
मुख्य धारा का मीडिया और सोशल मीडिया दोनों की ही दिलचस्पी सस्ती सनसनीखेज घटनाओं में ज्यादा होती है। जान बचाना उतनी बड़ी खबर नहीं होती जितनी जान ले लेना! इस वजह से कईं बार सरकार द्वारा किए जा रहे विकासोन्मुखी कार्यों की चर्चा हाशिए पर चली जाती है और क्षुद्र विषयों पर बहसों के अंबार लगे रहते हैं।
कुछ ऐसी ही स्थिति हाल के शीतकालीन संसद सत्र में पारित हुए SHANTI विधेयक की रही। दरअसल SHANTI विधेयक भारत की परमाणु ऊर्जा से सम्बन्धित बनाया गया नया अधिनियम है जिसमें पूर्व में बने हुए परमाणु नीति को प्रभावित और क्रियान्वित करने वाले कुछ भिन्न भिन्न अधिनियमों को समाहित कर लिया गया है और साथ ही कुछ महत्वपूर्ण सुधार भी किए गए हैं। SHANTI यह नाम वस्तुतः Sustainable Harnessing and Advancement of Nuclear Energy for Transforming India का संक्षिप्त रूप है।
भारत द्वारा पहला परमाणु परीक्षण 1974 में पोखरण में किया गया था। परन्तु इससे बहुत पूर्व, डॉ होमी जहांगीर भाभा के नेतृत्व में, 1948 में ही भारत में परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में अनुसन्धान आदि के कार्य प्रारम्भ हो चुके थे। स्वभावतः इस संदर्भ में कुछ नियमावलियां भी बनाई गईं। इसके चलते परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1962, रेडियोधर्मी उत्सर्जन सुरक्षा अधिनियम 2004, परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 जैसे अधिनियमों के साथ परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड की भी स्थापना की गई। इस बीच सोनिया गांधी की UPA सरकार के कार्यकाल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आग्रह पर भारत और अमेरिका के बीच परमाणु संधि पर हस्ताक्षर भी हो गए। उम्मीद यह थी कि आने वाले वर्षों में परमाणु ऊर्जा की सहायता से स्वच्छ विद्युत उत्पादन प्रारम्भ होगा। इस हेतु विदेशी निवेश भी अपेक्षित था और परिणामस्वरूप रोजगार में वृद्धि भी। परन्तु ऐसा कुछ हो नहीं पाया।
दरअसल, परमाणु ऊर्जा के संयंत्र में दुर्घटना की स्थिति में विकिरण के माध्यम से होने वाली हानि को लेकर इन नियमों में जो शर्तें रखी गई थी, उनकी वजह से विगत 15 वर्षों में कोई भी विदेशी निवेशक भारत में परमाणु संयंत्र लगाने हेतु आगे नहीं आया। इन नियमों में प्रावधान था कि यदि किसी परमाणु संयंत्र में दुर्घटना की वजह से जान माल की हानि होती है तो ऐसे संयंत्र के निर्माता भी नुकसान भरपाई के लिए उत्तरदाई होंगे। इस शर्त की वजह से कोई भी संयंत्र निर्माता किसी ऊर्जा उत्पादक को संयंत्र उपलब्ध कराने को राजी नहीं हो रहा था। इसे सरल भाषा में ऐसे समझा जा सकता है कि यदि कोई अपराधी अपनी बंदूक से किसी की हत्या कर देता है तो बन्दूक निर्माता भी उस हत्या के लिए उत्तरदाई माना जाएगा! निश्चित ही ये शर्ते पालन करना असंभव था।
नए सुधारों में इस शर्त को हटा दिया गया है। साथ ही दुर्घटना की स्थिति में, संयंत्र चलाने वाली कंपनी द्वारा दी जाने वाली नुकसान भरपाई की राशि की भी एक अधिकतम सीमा ₹3000 करोड़ तक तय कर दी गई है। इस जिम्मेदारी को खुला रखना भी निवेश में बाधा बन रहा था। परमाणु ऊर्जा से विद्युत उत्पादन करने वाली कंपनियां, इस नुकसान भरपाई की राशि का भार वहन करने हेतु इंश्योरेंस करवा कर रखती है। यदि यह राशि खुली रखी जाय, तो इंश्योरेंस करना लगभग असम्भव हो जाता है। यह भी एक बड़ी समस्या थी। भरपाई की सीमा तय करने से निवेशकों को यहां भी राहत मिलेगी।
समय समय पर परमाणु ऊर्जा से विद्युत उत्पादन संबंधी अलग अलग अधिनियम बनते रहे, इसलिए उनका अनुपालन भी मुश्किल हो चुका था। अब इस नए SHANTI अधिनियम के तहत इन भिन्न भिन्न अधिनियमों को समाहित कर लिया गया है जिसकी वजह से नियमों का पालन और नियंत्रण सरल हो पाएगा।
आज भारत के कुल विद्युत उत्पादन का मात्र 1% ही परमाणु ऊर्जा से आता है। रशिया में यह 70% है। अन्य विकसित देशों में 10 से ले कर 40% विद्युत उत्पादन, परमाणु ऊर्जा से किया जाता है। चूंकि परमाणु ऊर्जा उत्पादन में प्रदूषण काफी कम होता है तथा यह सतत उत्पादन की अत्यन्त विश्वसनीय प्रक्रिया है, इसलिए भारत के लिए परमाणु विद्युत उत्पादन संयंत्र स्थापित करना लाभप्रद भी हैं और आवश्यक भी। सरकार द्वारा पारित SHANTI विधेयक इस दिशा में एक ठोस कदम है।
भारत में ऊर्जा की खपत लगातार बढ़ती जा रही है। आर्थिक विकास के चलते नए उद्योग भारत में तेजी से बढ़ रहे हैं। सेमी कंडक्टर और और डाटा सेंटर जैसे उद्योगों को 24×7 ऊर्जा की बड़ी मात्रा में आवश्यकता होती है। समाज की समृद्धि भी बढ़ रही है। स्वभावतः निजी जीवन में भी विद्युत ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। ऐसी स्थिति में परमाणु ऊर्जा से विद्युत उत्पादन के संयंत्रों की स्थापना एक बड़ी आवश्यकता है। आने वाले दो तीन दशकों में सरकार परमाणु ऊर्जा से विद्युत उत्पादन को वर्तमान 1.5 गीगा वॉट से 100 गीगा वॉट तक ले जाना चाहती है। यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। परन्तु यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो न्यूनतम प्रदूषण के साथ से समुचित मात्रा में स्वच्छ विद्युत उत्पादन निश्चित लगभग असंभव हो जाएगा। SHANTI अधिनियम के माध्यम से लाए गए सुधार इस दिशा में नई संभावनाएं पैदा करेंगे। यह तो भविष्य ही बताएगा कि इन सुधारों से जमीनी स्तर पर रूपांतरण हो पाएगा या नहीं?
श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर