बाजार मे किसी भी चीज को बेचने के लिए उसकी मार्केटिंग की आवश्यकता होती है। विज्ञापन के द्वारा वस्तु के गुणो को बताकर उपभोक्ता को वस्तु के उपयोग के लिए प्रेरित किया जाता है। लेकिन हम देख सकते है कि अधिकतर विज्ञापनो मे एक विशेष तरह का अजेंडा चलाया जाता है। प्रारम्भ मे देखने मे सबकुछ सामान्य सा लगता है लेकिन हम ध्यान से देखेगे तो पाएगे कि एक ही वस्तु के दो भिन्न विज्ञापनों में दो अलग-अलग वर्गो को लेकर अलग अलग मुद्दो को बताया जाता है। एसा हमेशा से हो रहा है और अभी भी जारी है।
वर्तमान मे एक विज्ञापन मे एक विवाह के समय को दिखाया गया है जिसमे दुल्हन बनी एक अभिनेत्री हिन्दू परम्पराओ और रीति रिवाजो पर आपत्ति जताते हुये नए शब्द गढ़ने का प्रयास कर रही है। जबकि वास्तव मे उसी अभिनेत्री के पिता ने अपनी ही बेटी के लिए कुछ एसा कहा था कि जिसे एक पिता सपने भी नहीं सोच सकता। अब बात आती है विज्ञापन मे अजेंडा की तो हम देखेंगे कि एक और अभिनेता है जिन्हे हम सदी के महानायक कहते है लेकिन वो उसी कंपनी के दूसरे विज्ञापन मे इस्लाम के एक त्योहार को बताते है और इस्लाम मे महिला सम्मान का संदेश बताते है। लेकिन उन्होने कभी सार्वजनिक जीवन मे तीन तलाक और निकाह-हलाला जैसी इस्लाम कि कु-प्रथाओ पर कुछ नहीं कहा। एक ही कंपनी के दो अलग विज्ञापन लेकिन मे हिन्दू परम्पराओ और रीतिरिवाजों का मखोल बनाना और दूसरे मे एक विशेष वर्ग को आधुनिक बताना।
अब एक और विज्ञापन की बात करते है जिसमे बताया जा रहा है कि कुछ महिलाए अपने अपने घरो कि छत बैठी है। और एक पुरुष अपने घर कि छत पर है जो निर्वस्त्र है। और वो पुरुष विवाहित महिलाओ को आकर्षित करने का प्रयास कर रहा है और उसी मे आगे बताया जाता है कि पड़ोस की एक विवाहित महिला उस युवक की और आकर्षित होती है। दिखने मे सामान्य सा लगता है लेकिन ध्यान से देखने पर हम पाएगे की महिलाओ का पहनावा हिन्दू परम्पराओ से प्रेरित है। जिसमे यह दिखाने का प्रयास है कि हिन्दू परिवार की महिलाओ कामुकता की और अधिक आकर्षित होती है। इसी प्रकार एक गर्भनिरोधक का विज्ञापन आता है जिसमे कामुकता कूट कूट कर भरी होती है। उस विज्ञापन मे भी महिला किरदार हिन्दू महिलाओ से प्रेरित होता है। इस तरह के विज्ञापनो मे किसी अन्य धर्म से प्रेरित किरदारो को नहीं दिखाया जाता है।
एसे ही अनेक विज्ञापन टेलिविजन और इंटरनेट पर चल रहे है। लगभग हर विज्ञापन मे एक बड़ा अभिनेता सम्मिलित है। जितने भी अभिनेता विज्ञापनो मे दिखाई देते है, उसके लिए उनको महनताना दिया जाता है। अभिनेताओ को कोई अंतर नहीं पड़ता है कि विज्ञापन मे क्या है। जिस विज्ञापन के लिए उन्हे उनकी फीस दी जाएगी वो अभिनेता उसी प्रकार ढ़ोल पीटने लगेगा। उन्हे केवल मिलने वाली राशि से मतलब होता है। और वस्तु बनाने वाली कंपनी को भी अपनी वस्तु के विज्ञापन से मतलब होता है। जिससे बाजार मे उनकी साख बन सके। असली षड्यंत्रकारी वो है जो विज्ञापन तैयार करने वाली कंपनियो में बेठे भारत विरोधी और समाज विरोधी लोग जीन्हे किसी भी प्रकार से भारत को नीचे दिखाने का काम करना है। एसे देश विरोधी और समाज विरोधी लोग हमे हर जगह मिलेगे हमे उन्हे पहचानना है। हमारी ज़िम्मेदारी यह है कि इस प्रकार के षडयंत्रो को समझकर सभी तक सही जानकारी पाहुचाए और लोगो को जागरुख रखे। और सही जगह पर अपना विरोध दर्ज करे।
– सनी राजपूत