
डॉ. रामविलास वेदांती जी का निधन केवल एक व्यक्ति का जाना नहीं है, यह राम मंदिर आंदोलन की एक युगीन चेतना का अवसान है। वे उन विरले संत-राजनीतिज्ञों में थे, जिन्होंने आस्था को अंधविश्वास नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़कर प्रस्तुत किया। उनके जाने से राम जन्मभूमि आंदोलन की वह पीढ़ी लगभग पूर्ण हुई, जिसने दशकों तक उपेक्षा, उपहास और दमन के बावजूद अपने लक्ष्य से विचलन नहीं किया।
प्रारम्भिक जीवन और वैचारिक निर्माण
डॉ. वेदांती जी का व्यक्तित्व केवल संत का नहीं था; उसमें दार्शनिक, वक्ता, संगठनकर्ता और राजनीतिक योद्धा—चारों गुण एक साथ उपस्थित थे। उन्होंने रामकथा को केवल धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि भारतीय जीवन-मूल्यों, मर्यादा और न्याय की आधारशिला के रूप में देखा। उनकी वाणी में ओज था, पर कटुता नहीं; स्पष्टता थी, पर उग्रता नहीं। वे कट्टरता के नहीं, संस्कृति-आधारित राष्ट्रवाद के प्रतिनिधि थे।
राम मंदिर आंदोलन में ऐतिहासिक भूमिका
रामविलास वेदांती जी राम जन्मभूमि आंदोलन के अग्रणी सूत्रधारों में गिने जाते हैं। जब यह विषय केवल संतों और कुछ संगठनों तक सीमित माना जाता था, तब उन्होंने इसे जन-जन का प्रश्न बनाया।
आंदोलन में उनके तीन निर्णायक योगदान
१. वैचारिक स्पष्टता- उन्होंने बार-बार यह रेखांकित किया कि राम मंदिर का प्रश्न किसी एक धर्म का नहीं, बल्कि ऐतिहासिक अन्याय, सांस्कृतिक अस्मिता और सभ्यतागत निरंतरता का प्रश्न है।
२. जन-जागरण- वे देशभर में प्रवचन, सभाएँ और संवाद करते रहे। उनकी भाषा आमजन की थी—सीधी, सरल और आत्मविश्वासी। उन्होंने राम को “राजनीतिक प्रतीक” नहीं, बल्कि मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रस्तुत किया। संघर्ष और धैर्य जब आंदोलन पर हिंसा, विभाजन और साम्प्रदायिकता का आरोप लगाया गया, तब वेदांती जी ने संयम नहीं छोड़ा। उन्होंने न्यायपालिका, संविधान और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर विश्वास बनाए रखा—यही कारण है कि आंदोलन अंततः कानूनी और संवैधानिक विजय में परिणत हुआ।
३. संसद से सड़क तक : एक सेतु-पुरुष डॉ. वेदांती जी का योगदान इसलिए भी विशिष्ट है , क्योंकि वे संत और सांसद—दोनों भूमिकाओं में समान रूप से प्रभावी रहे।
संसद में:- अयोध्या से सांसद रहते हुए उन्होंने राम मंदिर निर्माण का मुद्दा निर्भीकता से उठाया। उन्होंने संसद को स्मरण कराया कि यह केवल भावनात्मक नहीं, ऐतिहासिक और न्यायसंगत प्रश्न है। उनकी वाणी में तर्क था, इतिहास था और संवैधानिक मर्यादा भी।
सड़क पर: – जनसभाओं, आंदोलनों और सामाजिक संवादों में वे उतने ही सक्रिय रहे। उन्होंने आम हिंदू समाज को हीनभावना से बाहर निकालकर आत्मगौरव का बोध कराया। उनके लिए राजनीति सत्ता का साधन नहीं, सांस्कृतिक पुनर्जागरण का माध्यम थी। यही कारण है कि वे केवल “नेता” नहीं, बल्कि आंदोलन के सेतु-पुरुष कहलाए—जो संसद और समाज, दोनों को जोड़ते थे। डॉ. वेदांती जी आलोचनाओं से नहीं घबराए। उन्हें “कट्टर” कहा गया, “सांप्रदायिक” कहा गया, पर उन्होंने कभी संवाद का द्वार बंद नहीं किया। उनका स्पष्ट मत था- “तुष्टिकरण से नहीं, सत्य और साहस से ही समाज जुड़ता है।”
राम मंदिर के भव्य निर्माण और प्राण-प्रतिष्ठा के बाद उनका जाना ऐतिहासिक संयोग भी है और भावनात्मक क्षण भी। वे उस पीढ़ी के प्रतिनिधि थे जिसने- अपमान सहा, प्रतीक्षा की, और अंततः विजय देखी।
डॉ. रामविलास वेदांती जी का जीवन हमें यह सिखाता है कि आस्था यदि विवेक से जुड़ जाए, और संघर्ष यदि मर्यादा में रहे, तो सही इतिहास लिखा और बदला जा सकता है।
विनम्र श्रद्धांजलि
रामनगरी अयोध्या की धूल, रामनाम की चेतना और राष्ट्रबोध की ज्योति
डॉ. रामविलास वेदांती जी के चरणों में नतमस्तक है।
श्री कैलाशचंद्र जी ( क्षेत्र प्रचार प्रमुख के शब्दों में डॉ रामविलास वेदांती जी को विनम्र श्रद्धांजलि