समाज उत्थान के विचार के साथ विराम हुआ नर्मदा साहित्य मंथन के एक और सोपान का…

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ मनमोहन जी वैद्य ने राष्ट्र चिंतन विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा के राष्ट्र के जीवन का आधार अध्यात्म हैं। राष्ट्रीय शब्द का अर्थ राष्ट्र को समझना और राष्ट्र का चिंतन करना हैं।
भारत दुनिया में एकमात्र देश हैं जहां कोविड आपदा में सरकारी मशीनरी ने बहुत अच्छा काम किया हैं पर उससे भी अच्छी बात ये है कि लाखों लोग ये जानते हुए भी कि उनकी जान को ख़तरा हैं ,लोगो की मदद करने सड़को पर निकले और सेवा की।
दुनिया ने हमें बताया कि भारत कृषि प्रधान देश था पर वास्तव में पुरातन समय में भारत उद्योग प्रदान देश था।
हमारा “ हम “ का दायरा इतना बड़ा हैं कि हम किसी को अन्य मानते ही नहीं हैं।
सत्य एक हैं, इसको पाने के मार्ग अलग अलग हो सकते हैं यह भारत का विचार हैं यही भारत की विशेषता भी हैं ।

धर्म को अंग्रेज़ी में भी धर्म ही कहना चाहिए। धर्म को रिलिजन उचित नहीं हैं। रिलिजन का अर्थ उपासना पद्धति होना चाहिए।
धर्म को अंग्रेज़ी में भी धर्म ही कहना चाहिए। धर्म को रिलिजन उचित नहीं हैं। रिलिजन का अर्थ उपासना पद्धति होना चाहिए।
प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर तत्व हैं ऐसा केवल भारत ही मानता हैं यह भारत की विशेषता हैं।
सरकार सबकुछ करेगी हमारे यहाँ ऐसी मान्यता नहीं थी। न्याय ,सुरक्षा, विदेश संबंध सिर्फ़ राज्य का विषय था जबकि शिक्षा , स्वास्थ्य , व्यापार समाज का विषय था। जो व्यवस्था राज्य पर कम निर्भर होती हैं वो ज़्यादा प्रभावी होती हैं।
समाज को देना , परोपकार करना पुण्य कार्य हैं। जबकि समाज को अपना मानकर उसको लौटाना धर्म हैं।

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