आतंकवाद के दौर में जम्मू—कश्मीर के सैकड़ों मंदिर इस्लाम की बर्बरता वहशीपन का शिकार हुए। श्रीनगर का रघुनाथ मंदिर भी उनमें से एक था। इस दौरान सनातन संस्कृति के इन केंद्रों को जलाया गया तोड़ा गया देवमूर्तियों को खंडित कर दरिया में फेंक दिया गया। पर अब समय बदला है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और जम्मू—कश्मीर प्रशासन राज्य के विरासत स्थलों के संरक्षण—संवर्धन में जुटा है और उन्हें उनके पुराने स्वरूप में वापस ला रहा

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जम्मू—कश्मीर से अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद घाटी की न केवल आवोहवा बदली है बल्कि समूचा परिदृश्य बदलता दिखाई दे रहा है। केंद्र की मोदी सरकार और राज्य प्रशासन एक तरफ जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से घाटी के आवाम तक उनका हक पहुंचाने की कवायद में जुटा है तो वहीं कश्मीर की पहचान बनीं विरासतों के संरक्षण—संवर्धन के काम को भी गति मिली है। कश्मीर का प्रसिद्ध रघुनाथ मंदिर इसका उदाहरण है। श्रीनगर स्थित फतेह कदल के निकट वितस्ता किनारे बना सदियों पुराना यह मंदिर आज दूर से ही चमकता दिखाई देने लगता है। हो भी क्यों न ! मंदिर का जीर्णोद्धार जो तेज गति से किया जा रहा है।

दरसअल, यह मंदिर कश्मीरी हिन्दुओं के पलायन के बाद पिछले 30 वर्ष से आतंकवाद—अलगावाद के खतरे के चलते खंडहर बना हुआ था। घाटी के अराजक तत्वों ने इसे अड्डा बना रखा था। लेकिन अब राज्य पर्यटन विभाग मंदिर के भव्य स्वरूप को लाने के काम में जुटा हुआ है। मंदिर की मरम्मत का कार्य जोरों से चल रहा है। पर्यटन विभाग के अधिकारियों की मानें तो मंदिर को सजाने—संवारने में अभी कुछ महीने लगेंगे। जैसे ही काम पूरा हो जाएगा, मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए पहले की तरह खोल दिया जाएगा। बता दें कि केंद्र शासित प्रदेश में स्मार्ट सिटी योजना के तहत पुराने धर्म स्थलों एवं विरासतों के संरक्षण कार्य शुरू किया गया है।

जिहादियों ने जलाया था मंदिर को

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आतंकवाद के दौरान कश्मीर में मजहबी तत्वों ने सिर्फ हिन्दुओं को ही निशाना नहीं बनाया था बल्कि मठ—मंदिरों एवं सनातन संस्कृति से जुड़े अनेक स्थलों को या तो तहस—नहस कर दिया, जला दिया या फिर तोड़ दिया। अनेक मंदिरों की देवमूर्तियों को नष्ट किया गया या फिर दरिया में फेंक दिया था। रघुनाथ मंदिर भी उसी में से एक था। सन, 1989 में मजहबी कट्टरपंथियों की भीड़ ने मंदिर पर पहला हमला बोला। भीड़ ने यहा जमकर उत्पात मचाया। इसके बाद 24 फरवरी, 1990, 13 अप्रैल, 1991 और 8 मई, 1992 को जिहादियों ने मंदिर को निशाना बनाया। मंदिर में प्रतिष्ठित भगवान श्रीराम और माता सीता की देवप्रतिमाओं को खंडित कर वितस्ता में फेंक दिया। यज्ञशाला को बर्बाद कर दिया और पुस्तकालय को जला दिया। इस दौरान मंदिर के पास स्थित हिन्दुओं के कुछ मकानों को भी उन्मादियों ने निशाना बनाया। बस यही वह समय था, जिसके बाद से मंदिर वीरान हो गया। यहां आने से लोग डरने लगे। मंदिर की संपत्तियों को कब्जा किया जाने लगा।

आतंकवाद का यह वह दौर था, जब राज्य के सैकड़ों मंदिर इस्लाम की बर्बरता, क्रूरता, बहशीपन का शिकार हुए। समय—समय पर घाटी के मंदिर जलाए जाते रहे, उन्हें तोड़ा जाता रहा, हिन्दुओं की आस्था पर बर्बरता से कुठाराघात होता रहा लेकिन कहीं से इसके विरोध में कोई स्वर नहीं गूंजा। न ही घाटी के इस्लाम पसंद लोगों की ओर से और न ही देश के सेकुलरों की ओर से। उल्टा यह वर्ग मूक प्रश्रय देता ही दिखा। अल्लाह—हू—अकबर, नारा—ए—तकबीर चिल्लाती उन्मादी भीड़ ने घाटी में जो उत्पात मचाया, उसके चिन्ह आज भी देखे जा सकते हैं। कश्मीर में जिन स्थानों पर मंदिर थे, उन जगहों पर अवैध कब्जा करके मस्जिद-मजारे बनाई गई हैं। बड़े-बड़े होटल, रेस्टोरेंट खोल लिए गए हैं।

मंदिर का इतिहास

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कश्मीर के जानकारों का दावा है कि मंदिर 300 वर्ष पूर्व बना था। इसके बाद 1860 में डोगरा राजाओं ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराते हुए उसे भव्यता प्रदान की। लेकिन 1990 की शुरुआत के साथ ही घाटी में आतंवाद की शुरुआत हो गई और मंदिर आतताइयों के निशाने पर आ गया। खास बात यह थी कि मंदिर में कई अमूल्य पांडुलिपियां और धर्मग्रंथों पर आधारित पुस्तकालय था। सुप्रसिद्ध कश्मीरी साहित्यकार डॉ अग्निशेखर मंदिर के बारे में बताते हैं कि कश्मीर में वितस्ता के दोनों छोर पर जो भी मंदिर बने हैं, वह सभी डोगरा राजाओं ने बनवाए। रघुनाथ मंदिर भी जम्मू के हिन्दू डोगरा राजा ने ही बनवाया था। यह मंदिर ऐतिहासिक तो था ही घाटी का सांस्कृतिक केंद्र भी था। मंदिर में राम दरबार शोभायमान हुआ करता था। लेकिन 90 के दशक में आतंकियों ने इसे निशाना बनाया। उसके बाद मंदिर को बर्बाद किया जाने लगा। हालत यह हो गई कि परिसर में सारे गलत काम होने लगे। जब मंदिर अपने पूर्ण स्वरूप को प्राप्त था तो यह शिक्षा का केंद्र भी था। यहां रूपा देवी शारदा नामक ख्याातिप्राप्त स्कूल था, जिसे भी ढहा दिया गया था। इसके अलावा इसी मंदिर के साथ एक शोध संस्थान था, जहां संस्कृति, साहित्य, इतिहास को लेकर शोध होते थे। अब इस मंदिर का जीर्णोद्धार हो रहा है। निश्चित ही यह प्रसन्नता का विषय है। इस सबके बीच सरकार से मेरी एक मांग है कि राज्य में जहां—जहां सनातन स्थानों को हानि पहुंचाई गई है, उन सभी स्थानों का दस्तावेजीकरण जरूर किया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियों को हकीकत का पता चल सके कि मंदिर के साथ क्या हुआ था। इसके लिए मंदिर में एक स्थान को चिन्हित करके छोटा सा संग्रहालय बनाया जाए, जहां मंदिर के बारे में सारी जानकारी हो। अभी इसमें रिक्तता दिखाई देती है। सरकार की ओर से जो किया जा रहा हम सभी उसका स्वागत करते हैं, लेकिन पीढ़ियों को इतिहास बोध भी कराना जरूरी है, इसका ध्यान रखा जाना चाहिए।

कश्मीर में 740 मंदिरों की हालत जर्जर

कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति द्वारा मंदिरों को लेकर 2009 में एक सर्वेक्षण किया गया था। उस सर्वे के अनुसार कश्मीर में कुल 1,842 पूजा स्थल हैं, जिनमें मंदिर, पवित्र झरने, पवित्र गुफाएं और पवित्र वृक्ष शामिल हैं। 952 मंदिरों में से 212 अभी भी ठीक हैं, जबकि 740 जर्जर हालत में हैं।

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