भैया, मां की हालत ठीक नहीं है। हो सके तो तुरंत आ जाओ। इन्फेंट्री में तैनात जवान को 5 दिन पहले घर से फोन आता है। वह अनुमति लेकर तुरंत घर रवाना होता है। मंगलवार की रात उसके लिए कहीं से भी मंगलकारी नहीं थी। लखनऊ में मृत्युशैया पर पड़ी मां की कांपती अंगुलियां उसके शरीर में सिहरन पैदा कर रही थी तो चीन सीमा पर साथियों की शहादत उसे व्यथित किए जा रही थी। रात 3:00 बजे डॉक्टर ने उसे बताया कि आपकी मां नहीं रही। आंखो में पहले से बह रहे आंसू अब बेकाबू हो चुके थे। मुख्यालय से हर आधे घंटे में मिलने वाले अपडेट से उसके चेहरे पर कठोरता बढ़ती जा रही थी। नाते-रिश्तेदारों को मां की मौत की खबर भेजी जा चुकी थी। सुबह 10:00 बजे अंतिम संस्कार तय था। घर पर रिश्तेदारों का जमावड़ा, पर वह अपना सामान पैक करने लगा। उसे वापस आने का आदेश मिल चुका था।
लोग हैरान और चकित थे। सभी ने कहा- अरे 2 घंटे की बात है, मां को मुखाग्नि देकर चले जाओ। नम आंखों से मां को अंतिम प्रणाम करते हुए बेटा बोला- इस माँ के लिए तो एक बेटा और है, इस समय मुझे भारत मां बुला रही है। तुरंत जाना पड़ेगा। रुक नहीं सकता।
यह किसी उपन्यास या फिल्म की कहानी नहीं। इसके हर शब्द में भारतीय सेना के अदम्य और अप्रतिम साहस का सच है। इसी जवान के साथ रवाना हो रहे आपूर्ति विंग के एक अन्य जवान के मन में चीन को लेकर गुस्सा है। कहा कि सरहद पर चीन की कायराना हरकत का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।