अति प्राचीन काल से वनांचल में रहने वाले अपने जनजाति समाज मे अपने पूर्वजों का अनुसरण करते हुए, अपनी रीति रिवाज, रूढ़िवादी परंपरा तथा विभिन्न धार्मिक गतिविधि जैसे :- पिठोरा देव, राप पूजन, चुल, इंदल देव, गायणा, बडवा घुमना, मान-मानता आदि अपने जीवन में उतरता आ रहा हैं या मानता आ रहा है और डाहा-डाहान (बड़े-बुजुर्ग) रित अनुसार बाबा देव को मनाते आ रहे। इसमे तिथि,समय और दिन का विशेष महत्व रहता है। यह त्यौहार हर वर्ष श्रवण (जुलाई) महीने की अमावस्या के दिन से शुरू होता है, हिंदी तिथि के अनुसार, इस दिन को, हरियाली अमावस्या कहा जाता है। इसमें बाबा का मतलब – पिताजी का बड़ा भाई, देव का मतलब – भगवान होता है।
पहले की बात :- पहले भगवान, दूजो जनजाति (भील)
तिजो युग, तिना युग ने साथें, सातपुड़ी जमी माता छे, तिहिं चाले संसार यो।
इसकी शुरुवात – कहा जाता है, जब भगवान ने सृष्टि की रचना की, सृष्टि की रचना के बाद भगवान शिव तपस्या करने धरती पर आये थे। तपस्या करने से पहले भगवान ने विचार किया, “मी तपस्या करना बठ् जास, पतो निहीं कतरा साल हई जाई, मारो ध्यान कुंन राखसे, मारी तपस्या काहलोक आइन विगाड़ी निहीं देए, भंग नी कर देए, मारी रक्षा करने वालूं कुई ने कुई ते हनु चाहे” तब भगवान भोलेनाथ ने एक भील को बुलाया, समझाया और गांव की काकड़ (सीमा) पर खड़ा कर दिया और भील से कहा, जब तक मैं ना कहूं, तब तक किसी को अंदर मत आने देना। भील ने भी हां करली और अपने कर्तव्य स्थान पर खड़ा रहा, वर्षों बीत गए। भगवान की तपस्या पूरी हुई, भगवान ने आंखें खोली देखा “मी तपस्या करी, यो भील भी तपस्या करी।। मी ध्यान करयो यो भील ध्यान करयो।। मी देखूं तो सही, ईनामा ना मारामा कतरो फरक छे, भगवान भील की परीक्षा लेने अंतर ध्यान हो गए, और आदमी के वेश में, उसी रास्ते से आने लगा, जहां भील पहरेदारी कर रहा था।
इसके बाद दोनों के मध्य संवाद होता है:-
भील – ये भाई कहां जाई
आदमी – मेसे भगवान सी मिलनु छे
भील – ना नि मिलाई
आदमी – मैसे जरूरी काम छे।
भील – तू काहीं भी करले पर नी मिल सके। भील और आदमी बहस करतां-करतां, बाथा बाथ पडी गया, लेकिन आगे नहीं जाने दिया। इसके बाद भगवान प्रकट हुए और भील को दर्शन दिया, तो भील रो पड़ा और भगवान से पूछा, “तुखा मार पर भोरोसो नीहाई काई, ते तू मारी परीक्षा लेधी भगवान।”
भगवान ने कहा :- मैं सिर्फ़ देख रहा था भील, तुझमें और मुझेमें कितना अंतर है, तेरा समर्पण और भाव देख, मैं बहुत खुश हूं।
“इस तरह भगवान के द्वारा ली गई परीक्षा में भी भील पास हो गया” कहतें है :- उस समय भगवान ने आर्शीवाद दिया था, तूने मेरी सेवा नि:स्वार्थ भाव से की है। आज मैं तुम्हे वचन देता हूं, तेरी और तेरे गांव की रक्षा मैं आजीवन करूंगा। लोग कहते हैं – “भील नू दर्शन करयुं। ते भगवान महादेव नू दर्शन बराबर।” इसलिए तब से आज तक आदि-अनादिकाल से भगवान भोलेनाथ, खेडापति हनुमान (बाबा देव) के रूप में प्रत्येक गांव की काकड़ (सीमा) पर बैठे हम सब की रक्षा करते है। इसलिए बाबा देव की पूजा हर साल हर्षोल्लास के साथ की जाती है।
इसलिए निमित्त कुछ प्रवत्तियों कों बंद ओर कुछ कों चालू रखा जाता है। आइये देखते है क्या बंद है ओर क्या चालू है।
बंद जैसे :-
१) शादी विवाह।
२) लड़का लड़की की सगाई की धार नहीं डलती।
३) गाय, बेल, बकरी को नहीं बेचना।
४) ढोल, मांदल नहीं बजाना आदि कार्यक्रम बंद हो जाते हैं !
चालू जैसे:-
१) बोढ़वा घूमना
२) ढाक बजाना, पावला बजाना
३) पिठोरा बाबा पूजना
४) खेत्तर पाला पूजना – आदि कार्यक्रम चालू हो जातें है
इसलिए अवसर पर आप सभी पाठकों से निवेदन है की, अपने पूर्वजों के मान, सम्मान और आदर के लिए, अपनी संस्कृति, अपनी परम्परा, अपनी रीति रिवाज को जीवित रखने के लिए प्रतिज्ञा करना होगा। जो हमारे बाप-दादा करते थे उसे हम करेगें, जिसको पूजते थे, उसे हम पूजेंगे, जिसे मानते थे, उसे हम मनेंगे है जो बोलते थे ओ हम बोलेंगे है।
हामू बाबा देव ना छे, बाबो देव हांमरो छे,
काका -बाबा ना पोरिया, हामु आखा एक छे।
आइये जोर से बोले “जय बाबा देव”
लेखक :- श्री कैलाश जमरा