श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत सदियों तक समाज का मार्ग प्रशस्त वाली घटना है – दत्तात्रेय होसबाले जी

VSK Bharat

बठिंडा, 25 नवम्बर। सामाजिक सांस्कृतिक संस्था जन चेतना द्वारा श्री गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस के अवसर पर एक सेमिनार आयोजित किया गया। बठिंडा में स्थित बलवंत गार्गी ऑडिटोरियम में आयोजित सेमिनार में वक्ताओं ने श्री गुरु तेग बहादुर जी के जीवन तथा दर्शन पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

सेमिनार में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि श्री गुरु तेग बहादुर जी महाराज की शहादत मात्र कुछ पैराग्राफ में लिखे जाने वाला साहित्य नहीं, अपितु सदियों तक समाज का मार्ग प्रशस्त वाली घटना है तथा गुरु जी ने स्तुति, निन्दा, लोभ तथा मोह रहित जीवन जीने का सन्देश दिया है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस वर्ष की जबलपुर में आयोजित अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल की बैठक में भी गुरु जी की शहादत के 350वें वर्ष के अवसर पर एक वक्तव्य जारी किया है।

उन्होंने कहा कि असहिष्णुता के इतिहास को हम भूल नहीं सकते। धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात करने वाली शक्तियों ने दुनिया को घोर चुनौती दी है। धर्म के लिए त्याग इस भूमि की परम्परा रही है। अपना विचार दूसरों पर थोपना भारत की परम्परा नहीं है। गुरु नानक देव जी ने बाबर के बारे में कहा था कि उसने हिंदुस्तान को डराया। आज उसी बाबर द्वारा कभी तोड़े गये राम जन्मभूमि मन्दिर पर ध्वजारोहण का कार्यक्रम हुआ है।

उन्होंने कहा कि इसी असहिष्णुता के कारण गुरु अर्जुन देव जी की शहादत हुई। भारत भूमि के प्रत्येक सन्त ने कहा कि बाहर की विविधता न देखो, अन्दर की आत्मा उसी एक ईश्वर का सुन्दर अंश है। भारत के सभी महापुरुषों ने सब पन्थ तथा धर्मों को ईश्वर तक पंहुचने का मार्ग बताया है। सरकार्यवाह जी ने भाई सतीदास, भाई मतिदास एवं भाई दयाल दास की शहादत को भी नमन किया।

इस अवसर पर संत बाबा जसवीर सिंह जी (अंश बंस माई देसां जी) ने कहा कि गुरु गोविन्द सिंह जी की कई निशानियां हमारे घर में संजो कर सुरक्षित रखी हुई हैं। इन निशानियों के कई स्थानों पर संगत को दर्शन कराए गए हैं। हम सभी एक ही ईश्वर के अंश हैं, यही गुरु नानक जी का सन्देश है। गुरु नानक का सन्देश एक का है दो का नहीं, अर्थात सारी दुनिया में एकत्व का साक्षात्कार करने का है। नानक के लिए दूसरा कोई नहीं, सभी अपने हैं, सभी एक हैं।

युद्धभूमि में भाई कन्हैया द्वारा शत्रु पक्ष के घायल सैनिकों को पानी पिलाना, इसी सिद्धान्त का व्यावहारिक जीवन में आचरण है। सारे भारत के लोगों को साथ लेकर खालसा पन्थ की सिरजना हुई। मिसलों को इकट्ठे कर महाराजा रणजीत सिंह ने खालसा राज स्थापित किया। ईस्ट इंडिया कम्पनी के दांत खट्टे किये। 1870 के बाद से अंग्रजों ने एकता की बात करने वालों के बजाय अलगाव की बात करने वालों को प्रोत्साहित किया। पूरी दुनिया को गुरु ग्रन्थ साहिब के सन्देश की आवश्यकता है। भारत में विश्वगुरु वाली चेतना है, यहां ऐसे व्यक्तित्व पैदा हुए हैं। गुरुओं के लिये दूजा कोई नहीं। एक का सन्देश देने वाले महापुरुषों का प्रचार करें।

मुख्य अतिथि हिमाचल केंद्रीय विश्विद्यालय के चांसलर पद्मश्री डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी ने कहा कि जहां एक ओर गुरु जी ने तेग अर्थात तलवार चलाकर रण क्षेत्र में अपना कौशल दिखाकर तेग बहादुर नाम प्राप्त किया, वहीं अपनी लेखनी से उच्च कोटि के साहित्य की रचना की। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में 59 शबद तथा 57 श्लोकों के रूप में सम्मिलित उनकी वाणी अध्यात्म, वीरता तथा ईश्वर के प्रति निष्ठा का संदेश देती है। पूरा विश्व इस शहादत को याद कर रहा है।

एशिया के देशों में धर्मांतरण की लहर को गुरु तेग बहादुर की शहादत ने रोका। मानवाधिकारों का पहला सबक गुरु तेग बहादुर की शहादत से सीखना चाहिये। मानवाधिकारों से सम्बन्धित हर पुस्तक में गुरु जी की शहादत का जिक्र आता है। गुरु तेग बहादुर की शहादत को याद करना अर्थात भारत तथा एशिया के 350 वर्षों पर दृष्टिपात करना। शहादत हेतु दिल्ली जाते हुए जिन 50 गांवों से गुरु तेग बहादुर जी गुजरे, वहां लोगों ने तम्बाकू की खेती बन्द कर दी। जिन 150 स्थानों पर गुरु तेग बहादुर साहिब गए, वहां गुरु तेग बहादुर जी की वाणी पढ़ी जाती है। खालसा सिरजना के समय 50000 से अधिक लोग पैदल चल कर आनन्दपुर साहिब पंहुचे। मुगलों द्वारा गुरु तेग बहादुर जी पर करामात दिखाने तथा मतान्तरण के लिए दबाव डाला गया। उनके सामने भाई सतीदास, भाई मतिदास तथा भाई दयाल जी को यातनाएं दे कर शहीद किया गया, उन्होंने अडोल तथा शान्त मन से इसे देखा, इससे बड़ी करामात क्या होगी। 40 से अधिक भाषाओं के शबद गुरु ग्रन्थ साहिब में हैं। गुरु जी बहुत बड़े संगीतकार तथा शस्त्र और शास्त्र के धनी थे। राग जै जैवन्ती का प्रयोग करते थे, पखावज बहुत बढ़िया बजाते थे। मदन मोहन मालवीय जी को गुरु जी के सब शबद तथा श्लोक याद थे। उन्होंने बनारस हिन्दू विश्विद्यालय के शिलान्यास के अवसर पर इस बाणी का कीर्तन भी किया था।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *