बंद तहखाने में उम्मीद की किरण

       कुछ समय पूर्व ही राजा भोज की नगरी धार में भोजशाला में  नर्मदा साहित्य मंथन के  समय देखने का अवसर प्राप्त हुआ, तब हेरीटेज वॉक इसमें भोजशाला में प्रवेश करते ही एक अलग सा आभास प्रवेश द्वार से ही हुआ जिसमें कई जगह पिंजरे ताले लगे हुए ,वही प्रवेश करते ही  प्रांगण में विशाल हवनकुंड व आस पास कुछ टूटे फूटे गलियारे थे  ।निकट जाकर देखा तो गुम्बज सप्तकमल का बना वही लक्ष्मी यंत्र व भगवान श्रीराम लक्ष्मन माँ सीता की चित्रकारी गुदी हुई दिखी व जमीन पर देखा तो माँ सरस्वती के बीज मंत्र पत्थरो पर लिखे हुए । ऐसा लगा कि कोई धर्म आधारित जानकारी रखने वाला बच्चा भी अगर भोजशाला आये तो प्राप्त जानकारी तथ्य आधार पर बता सकता हैं कि पूरे भोजशाला को षडयंत्रकारी नीतियों से तहस नहस कर दिया गया है।

   14 वी शताब्दी में माँ सरस्वती के वरदपुत्र सम्राट भोज ने सँस्कृत विश्वविद्यालय के स्थापना भोज नगरी धार में  की राजा भोज साहित्य, कला, विज्ञान ,ज्योतिष, वास्तुशास्त्र आदि में अपना वर्चस्व रखते थे । लेकिन  हम ये ना भूले की वेदों से ही विज्ञान जन्मा हैं, भारत शुरू से ही आध्यत्म का केंद्र रहा इसी दौर में राजा भोज भी माँ सरस्वती की आराधना में का कठोर तप किया इसी से माँ सरस्वती कूप में प्रगट हुई  इसी के चलते नगरी शिक्षा की धारा जो वर्तमान में धार हैं। वहां  हिंदू धर्म के अध्ययन के प्रचार प्रसार हेतु भोजशाला का निर्माण कराया जहाँ   राजा भोज ने देश विदेश से आने वाले छात्रों के लिए सरस्वती कूप का निर्माण कराया इस कूप का पानी काफी लाभदायी माना जाता था कहा जाता हैं बुद्धि की मानक क्षमता में इसे पीने से वृद्धि होती हैं। वर्तमान में ये सरस्वती कूप भोजशाला के बाहर विशेष समाज के लिए  है व अन्य के लिए बंद है ।

       11 मार्च 24 को उच्च न्यायालय द्वारा भोजशाला के अस्तित्व की बहस के सार्थक परिणाम सामने आए  जिसमे आर्किओलॉजीकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (ASI) द्वारा भोजशाला से तथ्यो को जांच के आदेश दिए गए है । ये हर्ष का विषय तो है लेकिन विचारणीय हैं तीन बार पूर्व में याचिका दायर करने के बाद उसे खारिज कर दिया गया आखिर क्यों?  भारत के धर्म आधारित जुड़े सिर्फ हिन्दू आधारित मुद्दों को ही क्यों न्यायालय काफी लंबे समय तक इन्तेजार क्यों? क्या न्यायपीठ खुद मोके की जांच नही कर सकती बजाए तथ्यो को सामने रखा जाये ,इस प्रकार के तहख़ानों में बंद तथ्यो को न्याय की टेबल पर रखने के बजाए न्याय पीठ स्वयं मुआयना करे तो पूर्व की स्थिति परिस्तिथियों का अनुमान लगाया जा सकता हैं । तब जब भोजशाला भी  काफी हद तक साक्ष्यों के साथ तोड फोड़ की गई व जग जाहिर हैं कि राजा भोज निर्मित अध्ययन शाला स्वरूप विदिशा का विजय मन्दिर व चित्तौड़ का समाधीश्वर मन्दिर वही काश्मीर के कपटेश्वर महादेव मन्दिर ,कोटेर, अनन्तनाग कश्मीर के भग्नावशेष मौजूद है ,वही ओम्कारेश्वर में मान्धाता पर्वत अपनी जीर्ण शीर्ण अवस्था की कहानी कह रहा कि किस तरह आक्रांताओं के सतत प्रहार से जन जन की आस्था व श्रद्धा के टुकड़े कर लूट लिए गए।

      फिलहाल फिर एक इन्तजार की जल्दी ही ब्रिटेन के म्यूज़ियम में रखी माँ वाग्देवी की मूर्ति जिसकी ऊँचाई 1285 mm व चौड़ाई586 mm हैं लौट कर यथा स्थान आएगी। इस प्रतिमा का निर्माण माहिर सूत मणिथल द्वारा कराया गया ब्रिटेन संग्रहालय में रखी मूर्ति जिसका सीधा हाथ साफ ये कह रहा कि पहले मुगलों ने तोड़ा फिर उसे उठा कर ब्रिटिशर अपने संग्रहालय में ले गए। माँ वाग्देवी प्रतिमा के मूल शिला अभिलेख में डॉ भगवती लाल राजपुरोहित द्वारा वाचन किया गया जिसमें लिखा है ।

ओम। स्त्री (श्री) मदभोजनरेंद्रचंद्र नगरी विद्याधरी (शा) म्भवी: यो ह्रा। नाम स्मरण व: खलु सुखं प्रस्थाव्यापमयाप्सरा:। वागदेवी प्रथम विधाय जननी यस्या ज्जिता वात्रधी: मत्यु ( भ्यु ) झअटित्व (थ ?) फ़लाधिकां (?) वररुचि: भ ( च्य ) भ्यर्चानांम (?)निम्ममें इति सुंभ ।। सूत्रधार महिरसुतमणथलेंण घटितँ।। विश्वेलिक सिवदेवनेंन लिखितमिति।

तदनुरूप भावार्थ प्रकट होता हैं कि ये मनोहरी प्रतिमा माँ वागदेवी (सरस्वती) की है ,औऱ राजाभोज की नगरी (धारा) की विधा को धारण करती हैं ।ये अधिकाधिक शीघ्र फल देने वाली इस मनोहर प्रतिमा का निर्माण सर्वप्रथम माहिरसुत मणिथल ने किया व शिवदेव ने लेखलिखा । संवत 1091।

 बात सिर्फ माँ वाग्देवी की मूर्ति को वापस लाना या धर्म के अस्तित्व को सबूत मांगने की नही वरन भारत मे अभी भी न्याय के लिए ,भारत के ही देवी देवताओ को न्यायालय में अपने होने का प्रमाण देने की हैं आखिर कब तक??

जिम्मेदारी हमारी सत्य को झुठला नही सकते व सत्य उम्मीद पर सदा खरा रहता हैं। बंद तहख़ाने में फिर एक उम्मीद की किरण न्याय के इन्तजार में रहेगी।

लेखिका- निवेदिता सक्सेना

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