तुलसीदास और वाल्मीकि की शैली ने सुंदर-कांड बना दिया

आज भी हमारे देश में राम कथा जनजीवन का एक जीवंत हिस्सा है। किसी भी प्रसंग को उत्सव रूप देने के लिए आज भी अखंड रामायण पाठ का आयोजन किया जाता है।

रामायण पाठ में लगभग चौबीस घंटे लग जाते है। इसलिए कईं बार समयाभाव में या स्वेच्छा से ही सम्पूर्ण रामायण की जगह सिर्फ सुंदर काण्ड का ही पाठ कर लिया जाता है। कईं घरों में आज भी रोज ही सुंदर काण्ड का पाठ किया जाता है।

हनुमानजी के कईं नाम है, जिनमे से एक नाम सुंदर है। चूंकि इस कांड में मुख्य पात्र हनुमान जी है, इसलिए इसे सुंदर काण्ड कहा गया है।

राम कथा अपने आप में अपना चुंबकीय आकर्षण तो रखती ही है, परंतु वाल्मीकि और तुलसीदास जैसे अद्वितीय प्रतिभा के धनी कवियों ने जिस शैली में यह कथा लिखी है, वह भी अद्भुत है।

शुद्धत: काव्य सृजन के आधार पर भी यदि देखा जाय तो राम चरित मानस एक चमत्कारिक रचना है। बाबा तुलसीदास ने अवधि भाषा में एक ऐसी अलौकिक रचना प्रदान की है जिसमे भाषा के सारे अलंकार, छंद और रस समाये हुए हैं।
छोटे छोटे प्रसंगों के माध्यम से तुलसी नीति, दर्शन, अध्यात्म, नैतिकता, मानवीय स्वभाव, मानस शास्त्र, पर्यावरण आदि अनेक विषयों पर ऐसी सारगर्भित बाते कह जाते है कि पाठक अचंभित रह एकता है।

उदाहरण के लिए सुंदर काण्ड की ही ये कुछ चौपाइयां देख लीजिए। हनुमान माता सीता के सम्मुख प्रस्तुत होकर उन्हें प्रभु श्रीराम का संदेश देते हैं। सीता माता प्रसन्न होती है, और हनुमान को आशीर्वाद देती है…

मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी।।
आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना।।
अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू।।

माता हनुमान जी को आशीर्वाद दे रही है, कि आप बलवान बनो और आप शीलवान भी बनो। बल के साथ अनुशासन होना ही चाहिए। निरंकुश बल नुकसान ही करेगा। इसलिए अत्यंत हर्ष की स्थिति में होने के बाद भी माता आशीर्वाद देते समय हनुमान जी को निरंकुश बल नहीं दे रही है, शील का आचार का नियंत्रण भी साथ साथ बना हुआ है।

आगे माता कहती हैं, कि तुम अजर यानी निरोग और अमर रहोगे। परन्तु, पुनः वे अपने आशीर्वाद को निरंकुश होने से बचाते हुए साथ में हनुमान जी को गुणनिधि भी बनाती है। यदि व्यक्ति गुणवान रहेगा तो निरंकुश होने की संभावना खत्म हो जाती है। आशीर्वाद के अंत में वे कहती है कि प्रभु श्रीराम का स्नेह और प्रेम तुम पर सदैव बना रहे।

हनुमान को यकायक माता सीता के आशीर्वाद के रूप में वह सब मिला गया जिसके लिए लोग घोर तपस्या करते थे। इस अप्रत्याशित आशीर्वाद रूपी उपहार को पाकर गदगद हुए हनुमान माता का धन्यवाद देते हुए कहते है..

बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा।।
अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ बिख्याता।।

हनुमान जी आभार व्यक्त करते हुए कहते है, कि माता आपका आशीर्वाद अमोघ है, यह विख्यात है, इसलिए मै इस पाकर कृतकृत्य हो गया हूं।
यदि किसी व्यक्ति को अचानक निरोगी, बलवान और अमर काया के साथ प्रभु श्रीराम के अनंत स्नेह का परम उपहार मिल जाए तो कृतज्ञता के साथ अहंकार का प्रवेश स्वाभाविक ही कहा जायेगा। ऐसे ही अहंकार की वजह से रावण स्वयं शिवजी के निवास कैलाश पर्वत को ही उखाड़ने चला था।

परंतु यहां अगली ही पंक्ति में तुलसी यह बता देते है, कि इतना कुछ पा कर भी हनुमान एक सामान्य वानर ही बने रहे। अमरत्व प्राप्त कर चिरंजीव बन चुके हनुमान बाल सुलभ सरलता से माता से कहते है:

सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा। लागि देखि सुंदर फल रूखा।।

हे माते, यहां लगे फल देख कर मुझे भूख लगी है! इस एक बाल सुलभ मांग से तुलसी ने बता दिया कि हनुमान किसी भी प्रकार के गर्व या अहंकार से अछूते है। उनका व्यक्तित्व किसी छोटे बच्चे के समान पवित्र और निर्मल है। और यह सब बताने के लिए तुलसीदास जी को सिर्फ पांच शब्दो की आवश्यकता पड़ी!

लेखक:- श्रीरंग पेंढारकर

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