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स्वर्गीय मामाजी की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित होने की मेरी तीव्र इच्छा थी. 7 अक्टूबर को ही मुझे समय भी मिला. आप सब पत्रकार हैं और आप जानते हैं कि अतिशयोक्ति पत्रकारिता की एक प्रिय शैली है. हम सब लोग मामाजी के कंधों पर हैं यानी मामाजी की वजह से ही आपको दिख रहे हैं. अब किसी ने कहा कि यह मामा जी कौन हैं? इसी में उनकी महानता छिपी है. बीज जब बे मिट्टी में मिल जाए तभी सार्थक होता है. बीज की ताकत उसका समर्पण है. बीज से वृक्ष बनता है तो बीज को धरती में मिल जाना पड़ता है. डॉ हेडगेवार ने मामा जी जैसे तरुणों की पहचान की और उनकी प्रतिभा के अनुरुप उनको काम में लगाया. जब चारों तरफ अंधेरा हो तब कुछ करना ही मनुष्य जीवन की सार्थकता है. वे हंसते हंसते अपने जीवन को चढ़ा गए. इमरजेंसी में उन्हें पकड़ने के लिए जब पुलिस गई तो वे कार्यालय के बाहर बैठे थे. पुलिस ने पूछा कि संपादक कहां है तो यह बोले कि मैं ही हूं, तो पुलिस वाले बोले कि चलो छोड़ो, चौकीदार होकर संपादक बनते हो. इतने सरल व्यक्ति थे. पुलिस दल में से ही कोई बोला कि यही हैं बड़े आदमी इनसे सम्मान से बात करो. ऐसा उनका संपूर्ण आत्मविलोपी व्यक्तित्व था.
एक बार मैंने एक कहानी सुनाई थी आडवाणी जी की पुस्तक के प्रकाशन के समारोह में. एक गांव था. उसमें बहुत अनाचार था पर एक घर सदाचारी भी था. घर की गृहणी ने एक दिन अग्निहोत्र की राख में थूक दिया तो वह सोने में बदल गया. गृहस्वामी ने पूछा कि यह सोना कहां से आया और पत्नी को थोड़ा डांट दिया तो पत्नी ने गांव छोड़कर जाने की जिद पकड़ ली. बहुत जिद करने पर जब वे गांव छोड़कर थोड़ी दूर पहुंचे तो पलट कर देखा कि गांव में आग लग गई है. अब पत्नी हैरान हुई तो पति बोले कि मैं यह जानता था इसीलिए मैं गांव नहीं छोड़ना चाहता था. यह होता है सबके अनाचार को बैलेंस करने वाला आदमी. ऐसे लोग बीज होते हैं. जब जंगल में आग लगती है तो सब जीव भाग खड़े होते हैं पर बीज पड़े रहते हैं, उन्हीं से जंगल फिर हरा हो जाता है. स्वामी विवेकानंद जी ने एक बार कहा कि इस धरती पर ईसा और बुद्ध के अलावा भी बहुत से महान पुरुष आए और अपना काम चुपचाप करके चले गए, किसी को खबर नहीं होने दी. लोग मोहन भागवत को जान पाएंगे परंतु डॉ हेडगेवार और मामा जी जैसे लोगों को नहीं देख पाएंगे यही इनकी महानता है
कोरोना से क्या डरना? परिस्थितियों से वे तो कभी नहीं डरे. ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर. हमें यदि विश्व को अपना बनाना है तो पहले भारत का अपनापन हममें झलकना चाहिए. पहले वे भिंड जिले में प्रचारक थे. 1947 में सब जगह दंगे रहे थे, ऐसे दौर में भी मामाजी जैसे पक्के हिंदुत्ववादी का भरोसा मुसलमानों तक में इतना ज्यादा था कि दंगो के डर से जब मुसलमान सुरक्षित जगह पर गए तो अपने घरों की चाबियां मामाजी के हवाले कर गए. कोई कोई तो साल भर बाद लौटे अपनी चाबियां वापिस लेने. मैं उनके संपर्क में ज्यादा नहीं रह पाया, अपने जीवन की इस कमी की पूर्ति के लिए ही मैं आज के कार्यक्रम में आया हूं. ऐसे कार्यक्रमों की उन जैसों को कोई जरुरत नहीं होती, यह तो हमारे मन की कृतज्ञता है जिससे ऐसे कार्यक्रम होते हैं. रत्नों के दीप जो होते हैं उन्हें कुछ नहीं चाहिए होता, न स्नेह यानी तेल और न पात्र यानी बर्तन. वे तो सदा लोकहितरत रहते हैं और स्वयं ही प्रकाश देते रहते हैं. मामाजी ने तो चुनाव भी लड़ा, जेल भी गए परंतु सब कुछ कर्तव्यभावना से किया. जो कोई भी उनके संपर्क में आया उसको उनसे प्रेम और प्रकाश ही मिला. मनुष्यता के बारे में धारणा क्या है, भारत की भारतीयता का सार क्या है, वह है अपनत्व. संत ज्ञानेश्वर जी ने बताया है कि कैसे होते हैं सज्जन. सज्जन वे होते हैं जो लोगों को उनके अपनों जैसे ही लगते हैं. ऐसे ही सज्जन थे मामाजी. मामाजी दिखने में इतने साधारण थे कि कोई अनजान व्यक्ति तो उन्हें पढ़ा लिखा भी न माने.
हमारे एक मित्र इंजीनियर थे, स्वयंसेवक भी थे. अपने कार्यालय में उन्होंने रिश्वत लेने से इंकार कर दिया, काम भी पूरा कर दिया. आग्रह करने पर भी रिश्वत नहीं ली तो उनके साहब ने उन्हें बुलाया और समझाया कि आप ऑफिस के सिस्टम को मत डिस्टर्ब करो. अपने हिस्से की रिश्वत ले लो और किसी अच्छी संस्था को दान कर दो. मित्र ने मुझसे सलाह ली तो मैंने उन्हें सुझाया कि वह अपने विवेक से निर्णय करें. तो उन्होंने अपनी नौकरी ही छोड़ दी. ठेकेदारी का व्यवसाय खड़ा करके प्रमाणिकता से करने लगे. तो इस तरह से परिस्थितियां उच्च और निम्न दोनों ही तरह की हमारे सामने आती हैं. मामाजी जैसे लोगों के जीवन के कारण ही हमारे जैसों के जीवन बनते हैं. इनके कारण ही हम बुढ़ापे में कह सकते हैं कि हम भी थोड़ा मनुष्यों की तरह जिए. मामाजी ने जिन क्षेत्रों में काम किया, उनमें से एक पत्रकारिता का भी क्षेत्र है. उनके स्मरण से पत्रकारिता का पूरा वातावरण ही सुधर सकता है. इस दिशा में हमें विचार करके प्रयास करना चाहिए.