
पहलगांव की घटना से मन व्यथित और मस्तिष्क सुन्न है। क्यों ? ये कैसी सोच है? 28 निरपराध लोग जो अपने परिवारों के साथ पृथ्वी के स्वर्ग में छुट्टियां मनाने आए थे, जो अपने जीवन के उतार चढ़ावों को भूल कुछ आनंदमय क्षण जी रहे थे, उन्हें बगैर किसी वजह के गोलियों से भून डालना? धर्म के आधार पर? इस चित्र में बैठी बच्ची ने या उसके पति ने किसी का क्या ही बिगाड़ा था?
अमेरिका में कईं बार ऐसी घटनाएं होती है, जहां कोई व्यक्ति अचानक गोलियां दाग कर कुछ निरपराध लोगों को मौत के घाट उतार देता है। परन्तु ये सभी घटनाएं उस व्यक्ति की निजी सनक का परिणाम होती है। परन्तु 9/11 का WTO पर हमला, 26/11 का मुंबई हमला, कुछ वर्ष पूर्व हुए उरी और पुलवामा के हमलों समेत भारत में और शेष विश्व में जिहाद के नाम पर जो हिंसा होती रही है, वह किसी की व्यक्तिगत सनक नहीं है। इन हमलों के पीछे, जिसमें आज तक लाखों लोग मारे जा चुके हैं, एक निश्चित सोच काम कर रही है। कट्टरपंथी इस्लामी गुट इन हमलों की जिम्मेदारी लेते रहे हैं और एक तरफ जहां इनके विरुद्ध कार्रवाईयां होती है, वहीं दूसरी ओर इन्हे पोषित भी किया जाता रहा है।
आज पूरा देश स्तब्ध है, दुःखी है और क्रोधित भी है। चार व्यक्तियों ने पूरे देश के करोड़ों लोगों को हिला कर रख दिया है। आने वाले दिनों में ये चार व्यक्ति निश्चित ही पकड़ लिए जाएंगे या मुठभेड़ में मार दिए जाएंगे। परन्तु यह सर्वविदित है कि ये चार तो प्यादे मात्र है। इनके पीछे इन षड्यंत्रों को रचने वाले सूत्रधार हैं जो पाकिस्तान में बैठे हैं और जो इस्लाम के झण्डे तले कट्टरपंथ और अमानवीय हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं। समय आ गया है कि उनके विरुद्ध कोई ठोंस और सीधी कार्यवाही करना होगी।
कुछ वर्ष पूर्व उरी और पुलवामा में भी इसी प्रकार के नृशंस काण्ड किए गए थे और भारत सरकार ने उनके माकूल जवाब भी दिए थे। उसी वजह से गत कुछ वर्षों में कश्मीर सहित पूरे देश मे आतंकवादी गतिविधियों में लक्षणीय कमी आई थी। इस दौरान पाकिस्तान में अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा अनेक कट्टरपंथी आतंकवादी सरगनाओं को भी मौत के घाट उतार दिया गया था। खास तौर पर कश्मीर घाटी में पर्यटन बढ़ा था, व्यापार बढ़ा था और जन जीवन का सामान्य होने लगा था। सरकार द्वारा भी कश्मीर में तेज गति से विकास कार्य कर हालात सामान्य बनाने के सकारात्मक प्रयास हुए थे। गत वर्ष कश्मीर में चुनाव हो कर प्रजातांत्रिक सरकार भी पुन: सत्ता में आ चुकी है।
निश्चय ही, कट्टरपंथियों का अस्तित्व खतरे में आ रहा था और इसी वजह से अपने अस्तित्व और सक्रियता को दर्शाने के लिए इस घृणित आतंकी हमले को अंजाम दिया गया है। अमेरिकी उपराष्ट्रपति के देश में रहते इस घटना का घटित होना निश्चय ही देश के लिए अत्यन्त असहज स्थिति है। यह निश्चित ही देश के सुरक्षा तंत्र और विशेष कर गुप्तचर तन्त्र की विफलता है कि इस हमले को रोका नहीं जा सका परन्तु यह भी सच है कि इन्हीं तंत्रों ने अनेक हमलों को नाकाम भी किया है। देश के दुश्मनों के प्रयास लगातार चलते ही रहते हैं और दुर्भाग्यवश इस बार वे हमारे तन्त्र को चकमा देने में सफल रहे हैं।
उरी और पुलवामा के अनुभव से यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि भारत सरकार इस हमले का मुंहतोड़ जवाब देगी और यह सुनिश्चित करेगी कि अपनी कार्यवाही से इन आतंकवादी तत्वों को जड़ से उखाड़ा जा सके।
यह राष्ट्रीय शोक और संकट का विषय है। इस समय सभी राजनीतिक दलों और आम जनता से यही अपेक्षित है कि अपनी भावनाओं को नियंत्रित रखें और नेतृत्व में विश्वास रखे। हल्की बयानबाजी, गैरजिम्मेदार और भड़काऊ प्रतिक्रियाओं और अफवाहों के फैलाने से बचे। जो हुआ है वह राक्षसी कृत्य है। इस अपराध की क्षमा असम्भव है। सरकार उचित समय पर ठोस कार्यवाही करेगी यह अपेक्षित है। परन्तु साथ ही ऐसी घटनाएं कुछ सबक भी सिखाती है, जिन पर सभी स्तरों पर चिंतन आवश्यक है।
इस कायराना हमले में मारे गए सभी हिन्दू भाई बहनों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर