की आलोचना करने पर यह ठप्पा लगा दिया जाता है कि आप साम्प्रदायिक हैं. जबकि वास्तविकता ये है कि भारतीय समाज कभी साम्प्रदायिक हो ही नहीं सकता, कट्टर हो ही नहीं सकता. भारतीय समाज की जड़ें सर्वसमावेशी हैं, इस समाज के लिए धर्म और पूजन पद्धति कभी टकराव का विषय नहीं रही है. यहां तो एक ही परिवार के पांच लोग, पांच अलग अलग मान्यताएं रखते हैं और यह कभी टकराव का कारण नहीं बनता.

लेकिन आज हमें समझने की आवश्यकता है कि हमारे सामने जो विचार है, वो इस समावेश में विश्वास नहीं करता, इस विचार का उद्देश्य बस अपनी सत्ता स्थापित करना है और जाने अनजाने इस कट्टरता को बढ़ाने में एक बड़ा योगदान हमारा भी है. हम इस चरित्र को देखते, समझते हुए भी इसकी आलोचना से बचते हैं. यह हमारा सामाजिक स्वभाव है कि हम आलोचना में विश्वास नहीं करते, लेकिन आज समझने की आवश्यकता है कि स्थितियां अलग हैं. मेरे कई दोस्तों का कहना है कि हर समाज में अच्छे और बुरे लोग होते हैं, और यह वास्विकता भी है, लेकिन लोगों के व्यक्तिगत चरित्र के साथ एक सामाजिक चरित्र भी होता है. आप फ्रांस, अफ़ग़ानिस्तान, इटली हो या सीरिया, बेंगलुरु हो या दिल्ली, सब जगह एक ही बात में आएगी. यह विचार किसी और के अस्तित्व को स्वीकार ही नहीं करता.

भारत के मुसलमान भी अपने रक्त से हिन्दू ही हैं, उनकी जड़ों में भी वही सामाजिक चरित्र है जो हिन्दू समाज का है. लेकिन कुछ लोगों के मकड़जाल ने, 70 साल से वोट बैंक की राजनीति के कारण पैदा की गई आइडेंटिटी क्राइसिस ने और इस विचार की रूढ़ीवादिता ने उस मूल चरित्र को ढक दिया है. आप जब कहते हैं कि “आतंक का कोई धर्म नहीं होता”, “आग लगाने वाले इस्लाम को जानते नहीं हैं”, “इस्लाम तो शांति का मजहब है”, जब आप मंदिर को घेरकर बचाते हुए योजना से बनाए गए वीडियो को शेयर करके उस कट्टरता को ढंकने की कोशिश करते हैं तो आप एक विमर्श की सम्भावना को ख़त्म कर देते हैं. धर्मनिरपेक्षता के दबाव में, स्वीकार्यता के दबाव में, कूल बनने के दबाव में किसी की कट्टरता को वाइटवाश मत कीजिये. भारत की इस भूमि पर रहने वाला हर व्यक्ति इस समाज का अंग है और उसकी गलतियों को टोकना, उसकी कमियां उसके सामने लाकर उसे पुननिर्माण की और ले जाना हमारा दायित्व है. एक जिम्मेदार साथी की तरह आप अगर सच में चाहते हैं कि भारत का मुसलमान सुखी जीवन जिए तो मुसलमानों को इस कट्टरता से बचा लीजिये और ये तब होगा जब आप समस्या के मूल को पहचानेंगे, जब आप स्वीकार्यता की चिंता छोड़ जो गलत है, उसे गलत बोलने का साहस जुटा पाएंगे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

gaziantep escort bayangaziantep escortkayseri escortbakırköy escort şişli escort aksaray escort arnavutköy escort ataköy escort avcılar escort avcılar türbanlı escort avrupa yakası escort bağcılar escort bahçelievler escort bahçeşehir escort bakırköy escort başakşehir escort bayrampaşa escort beşiktaş escort beykent escort beylikdüzü escort beylikdüzü türbanlı escort beyoğlu escort büyükçekmece escort cevizlibağ escort çapa escort çatalca escort esenler escort esenyurt escort esenyurt türbanlı escort etiler escort eyüp escort fatih escort fındıkzade escort florya escort gaziosmanpaşa escort güneşli escort güngören escort halkalı escort ikitelli escort istanbul escort kağıthane escort kayaşehir escort küçükçekmece escort mecidiyeköy escort merter escort nişantaşı escort sarıyer escort sefaköy escort silivri escort sultangazi escort suriyeli escort şirinevler escort şişli escort taksim escort topkapı escort yenibosna escort zeytinburnu escort