जीवन में तटस्थ रहना कठीन है, उससे कहीं अधिक कठिन है व्रतस्थ रहना. यदि वह व्रत छत्रपति शिवाजी महाराज के चरित्रकथन का हो, तो वह व्रत शिवधनुष को तोलने के समान है. परंतु यह शिवधनुष्य ७५ वर्षों से अपरिमित शक्ति, श्रद्धा एवं निष्ठा से तोलने वाला एक व्यक्तित्व थे महाराष्ट्र भूषण, पद्मविभूषण, शिवशाहीर बलवंत मोरेश्वर उपाख्य बाबासाहेब पुरंदरे.
शाहीर का अर्थ है महाराष्ट्र के गौरवशाली इतिहास को गीत-संगीत के माध्यम से जनमानस तक लेकर जाने वाला गवैया. बाबासाहेब पुरंदरे वास्तव में कोई गायक नहीं थे, लेकिन उनको यह सम्मान छत्रपति शिवाजी महाराज के घराने की राजमाता सुमित्रा राजे भोंसले ने दिया था.
कुछ महीनों पहले, शिवशाहीर बाबासाहेब पुरंदरे अपने जीवन के १००वें वर्ष में प्रवेश करे चुके थे. सोमवार प्रात: काल ५:०७ बजे, अपनी इतिहास यात्रा की समाप्ति कर वह अनंत की यात्रा के लिये चल दिये.
उनके जीवनकाल का दर्शन एवं अल्प परिचय देने का प्रयत्न इस लेख द्वारा हम कर रहे हैं. शिवशाहीर बाबासाहेब पुरंदरे ने न केवल इतिहास को जनता तक पहुँचाया; बल्कि ऐसा लगता है कि इसके पीछे की प्रेरणा एवं भव्यता को भी जनमानस तक पहुँचाया है.
इतिहास को वस्तुनिष्ठ ढाँचे तक सीमित करने की बजाय, लोगों के मन में इतिहास को जीवित करना, इतिहास की रुचि निर्माण करना आवश्यक है. इस विचार को दृष्टि में रखकर उन्होंने ललित साहित्य के माध्यम से शिवचरित्र का लेखन किया.
छत्रपति शिवाजी महाराज का चरित्र जिसे शिवचरित्र कहा जाता है, यह एक ही चरित्र उन्होंने, लेखन, नाट्य एवं कथाकथन के माध्यम से प्रस्तुत किया था. इसी के साथ, शिल्पकला एवं चित्रकला के माध्यम से यह इतिहास जीवित रखने हेतु उन्होंने शिवसृष्टी का निर्माण भी किया था.
वास्तव में “वाघ” उपनाम धारण करने वाला खानदान, महाराष्ट्र के पुरंदर किले पर वास्तव्य करने आया और तबसे “पुरंदरे” नाम से प्रसिद्ध हो गया. जागीर, संपत्ति एवं सरंजाम से संपन्न यह घराना “श्रीमंत” की उपाधि से गौरवांकित हो गया.
अपने बाल्यावस्था की यादें कथन करते समय, बाबासाहेब यह कहते थे कि उनके घर (पुरंदरेवाडा/ हवेली) छत्रपति खानदान का सदस्य, साधू-संत, सत्पुरुष, प्रतिष्ठित नागरिक का आगमन होने पर उनका स्वागत बड़े जोरों से होता था. पैठणी (महाराष्ट्र का एक प्रसिद्ध एवं मूल्यवान वस्त्र), शालू आदि वस्त्रों की कालीन बिछाई जाती थी. बाबासाहेब पुरंदरे के पिता श्रीमंत मोरेश्वरपंत इतिहास में रुचि रखने वाले थे. अपने पिता द्वारा उपलब्ध कराए गए ऐतिहासिक उपन्यासों, बखरों (इतिहास कथा का संग्रह) एवं वि. का. राजवाडे की शोधपरक लेखमाला आदि ग्रंथों का अध्ययन बाबासाहेब ने किया था.
युवावस्था में जब वे पुणे के “इतिहास शोधकार्य मंडल” के सदस्य बने, तब प्रा. ग. ह. खरे, अप्पासाहेब पवार आदि इतिहास के वरिष्ठ शोधकर्ताओं से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी. इतिहास के उपलब्ध अस्सल संदर्भ ग्रंथ, पत्र व अखबार आदि साधनों के सहयोग से उन्होंने अपना “ठिणग्या” (चिंगारीयां) नामक कथासंग्रह प्रकाशित किया था.
तत्पश्चात्, अधिक संदर्भ शोध, ऐतिहासिक घटनास्थलों, घटनाओं से संबंधित घरानों, वास्तु आदि पर प्रत्यक्ष जाकर भूगोल, संस्कृति व परंपरा आदि के अभ्यासपूर्ण एवं सूक्ष्म निरीक्षण से, अत्यंत सहज परंतु हृदय के तार छेड़ने वाली लेखन शैली का उपयोग करते हुए एक महाग्रंथ की निर्मिति उन्होंने की थी.
उस महाग्रंथ का नाम है “राजाशिवछत्रपति”. इस महाग्रंथ के १७ से अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं. ५ लाख से अधिक वाचकों तक छत्रपति शिवाजी महाराज का चरित्र पहुंचाने का कार्य इस महाग्रंथ ने किया है.
इस महाग्रंथ के साथ ही “जाणता राजा” (जनता के दर्द को समझने वाला राजा) नामक एक महानाट्य का लेखन एवं निर्देशन भी बाबासाहेब ने किया था. २०० से ज्यादा कलाकार, घोड़े, हाथी एवं घटनास्थलों को जीवित करने वाले नैपथ्य के साथ इस महानाट्य की महाराष्ट्र, भारत ही नहीं संपूर्ण आशिया महाद्वीप में १५०० से अधिक बार प्रस्तुतियां हो चुकी हैं.
बाबासाहेब पुरंदरे को जिस प्रकार सिद्ध हस्तलेखन कला अवगत थी, उसी प्रकार अमोघ, मिठासपूर्ण परंतु अत्यंत प्रभावी वक्तृत्व कला, वाणी भी प्राप्त थी.
अपनी अलंकारिक वाणी से मूलतः अलौकिक शिवचरित्र उन्होंने १२००० बार प्रभावी रूप से कथन किया है.
राजमाता सुमित्राराजे भोंसले, पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, पूर्व उप प्रधानमंत्री यशवंतराव चव्हाण, पूर्व मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल, शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, इतिहास शोधकर्ता न. र. फाटक, कवि कुसुमाग्रज, सेतु माधवराव पगडी, आचार्य अत्रे, शिवाजी राव भोसले, नरहर कुरुंदकर, लता मंगेशकर, डॉ. रघुनाथ माशेलकर, डॉ. विजय भटकर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे महनीय एवं नामांकित व्यक्तियों ने बाबासाहेब पुरंदरे के कार्य एवं शोध का सम्मान किया है.
डी.वाई. पाटील विश्वविद्यालय ने उन्हें इतिहास शोधकार्य में अमूल्य योगदान के लिये ‘डी.लिट’ (डॉक्टरेट इन लिटरेचर) से सन् २०१३ में गौरवांकित किया था.
उक्त साहित्य निर्माण के साथ ही वे, स्वतंत्रता सेनानी भी थे, पुर्तगालियों से दादरा-नगर हवेली मुक्त करने हेतु हुए मुक्ति संग्राम में सहभागी रहे थे.
कुछ वर्ष पहले, मैं और मेरे साथी बाबासाहेब पुरंदरे का सम्मान करने हेतु उन्हें मिलने गये थे. तब उन्होंने कहा था कि “शिवचरित्र एवं इतिहास का कथन करना यह मेरा कर्तव्य है; और कर्तव्य करने के लिये सम्मान लेना उचित नहीं. लेकिन आप सभी जिस प्रेमभाव से आये हो, उस प्रेमभाव को मैं नहीं ठुकरा सकता. इसलिये आपका स्नेह एवं प्रेम मैं आदरपूर्वक स्वीकार करता हूं.”
मुझे लगता है, लाखों श्रोताओं और बड़ी हस्तियों से सम्मानित होने के उपरांत, मुझ जैसे साधारण कार्यकर्ता से इतने विनम्रता से व्यवहार करना; यही उनके बुलंद व्यक्तित्व की पहचान थी. विद्या विनयेन शोभते इस वचन की अनुभूति बाबासाहेब से मिलकर हमें हुई.
उनको सरकार द्वारा प्राप्त पुरस्कारों से प्राप्त हुई धनराशि में, अपनी व्यक्तिगत धनराशि को जोड़कर कैंसर पीडितों के इलाज हेतु उन्होंने समर्पण किया था. एक सत्शील, दानी, सकल प्रतिभा संपन्न, अखंड शिवचरित्रकथन व्रतधारी, वरिष्ठ साहित्यिकार ने इस लोक की यात्रा समाप्त की. उनका हमें छोड़कर जाना हम महाराष्ट्र के संपूर्ण साहित्य विश्व का बहुत बड़ा नुकसान है.
शत-शत नमन कर, श्रद्धांजलि अर्पण करता हूं.
श्रीपाद श्रीकांत रामदासी
धायरी पुणे.