
भारत मे केवल अयोध्या ही नही जहां बाहरी आक्रांताओ विशेषकर मुगलो ने यहाँ की सांस्कृतिक विरासत मन्दिरो को तोड़ा बल्कि कितने ही प्रान्त ओर शहर हैं जिनमे ऐसी घटनाएं दिखाई देती हैं ऐसी ही एक जगह है मध्यप्रदेश के धार की भोजशाला ….जिसे राजा भोज ने बनवाया था और जिसे आज मध्यप्रदेश की अयोध्या कहा जाता हैं
सन १३०५ में इस्लामी आक्रांता अलाउदीन खिलजी ने आक्रमण कर इस्लामिक राज्य की स्थापना के लक्ष्य को लेकर भोजशाला व हिन्दुओ के अनेकानेक मानबिन्दुओं को ध्वस्त किया |लेकिन परमारो के अभेद्य गढ़ मालवा पर आक्रमण कर इस्लामी साम्रज्य की भूमिका सं १२६९ से बन रही थी जब अरब मूल के एक व्यक्ति कमाल मौलाना ने तंत्र मंत्र और जादू टोने की सहायता से उनकी आड़ में सेकड़ो हिन्दुओ को मुसलमान बनाया ,३६ वर्षों तक मालवा राजय की समस्त जानकारियां एकत्रित कर अलाउद्दीन खिलजी को देता रहा ,जो कार्य बाहुबल और तलवारो के दम पर अलाउदीन खिलजी वर्षों तक मेहनत करके भी नहीं कर पाता वो काम कमाल मौलाना की सहयता से महीनो व हफ्तों का बनकर रह गया था ,खिलजी कमाल मौलाना के कहने पर भोजशाला की और बढ़ने लगा ,लेकिन शूरवीर वनवासी योद्धाओ ने उसका स्वागत अपने पारम्परिक शस्त्रों से किया और उसे आगे बढ़ने से रोका …..हज़ारो शूरवीर वनवासियों और राजा महलकदेव की मृत्यु के बाद ही खिलजी माँ सरस्वति के मंदिर भोजशाला की और आगे बढ़ पाया ,भोजशाला को ध्वस्त करने आये खिलजी का वहाँ के आचर्यों व शिष्यों ने तीव्र प्रतिकार किया ,जब यह आक्रांता पराजित होने लगा तो प्रतिशोध की भावना से इसने भोजशाला में साधनारत १२०० प्रकांड विद्वानों ने जब मुसलमान बनने से मन कर दिया तो उनकी हत्या हत्या कर उन्हें यज्ञ में डाल दिया ,
सन १४०१ में दिलावर खान गोरी ने मालवा पर अपना साम्राज्य घोसित किया व भोजशाला के कुछ भाग विजय मंदिर को ध्वस्त कर मंदिर के एक भाग को मस्जिद में बदलने का प्रयास किया ..वर्तमान में भी विजय मंदिर में नमाज़ पढ़कर उसे मस्जिद दिखाने का प्रयास किया जा रहा हैं ,सन १५१४ में महमूद शाह खिलजी द्वितीय ने भोजशाला के शेष भाग को ध्वस्त कर उसके परिसर में कमाल मौलाना की मृत्यु के २०४ वर्षो के बाद उसकी मज़ार बनवा दी ,सन १७०३ में मराठो ने स्थानीय वनवासियों के सामर्थ्य व सहयोग से भोजशाला से मुगल शाशन को खदेड़ दिया ,और हिन्दू शासन स्थापित किया …और भोजशाला को स्वतंत्र कर लिया जो १८२६ में अंग्रजो के अधीन हो गया ,ईसाई आक्रमणकारी ….जिसे पुस्तकों में लार्ड वायसराय कहा जाता हैं , उसने भोजशाला के सांस्कृतिक व पुरातात्विक महत्व को समझकर उसके खंडहरों की खुदाई करवाई ….खुदाई के दौरान माँ वाग्देवी सरस्वती माता की स्फटिक की प्रतिमा प्राप्त हुई ….जिसे अँगरेज़ अपने साथ ले गए ..वह मूर्ति आज भी ब्रिटिश संग्रहालय में कैद हैं
सन १९३० में मुलमानो ने भोजशाला में नमाज पड़ने का प्रयास किया ….लेकिन आर्य समाज ,हिन्दू महासभा व जागृत हिंदुत समाज ने इस प्रयासको विफल कर दिया ,सन १९६२ में मुस्लिमो ने भोजशाला के मसीद होने का दावा न्यायालय में प्रस्तुत किया ,उस दावे को भारत की केंद्र सर्कार ,राज्य सरकार व न्यायालय ने खारिज कर दिया ,१९५२ में राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ व हिन्दू महासभा ने श्री महाराजा भोज स्मृति वसंतोत्सव समिति द्वारा भोजशाला के इतिहास के बारे में ,जनजागरण व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना प्रारम्भ किया ,
सन १९६१ में प्रसिद्ध इतिहासकर एवं पुरनत्त्वत्ता विष्णु श्रीधर वाकणकर ने लन्दन जाकर प्रमाणित किया की यही राजा भोज द्वारा बनवाई गई प्रतिमा हैं तभी से इसी प्रतिमा को स्वतंत्र करवाकर भोजशाला में स्थापित करवाने के प्रयत्न जारी हैं
सन १९९४ में भोजशाला में सरस्वती वंदना व हनुमान चालीसा का पाठ प्रारम्भ किया गया ,१९९६ में बजरंग दल दवरा शौर्य दिवस का आयोजन २७३ हिन्दू गिरफ्तार हुए , महमूद शाह गजनवी से लेकर लार्ड वायसराय तक कोई भी भोजशाला में हिन्दुओ के प्रवेश को कभी नहीं रोक पाया था लेकिन तुस्टीकरण की राजनीति में अंधे हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मुसलमानो को खुश करने के लिए १२ मई १९९७ से हिन्दुओ के प्रवेश को भोजशाला में प्रतिबंधित कर दिया और वर्ष में केवल एक दिन वसंत पंचमी पर सशर्त पूजन की आज्ञा दी जबकि मुस्लिमो को वर्ष भर प्रत्येक शुक्रवार को नमाज की इज़्ज़ज़त दी ,लेकिन जिस वर्ष वसंत पंचमी शुक्रवार को होती हैं उस वर्ष देश दुनिया भर की मीडिया केमरो की निगाहें धार की और होती हैं ,सरकार बचने के लिए दोनों वर्गो के लिए समय आरक्षित कर देती हैं और फिर वहाँ सरस्वती माता की पूजन के पश्चात उनके गर्भगृह के सम्मुख नमाज पड़ी जाती हैं
लेकिन जागिये माँ सरस्वती के मंदिर को कमाल मौलाना की मज़ार घोषित किया जा रहा हैं उसकी मज़ार जिसकी मृत्यु १३१० में गुजरात में हुई और जिसे अहमदाबाद में दफनाया गया ,उसकी मज़ार माँ सरस्वती के मंदिर के गर्भ ग्रह में बनाकर नमाज पड़ने का ढोंग किया जा रहा हैं ,सेकड़ो वर्षों के आक्रमण के बाद भी भोजशाला के हिन्दू मंदिर होने के पर्याप्त प्रमाण उपस्थित हैं
वर्तमान में इसका २०० फ़ीट लम्बा ११७ फ़ीट छोड़ा शेष भवन दिखाई देता हैं ,जिसमे गर्भ गृह और जाया कक्ष को छोड़कर शेष तीनो और की दीवारे मंदिर के मलबे से बाद में बनाई गई हैं ,मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही बायीं और दो शिलालेखों पर प्राकृत भाषा में धारानगरी व भोजशाला का गौरवपूर्ण वर्णन हैं ,इन शिलालेखों के प्रारम्भ में ॐ नमः शिवाय ,ॐ ससरवत्ये नमः और सीताराम लिखे हुए हैं ,शिलालेखों से लगे हुए खम्बो पर वाग्देवी के प्रतिकृति के अवशेष स्पष्ट हैं ,व सभा मंडप की दीवारों पर देवी देवताओं के नक्कासी दर चित्र व कई प्रकार के यंत्र अंकित हैं और इनपर अंकित मंत्रो से यह स्पष्ट होता हैं की यह सरस्वती मंदिर ही हैं,गर्भगृह में जिस वास्तुकला के चिन्ह दीखते हैं वे राजा भोज के समय के वास्तुशास्त्र की भांति ही हैं परिसर में गर्भगृह के सामने विशाल यज्ञ कुंड हैंजिसमे २५५ वर्षों तक लगातार यज्ञ होता रहा ,मंदिर के बाहर एक कुइयां हैं जो अकक्ल कुइयां के नाम से प्रसिद्ध हैं ,इस कुइयां पर सरस्वती माता के आशीर्वाद और ऋषि मुनियों के तब का इतना प्रभाव हैं की इस कुइयां का पानी पिने वाले की बुद्धि जागृत हो जाती हैं वर्तमान में यह अकक्ल कुइयां तथाकथित कमाल मौलाना परिसर में कैद हैं
असंख्य प्रमाणों के बाद भी कवियों ,विध्वनो ,कलाकारों ,साहित्यकारों की अधिस्ठात्री देवी के मंदिर में उसके ही बेटे बेटियों को दर्शन की अनुमति नहीं हैं ,ऋतुराज वसंत के काल में अपने प्राकट्य दिवस पर स्वछंद वातावरण में विहार करने के बजाय वाग्देवी लंदन में सात समंदर पार कैद हैं ,वर्ण ,अर्थ ,रस और अलंकार क्रंदन कर रहें हैं ….भोजशाला वीरान हैं …..सरकार को ध्यान देना चाहिए घोस्नापत्र में आपने भोजशाला को मुक्त करने का वचन दिया था इस बात को ध्यान रखिए ..धार और पूरा देश प्रदेश भोजशाला को अतिक्रमण से मुक्त करने के लिए कमर कास चूका हैं……अतीत का वैभव वर्तमन की पीड़ा और भविष्य में भोजशाला मुक्तिका संकल्प एक एक व्यक्ति ले रहा हैं ..और अब केवल वसंत पंचमी शुक्रवार को हो तभी नहीं प्रत्येक वसंत पंचमी पर मीडिया के केमरे भोजशाला पहुंच रहें हैं और वसंतोत्स्व को पुरे देश तक पहुंचा रहें हैं