मध्यप्रदेश के धार जिले में विन्ध्य पर्वत की सुरम्य श्रृंखलाओं के बीच द्वापरकालीन ऐतिहासिक अझमेरा नगर बसा है. वर्ष 1856 में यहां के राजा बख्तावर सिंह ने अंग्रेजों से खुला युद्ध किया, पर उनके आसपास के कुछ राजा अंग्रेजों से मिलकर चलने में ही अपनी भलाई समझते थे. राजा ने इस स्थिति हताश न होते हुए तीन जुलाई, 1857 को भोपावर छावनी पर हमला कर उसे अपने कब्जे में ले लिया. इससे घबराकर कैप्टन हचिन्सन अपने परिवार सहित वेश बदलकर झाबुआ भाग गया. क्रान्तिकारियों ने उसका पीछा किया, पर झाबुआ के राजा ने उन्हें संरक्षण दे दिया. इससे उनकी जान बच गयी.
भोपावर से बख्तावर सिंह को पर्याप्त युद्ध सामग्री हाथ लगी. छावनी में आग लगाकर वे वापस लौट आये. उनकी वीरता की बात सुनकर धार के 400 युवक भी उनकी सेना में शामिल हो गये, पर अगस्त, 1857 में इन्दौर के राजा तुकोजीराव होल्कर के सहयोग से अंग्रेजों ने फिर भोपावर छावनी को अपने नियन्त्रण में ले लिया. इससे नाराज बख्तावर सिंह ने 10 अक्तूबर, 1857 को फिर से भोपावर पर हमला बोल दिया. इस बार राजगढ़ की सेना भी उनके साथ थी. तीन घंटे के संघर्ष के बाद सफलता एक बार फिर राजा बख्तावर सिंह को ही मिली. युद्ध सामग्री को कब्जे में कर उन्होंने सैन्य छावनी के सभी भवनों को ध्वस्त कर दिया.
ब्रिटिश सेना ने भोपावर छावनी के पास स्थित सरदारपुर में मोर्चा लगाया. जब राजा की सेना वापस लौट रही थी, तो ब्रिटिश तोपों ने उन पर गोले बरसाये, पर राजा ने अपने सब सैनिकों को एक ओर लगाकर सरदारपुर शहर में प्रवेश पा लिया. इससे घबराकर ब्रिटिश फौज हथियार फेंककर भाग गयी. लूट का सामान लेकर जब राजा अझमेरा पहुंचे, तो धार नरेश के मामा भीमराव भोंसले ने उनका भव्य स्वागत किया. इसके बाद राजा ने मानपुर गुजरी की छावनी पर तीन ओर से हमलाकर उसे भी अपने अधिकार में ले लिया. 18 अक्तूबर को उन्होंने मंडलेश्वर छावनी पर हमला कर दिया. वहां तैनात कैप्टेन केण्टीज व जनरल क्लार्क महू भाग गये. राजा के बढ़ते उत्साह, साहस एवं सफलताओं से घबराकर अंग्रेजों ने एक बड़ी फौज के साथ 31 अक्तूबर, 1857 को धार के किले पर कब्जा कर लिया. नवम्बर में उन्होंने अझमेरा पर भी हमला किया.
बख्तावर सिंह का इतना आतंक था कि ब्रिटिश सैनिक बड़ी कठिनाई से इसके लिए तैयार हुए, पर इस बार राजा का भाग्य अच्छा नहीं था. तोपों से किले के दरवाजे तोड़कर अंग्रेज सेना नगर में घुस गयी. राजा अपने अंगरक्षकों के साथ धार की ओर निकल गये, पर बीच में ही उन्हें धोखे से गिरफ्तार कर महू जेल में बन्द कर दिया गया और घोर यातनाएं दीं. इसके बाद उन्हें इन्दौर लाया गया. राजा के सामने 21 दिसम्बर, 1857 को कामदार गुलाबराज पटवारी, मोहनलाल ठाकुर, भवानीसिंह सन्दला आदि उनके कई साथियों को फांसी दे दी गयी, पर राजा विचलित नहीं हुए. वकील चिमनलाल, राम सेवक मंशाराम तथा नमाजवाचक फकीर को काल कोठरी में बन्द कर दिया गया, जहां घोर शारीरिक एवं मानसिक यातनाएं सहते हुए उन्होंने दम तोड़ा. अन्ततः 10 फरवरी, 1858 को इन्दौर के एमटीएच कम्पाउण्ड में देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले राजा बख्तावर सिंह को भी फांसी पर चढ़ा दिया गया.