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भारत की संस्कृति का हृदय स्थल है झाबुआ जहां जनजाति संस्कृति की आत्मा बसती है आज भी जनजाति समाज हिंदू संस्कृति के एक के भाव को समाहित कर मां भगवती की उपासना करते हैं झाबुआ अपनी जनजाति संस्कृति की एक अलग ही पहचान रखता है जनजाति संस्कृति के साथ-साथ वह अब धार्मिक संस्कृति में अपनी पहचान देश भर में बनाने लगा है। पहले झाबुआ के बारे में लोगों में विभिन्न प्रकार की गलत धारणाएं थी लेकिन वर्तमान समय में झाबुआ ने अपनी पहचान एक धार्मिक के रूप में धीरे-धीरे बना रहा है अभी नवरात्र का महोत्सव चालू होने वाला है झाबुआ अंचल के विभिन्न गांव में गरबा एवं जवारे की पंडाल हमें देखने मिलेगा वह एक सामाजिक समरसता का वनांचल क्षेत्र का बड़ा उदाहरण है वनांचल का क्षेत्र विश्व भर के सभी समाज के लिए प्रेरणा स्रोत है अब यह जनजाति क्षेत्र के प्रमुख संस्कृत बन चुका है वर्तमान समय सोशल मीडिया का योग है इस युग में झाबुआ आंचल अपनी नई पहचान बन चुका है
“इस धारा का केंद्र बिंदु हूं…….. हां मैं हिंदू हूं”
इस ध्येय वाक्य के साथ हम अपने उत्तरदायित्व को समझते हुए नवदुर्गा कार्यक्रम में अपनी और अपने परिवार के सहभागिता हो। गांव में नवरात्रि में नवदुर्गा अर्चना के साथ-साथ जवारे डाले जाते हैं।
जो जनजाति समाज किस साधन व व्रत का सबसे बड़ा त्यौहार है। इस दौरान संपूर्ण समाज द्वारा स्थानीय देवी देवताओं की गीतों के माध्यम से उपासना की जाती है एवं प्रतिदिन व्रत रखा जाता है जवारे का मतलब मिट्टी में गेहूं उगाने की परंपरा है जवारे के बिना माता की पूजा अधूरी मानी जाती है गेहूं नवरात्रि के पहले दिन से बाय जाते हैं एवं 9 दिन तक नित्य देवी मां की भीली भाषा में गीतों के माध्यम से आराधना की जाती है। यह अंचल की प्रमुख परंपरा है जवाहर के समय 9 दिनों तक अपने खान-पान पर विशेष नियंत्रण रखा जाता है इस दौरान मांस मछली भिंडी दही बैंगन गिलकी आदि का सेवन नहीं करते हैं इस समय सात्विक और शुद्ध आहार ग्रहण ही करते हैं और साथ ही में इस समय का ब्रह्मचर्य का नियंत्रण भी लागू होता है जवारे में मां स्वयं विराजमान होती है इस समय जवारे की पूजा शांति श्रद्धा एवं प्रेम के साथ की जाति है। जवारे के समय सूर्य उदय के साथ ही स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहने जाते हैं। 9 दिन तक इस साधना में बाल दाढ़ी और नाखून भी नहीं काटे जाते हैं नवरात्रि में जहां पर जवारे डाले जाते हैं इस स्थान पर जमीन पर सोना होता है जहां से करो वर्षों से जनजाति नवरात्रि के समय जवारे में मां की अनवरत पूजन करते आया है इस अंचल में ऐसे कई प्राचीन धरोहर है जहां समाज अपनी पूजा अर्चना करता है।
इस अंचल की प्रमुख तीर्थ स्थल बाबा देव डूंगर, नंदर माता, बाबा कोकिंदा देव, बाबा कासूमोर देव बाबा घोडदेव, बाबा हुआ देव, लालबाई, फूलबाई, सावन माता, भेरुजी खेड़ापति बाबा देव, भोला ईश्वर, राम लक्ष्मण, हनुमान जोधा वीर, झाबुआंचल के प्रमुख पूजनीय देव और ईश्वर है। नवरात्रि के समय इन सभी स्थानों पर विभिन्न प्रकार के धार्मिक कार्यक्रम होते हैं जहां सनातन परंपरा का निर्वहन किया जाता है जनजाति संस्कृति एवं सनातन संस्कृति में हमें सामान्य देखने मिलती है जनजाति संस्कृति में प्रकृति पूजन मुख्य आधार है जवारे के समय मां प्रकृति की पूजन किया जाता है इसमें मुख्य रूप से मिट्टी गेहूं की साधना होती है और रात्रि के समय भी ले जनजातियों द्वारा जीत गया जाता है जो सिद्धि का मुख्य आधार है सामान्यतः जवारे के आकार के आधार पर ही साधना की पूर्णता व सफलता का आकलन किया जाता है हरे भरे वह बड़े जवारे सुख समृद्धि व साधना की सफलता का प्रतीक मानते हैं अंतिम दिन देवी मां के नाम से भोग एवं प्रसादी वितरण किया जाता है तथा गांव की समस्त धर्म प्रेमी जनता को भोजन ग्रहण करवाया जाता है.
लेखक – निलेश कटारा