गोंड जनजाति में दीपावली कहीं-कहीं कार्तिक माह की अमावस्या को ही सम्पन्न होती है तो कहीं-कहीं कुवार मास की अमावस्या से प्रारंभ होकर कार्तिक पूर्णिमा तक पन्द्रह दिन तक मनाई जाती है।
गोंड लोग अमावस्या की रात्रि में दौगुन गुरू और अन्न की पूजा करते हैं। वहीं, मंत्र सिद्धि व गुरू मंत्र लेने के साथ ही औषधियों को जागृत करते हैं। अगले दिन लक्ष्मी/गोवर्धन पूजा करते हैं।
गोंड जनजाति में मान्यता है कि पृथ्वी पर इसी तिथि को अन्न व लक्ष्मी (गाय) आये। यह भी मान्यता है कि दौगुन पूजन से ही दीपावली का जन्म हुआ है। अत: उनकी पूजा दीपावली में की जाती है।
दीपावली के दिन व्रती मुखिया संध्या के समय घर में आटा का चौका पूरते हैं। गेरु (गेर) से पोते हुए बाँस की टोकनी (टोकरी) में चावल, फूल रखकर घी का दीया जलाया जाता है। ऐसी पद्धति भारत के विभिन्न समाजों में प्रचलित है।
कुलदेवी, दौगुन गुरु व पूर्वजों के लिये, इसके अलावा घर के विभिन्न हिस्सों में दीये जलाये जाते हैं। मवेशियों के शरीर पर गेरू (गेर) लगाया जाता है