संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 में क्रमश: अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए की अखिल भारतीय एवं राज्यवार, आरक्षण एवं संरक्षण के लिए महामहिम राष्ट्रपति महोदय सूची जारी करते हैं,ऐसी सूचियां सन 1950 में जारी हुई है।
ये सूची जारी होने के आधार पर ही संविधान के उद्देश्य के लिए SC/ST वर्गों के लिए हितकारी प्रावधान, सरकारों द्वारा लागू किए जाते हैं।
एक ओर जहां, अनुसूचित जाति हेतु महामहिम राष्ट्रपति ने जब ये सूची जारी की तब, धर्मांतरित ईसाई एवं मुसलमान को SC में सम्मिलित नहीं किया गया। वहीं दूसरी ओर अनुसूचित जनजातियों की सूची में उक्त दोनों धर्मांतरितों के लोग बाहर नहीं करके, ST में सम्मिलित रखे गए।
मूल रूप से यह एक भारी विसंगति है, एवं संविधान के कल्याणकारी/ न्यायकारी उद्देश्य के विपरीत होकर, मूलत: संस्कृती वाली बहुसंख्यक ST के लिए यह उचित नहीं है।
यहां यह जान लेना जरूरी है कि धर्मांतरण के उपरांत आदिवासी सदस्य , indian Christian कहलाते हैं जो कि कानूनन अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते हैं इस प्रकार धर्मांतरित ईसाई और मुस्लिम दोहरी सुविधाओं का लाभ ले रहे है।
इस संबंध में सन 1968 में डॉ. कार्तिक बाबू उरांव, पूर्व सांसद ने, इस संवैधानिक/ कानूनी विसंगति को दूर करने के प्रयास किए एवं विस्तृत अध्ययन कर एक पुस्तिका 20 वर्ष की काली रात का लेखन भी किया।
कार्तिक बाबू उरांव ने अपने अध्ययन में पाया कि 5% धर्मांतरित ईसाई अखिल भारतीय स्तर पर कुल ST की 62% से अधिक नौकरियां, छात्रवृत्तियां एवं शासकीय अनुदान ले रहे हैं साथ ही प्रति व्यक्ति अनुदान आवंटन का अंतर उल्लेखनीय रूप से गैर अनुपातिक था। इस प्रकार की मूलभूत विसंगति को दूर करने के लिए संसद की संयुक्त संसदीय समिति का गठन हुआ जिसने अनुशंसा की कि अनुच्छेद 342 में धर्मांतरित लोगों को बाहर करने के लिए संसद कानून द्वारा राष्ट्रपति के 1950 वाले आदेश मे संशोधन किया जाना जरूरी है।
ST की पात्रता के लिए विशिष्ट प्रकार की संस्कृति जरूरी है।यहां विशिष्ट प्रकार की संस्कृति का आशय पूजा पद्धति से ही संस्कृति है। यह भारतीय मत है एवं भारतीय आदि विश्वास, आदि संस्कृति व आदिवासी संस्कृति का सार है। इसी आधार पर भी संशोधन का दावा रहा है, परंतु सन 1970 के दशक इस हेतु विचाराधीन मसौदे पर कानून बनने से पूर्व ही लोकसभा भंग हो गई। यह एक दुःखद अध्याय है। यह प्रश्न विकास की प्रक्रिया मे सबसे गरीब, दूरस्थ निवासी और बुनियादी समस्याओं से जूझती लगभग 12 जनजातियों का है।
सन 2000 की जनगणना और 2009 की डॉ जे.के. बजाज का अध्ययन भी इस गैर आनुपातिक लाभ हड़पने की समस्या
विकरालता को उजागर करते है कि धर्मांतरित ईसाई एवं मुसलमान अनुसूचित जनजातियों के अधिकांश सुविधाओं को हड़प रहे हैं और दोहरा लाभ ले रहे है।
इस क्रम में सन 2006 में जनजाति सुरक्षा मंच का गठन किया गया और धर्मांतरित ईसाई एवं मुसलमान को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाने के एक सूत्रीय बात को आगे बढ़ाया गया। इन प्रयासों के तहत सन 2009 में महामहिम राष्ट्रपति महोदय को 28 लाख हस्ताक्षर कर ज्ञापन सौपा और महामहिम राष्ट्रपति महोदय से सुरक्षा मंच द्वारा इस हेतु आग्रह-निवेदन भी किया गया।
सन 2020 में 448* जिलों में जिला कलेक्टर एवं संभागीय आयुक्त के माध्यम से तथा विभिन्न राज्यों के राज्यपाल व मुख्यमंत्रियों से मिलकर, महामहिम राष्ट्रपति महोदय को ज्ञापन द्वारा निवेदन किया गया। सन 2021 में डॉ कार्तिक उरांव के जन्मदिवस, 29 अक्टूबर के अवसर पर इस बारे में विस्तृत चर्चा की गई।
अब तक के प्रयासों पर विस्तृत चर्चा एवं मंथन के उपरांत, एक महाअभियान शुरू किया है, जो सड़क से संसद तक चल रहा है
पूरे देश की सभी जनजातियां एवं अखिल समाज इस बात को लेकर चिंतित जान पड़ा है, और जनजाति सुरक्षा मंच ने उक्त विसंगति को सभी के समक्ष रखा है।
इस क्रम में ग्राम संपर्क कर, देशभर में जिला सम्मेलनों का भी आयोजन किया जा रहा है। विगत दिनों दिल्ली में जनजाति सुरक्षा मंच के कार्यकर्ताओं ने सांसद संपर्क अभियान किया है, जिसमें 442 सांसदों से संपर्क कर De-listing का कानून बनाने का आग्रह किया है।
इस एक सूत्रीय कार्यक्रम को लेकर जनजाति सुरक्षा मंच, सड़क से संसद तक एवं सरपंच से सांसद तक आंदोलन, संघर्ष एवं संपर्क का अभियान चला रहा है।
इस एक सूत्रीय अभियान को लेकर जनजाति सुरक्षा मंच तब तक संघर्ष करेगा जब तक कि धर्मांतरित ईसाई और मुसलमानों को ST की पात्रता और परिभाषा से बाहर नहीं निकाला जाता, और इस हेतु संसद द्वारा 1970 से लंबित कानून नहीं बना दिया जाता।
इसी के अंतर्गत 8 मई 2022 को लालबाग पेलेस में विशाल महारैली का आयोजन होना तय हुआ हैं!