
श्री धर्मनारायण शर्मा: दूरदृष्टा स्वयं सेवक
जीवन में कभी-कभी सौभाग्य से विरली (दुर्लभ) विभूतियों से प्रत्यक्ष साक्षात्कार होता है, जिनसे मिलने के पश्चात् ऐसी अनुभूति होती है, जिसे शब्दों में गढ़ना संभव नहीं। ऐसी ही एक विभूति थे "धर्मनारायण जी"। धर्मनारायण जी शर्मा का जीवन एक ऐसा दीपस्तंभ था, जिसके कृतित्व के प्रकाश ने समाज, संस्कृति और राष्ट्रभक्ति के मार्ग को सदैव आलोकित किया। 20 जून 1940 को राजस्थान की वीरभूमि मेवाड़, उदयपुर में जन्मे इस महापुरुष ने अपने बचपन से ही राष्ट्र सेवा का व्रत ले लिया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़कर उन्होंने समाज जागरण की ऐसी अलख जगाई, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन गई।
1959 में जब युवा धर्मनारायण जी ने संघ प्रचारक के रूप में जीवन अर्पित करने का निर्णय लिया, तब उन्होंने व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं और पारिवारिक जीवन को त्यागकर राष्ट्रसेवा को ही अपना सर्वोच्च धर्म माना। नगर प्रचारक से लेकर जिला, विभाग, संभाग और प्रांत प्रचारक तक की भूमिका में उन्होंने संगठन को सशक्त करने के लिए अथक परिश्रम किया। उनका प्रत्येक क्षण समाज और संस्कृति के उत्थान के लिए समर्पित रहा।
महाकौशल प्रांत के प्रांत प्रचारक के रुप में प्रांत एवं जबलपुर महानगर के कई स्वयं सेवकों का मार्गदर्शन किया। आपने महाकौशल प्रांत में संघ एवं संघ के समय वैचारिक संगठनों के कार्य विस्तार के लिए अथक प्रयास किया था।
उनकी लेखनी भी उनके समाजसेवी व्यक्तित्व का प्रतिबिंब थी। आपने जीवन के उत्तरार्ध में विश्व हिन्दू परिषद् की प्रबंध समिति के सदस्य के रुप में अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए धर्म प्रसार का कार्य किया, साथ ही अपनी लेखनी को समाज जागरण का सशक्त माध्यम बनाया। उनकी रचनाएँ मात्र साहित्य नहीं, अपितु समाज को दिशा देने वाले अमूल्य मंत्र हैं। संस्कृति के उज्ज्वल नक्षत्र, राष्ट्र माता भारत माता की वंदना, शाश्वत हिंदुत्व, व्यक्ति से व्यक्तित्व, भगवान बलराम जी , भगवान सूर्य एवं संध्या जैसी अनेक कृतियाँ उनकी गहन आध्यात्मिक सोच, सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रभक्ति को दर्शाती हैं।
धर्मनारायण जी ने केवल लिखने तक स्वयं को सीमित नहीं रखा, बल्कि उनकी वाणी भी समाज में चेतना फूंकने वाली थी। उन्होंने अपनी लेखनी का प्रयोग समाज की चेतना को जगाने के लिए किया। उनके विचार समाज के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं और उनकी पुस्तकें भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर हैं। धर्मनारायण जी का जीवन निस्वार्थ सेवा, त्याग और राष्ट्र के प्रति अनन्य भक्ति का प्रतीक था। प्रवास के दौरान उन्होंने न जाने कितने युवाओं को राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा दी और समाज के प्रत्येक वर्ग को जोड़ने का कार्य किया। उनके भाषणों में ओजस्विता और स्पष्टता थी, जो श्रोताओं के हृदय में देशभक्ति की लौ प्रज्वलित कर देती थी।
वे केवल व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचारधारा थे — एक ऐसा विचार, जो संस्कृति, संस्कार और सेवा को केंद्र में रखकर समाज को जागृत करने में विश्वास रखता था। उन्होंने कभी प्रसिद्धि की चाह नहीं रखी, बल्कि सदैव निस्वार्थ भाव से कार्य करते रहे। उनके व्यक्तित्व में विनम्रता और कर्तव्यपरायणता की ऐसी छवि थी, जिसने उन्हें समाज के हर वर्ग में सम्माननीय बनाया।
आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका जीवन दर्शन, उनकी शिक्षाएँ और उनकी साधना हम सबके लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उनकी लेखनी और कर्म हमें सदैव राष्ट्र प्रेम और समाज सेवा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती रहेगी। उनकी स्मृतियाँ , उनकी लेखनी और उनके कृतित्व सदैव हमारे पथ को आलोकित करती रहेंगी।
ऐसे आजीवन यव्रती स्वयंसेवक, साहित्यकार श्रद्धेय धर्मनारायण जी शर्मा को कोटि कोटि नमन 🙏
डॉ नुपूर निखिल देशकर