एक दृष्टि आंदोलन पर
अंग्रेजी दासता के विरुद्ध 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हजारों-लाखों क्रांतिकारियों के बलिदान का इतिहास है, किंतु गिने-चुने क्रांतिकारियों के ही नाम चलन में हैं। जिनके नाम चलन में हैं भी, उन्हें संदिग्ध बताया गया है। भारत को स्वतंत्र कराने में अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारियों को डाँकू, आतंकवादी, विद्रोही लिखा-पढ़ा गया है। अंग्रेजियत से प्रभावित भारतीय लेखकों ने षड्यंत्रपूर्वक क्रांतिकारियों का नाम उजागर नहीं किया, ताकि भविष्य का भारत अपने पूर्वजों, वीरता से अनभिज्ञ रहे। उन्हीं वीर पूर्वजों में से एक हैं – महिदपुर के सदाशिवराव अमीन।
भारतीय स्वतंत्रता सुलग रही चिंगारी में महिदपुर के अमीन सदाशिवराव की भूमिका भी उल्लेखनीय है। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए बड़ी संख्या में सैनिकों की भर्ती की तथा उन्हें हर प्रकार का सहयोग दिया। अंग्रेज सरकार की व्यवस्था में रहकर उन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी।
08 नवम्बर, 1857 को निर्धारित योजनानुसार प्रातः 7.30 बजे दो हजार क्रांतिकारियों ने ऐरा सिंह के नेतृत्व में महिदपुर छावनी पर आक्रमण कर दिया। भीषण युद्ध में डॉ. कैरी, लेफ्टिनेंट मिल्स, सार्जेण्ट मेजर ओ कॉनेल तथा मानसन मार डाले गये।
इस संग्राम में जीत भारतीय पक्ष की हुई और अंग्रेजों को मैदान छोड़कर भागना पड़ा। इस युद्ध के लिए वातावरण बनाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले अमीन सदाशिवराव गिरफ्तार कर लिये गये। अंग्रेजों ने 07 जनवरी, 1858 को उन्हें तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया।।
परिचय
मध्य प्रदेश में इंदौर और उसके आसपास का क्षेत्र मालवा कहलाता है। 1857 में यह पूरा क्षेत्र अंग्रेजों के विरुद्ध दहक रहा था। यहां का महिदपुर सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र था। महिदपुर का किला किसी समय का एक सुदृढ़ दुर्ग था।
सन् 1818 में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध होल्कर राज्य का यह युद्ध स्थल भी रहा है। अंत में होल्कर को विवश होकर संधि करनी पड़ी और शर्तों के अनुसार ब्रिटिश सरकार ने यहाँ पर अपनी छावनी स्थापित की। जिसे ‘यूनाइटेड मालवा कांटिनजेंट, महीदपुर हेडक्वार्टर’ कहा जाता था।
छावनी का वार्षिक व्यय 111214 रुपये होल्कर सरकार को अदा करना पड़ता था। इसके अलावा मालवा भील कोर का व्यय 7862 रुपये वार्षिक भी होल्कर राज्य को ही वहन करना पड़ता था। इस कन्टिन्जेन्ट में कमीशन्ड आफीसर केवल यूरोपियन ही रहते थे तथा अन्य पदों पर भारतीय होते थे।
सदाशिवराव अमीन
सदाशिवराव होल्कर राज्य में अधिकारी थे, किंतु ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध थे। गंगाधर वकील, छावनी महिदपुर की रिपोर्ट के अनुसार, अमीन परोक्ष रूप से ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध गतिविधियों में शामिल थे। अंग्रेजों की ओर से जारी संदेश को अमीन क्रांतिकारियों तक पहुँचाने का काम अत्यंत गंभीरता से करते थे।
अंग्रेजी शासन का प्रतिकार करने के लिये अमीन ने नागरिकों को जागरूक किया। जनता के बीच प्रतिकार का संदेश प्रसारित किया। उन्होंने छावनी में क्रांतिकारियों की भर्ती की। सिपाहियों को भारतीय स्वतंत्रता के पक्ष में खड़े होने के लिये आग्रह किया।
गतिविधि
छावनी में 03 जुलाई को क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों पर आक्रमण किया। छावनी में हुए आर्थिक नुकसान से चिंतित अंग्रेज अधिकारियों ने अमीन से क्रांतिकारियों से संबंधित ब्यौरा माँगा, जिसकों उन्होंने नजरअंदाज कर दिया।
ईश्वरी प्रसाद सूबेदार ने अमीन को संदेश भेजा कि क्रांतिकारी छावनी पर हमला कर रहे हैं, सीमावर्ती नालों के पास अपने जवान खड़े करने चाहिये। इस सूचना के बावजूद उन्होंने ध्यान नहीं दिया और क्रांतिकारी अपने काम में जुटे रहे।
बाद में जिन सैनिकों को क्रांतिकारियों के विरुद्ध तैनात किया गया, उन्होंने क्रांतिकारियों की सहायता ही की। छावनी में अंग्रेजों के द्वारा बनाये गये नागरिक कैदी भी क्रांतिकारियों से प्रभावित हुए।
छावनी में भीषण क्रांतिकारी गतिविधि: मेजर टिमिन्स का आत्म-समर्पण
04 जुलाई, 1857 को आगर की कन्टिन्जेन्ट ने छावनी का प्रतिकार किया। कुछ यूरोपियन मारे गये और शेष पलायन कर गये। कमान्डिंग आफीसर मेजर टिमिन्स ने सुरक्षा के लिए अपने बंगला के बाहर चारों ओर तोपें लगा दी।
इंदौर के क्रांतिकारी महिदपुर में आ गये थे। रहमत उल्ला खाँ सूबेदार ने मेजर टिमिन्स पर धावा बोल दिया। आत्म-समर्पण करते हुए टिमिन्स ने अपना माथा रहमत के चरणों में टेक दिया।
टिमिन्स के पलायन के बाद सदाशिवराव ने लच्छी राम भूतड़ा तथा कृष्णराव भगवान से तोपखाना तथा पैदल सेना के सिपाहियों को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने के लिये आग्रह किया।
कैप्टन टी. हंगरफोर्ड की रिपोर्ट
10 जुलाई को कैप्टन टी. हंगरफोर्ड द्वारा लिखित पत्र के अनुसार, महिदपुर के क्रांतिकारी दिल्ली का रास्ता पकड़ लिये तो परिस्थिति बिगड़ जाएगी। महाराजा होल्कर की सहायता से यूनाइटेड मालवा कन्टिनजेन्ट को अपने अधीन रखा जा सकता है।
हेगरफोर्ड ने तत्कालीन अंग्रेजी बाम्बे सरकार अवगत कराया कि मालवा कन्टिनजेन्ट के बागी हो चुके क्रांतिकारी सिपाही जुलाई के द्वितीय सप्ताह में भी सक्रिय रहे।
हैदराबाद कन्टिन्जेन्ट की कार्रवाई
महीदपुर में क्रांतिकारियों की सक्रियता अंग्रेजों के विरुद्ध 08 अगस्त से अपने चरम हो गया था। हालांकि राउल की लड़ाई में क्रांतिकारी असफल हुए, हैदराबाद कन्टिन्जेन्ट ने घातक हमला किया, जिसमें अनेक क्रांतिकारी वीरगति को प्राप्त हुए। सैकड़ों क्रांतिकारी उज्जैन की ओर चले गये।
सदाशिवराव द्वारा तैयार सेना
26 अगस्त, 1857 को अमीन ने क्रांतिकारियों के साथ एकांत में बैठक की और उन्होंने कहा कि एक सौ की संख्या में तैयार रहें। अमीन उन्हें भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में उपयोग करना चाहते थे। इसके बदले पाँच रुपये प्रति माह सभी व्यक्तियों को दिया। बाद में यह वेतन 05 से बढ़कर 08 रुपये तक हुआ। दरअसल क्रांतिकारियों की यह टीम एक सेना ही थी, जिसका गठन अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई के लिये हुई। अमीन प्रतिदिन 05 से 10 क्रांतिकारी अपनी इस अनूठी सेना में भर्ती करते थे।
छावनी के सैनिको ने ही बरपाया अंग्रेजों पर कहर
छावनी के ही सैनिक अंग्रेजों पर कहर बनकर टूट पड़े। अंग्रेजों व क्रांतिकारियों के बीच में हुए मुठभेड़ में कैप्टन मिल्स बुरी तरह घायल हुआ, जिसे कुछ लोग उपचार के लिये ले जा रहे थे, लेकिन बीच मार्ग में ही नूर अली शाह नामक फकीर ने तलवार से उसे मौत के घाट उतार दिया।
क्रांतिकारियों द्वारा 08 नवम्बर की कार्रवाई
महिदपुर छावनी को स्वतंत्र कराने के लिये उन्हेल, उज्जैन, खाचरोद, बड़नगर से क्रांतिकारी पहुँचे। क्रांतिकारियों की संख्या लगभग दो हजार थी। इन्फेन्ट्री तथा आर्टिलरी के क्रांतिकारी सैनिक आर्टिलरी लाइन्स के पास एकत्रित हुए।
क्रांतिकारियों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध हुई कार्रवाई के संदर्भ में महीदपुर छावनी से गंगाधर वकील ने भाऊ साहेब (इन्दौर रियासत का दीवान) का अपने 11 नवम्बर के पत्र में लिखा कि 08 नवम्बर को क्रांतिकारियों ने जमकर संग्राम किया।
08 नवम्बर को क्रांतिकारी उन्हेल में ठहरे हुए थे, वे अचानक कंधाई छावनी में प्रविष्ट हुए और आग लगा दी। हजारों की संख्या में हमलावर क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों बंगलों तथा मिलेट्री लाइन्स को आग के हवाले कर दी।
गोलंदाज, सूबेदार शेख रहमतुल्ला खाँ तथा अन्य सिपाही भी क्रांतिकारियों के साथ हो लिये। बाहरी क्रांतिकारियों व छावनी में सिपाही के रूप में तैनात क्रांतिकारियों के बीच सांकेतिक समझौता था कि जैसे ही किला के बाहर से क्रांतिकारी पाँच बार शोर करें तो किला के अंदर के सिपाही तुरन्त ही किला से बाहर आ जायेंगे।
इस संग्राम में तीस-चालीस क्रांतिकारी वीरगति को प्राप्त हुए और इतने ही संख्या में घायल भी हुए। अंग्रेज अधिकारी एडजूटेंट कैप्टन, सार्जेंट, ले. जी. एल. मिल्स व डॉ. लियारस को गोली से मार दिया गया।
इस युद्ध में कन्टिन्जेन्ट इन्फेन्ट्री के अधिकांश सिपाहियों ने क्रांतिकारियों पर हमला करने से साफ इंकार कर दिया। मेजर टिमन्स व ले. डिसार्ट भाग खड़े हुए। 12 नवम्बर को क्रांतिकारी महीदपुर से अपने साथ बारह पाउन्डर की दो तथा नौ पाउन्डर की चार तोपों ले गये। इसके अतिरिक्त साठ बैल गाड़ियों में गोला-बारूद भी भर कर ले गये।
राउल गाँव के पास पहुँचते ही क्रांतिकारियों का मुकाबला ब्रिटिश फोर्स से हुआ। इस मुठभेड़ में 100 क्रांतिकारी वीरगति को प्राप्त हुए और 74 घायल हुए। 08 नवम्बर की लड़ाई ढाई घंटे तक चली थी।
क्रांतिकारियों को सजा : सदाशिवराव अमीन की गिरफ्तारी
दिसम्बर में महिदपुर की पल्टन के एक हिन्दू सिपाही तथा रिसाले के एक मुसलमान सवार पकड़े गये और उन्हें मेजर टिमन्स के बंगले के सामने फाँसी दी गयी। भाऊ चिटनवीस अमलदार को भी पकड़ लिया गया।
परगना महिदपुर के दस क्रांतिकारियों को वकील को सुपूर्द कर दिया गया। तनखा जमादार, मोहम्मद रजब, बरखेड़ा का पंजारा, पीर खाँ जमादार और जमाल खाँ सवार को मौत के घाट उतार दिया गया। इसके अलावा दिल्ली के अन्य सात क्रांतिकारियों को मंडवाला में शूट कर दिया गया।
ब्रिटिश फोर्स ने सदाशिवराव अमीन को अंग्रेज सरकार के विरोध में सक्रियता का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया। उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाने के बाद लोहे की बेड़ियों में जकड़कर हिंगलाजगढ़ किला के बंदीगृह में रखा गया।
कोर्ट मार्शल और अमीन को तोप से उड़ाया
सदाशिवराव अमीन की सजा से एजेंट संतुष्ट नहीं था, उसने महाराजा होलकर से अमीन को वापस माँगा और ब्रिटिश सरकार ने कोर्ट मार्शल से मुकदमा चलाया। अंत में वीर क्रांतिकारी को मौत की सजा सुनाई गयी।
07 जनवरी, 1858 को अमीन को तोप के सामने खड़ा कर उड़ा दिया गया। दूसरे दिन 08 जनवरी को सुबह की वेला में अमलदार भाऊ चिटनवीस को भी तोप से उड़ाया दिया गया। अन्य क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिये अंग्रेज सरकार ने इश्तहार जारी किया और पकड़ने वालों को इनाम की घोषणा की।
महिदपुर पल्टन के 82 अधिकारियों और सैनिकों को अंग्रेज सरकार के विरुद्ध होने पर कैद कर लिया गया। उनके पैरों में लोहे की बेड़ियाँ डाल दी गयीं। अधिकारियों, सूबेदारों, जमादारों, हवालदारों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी। कई सैनिकों को सात वर्ष से चौदह वर्ष की सजा दी गयी। सजा भुगतने हेतु धुलिया तथा मालेगाँव भेज दिया गया।
संदर्भ पुस्तक:
1857- मध्यप्रदेश के रणबाँकुरे
लेखक – डॉ. सुरेश मिश्र और भगवानदास श्रीवास्तव
प्रकाशक – स्वराज संस्थान संचालनालय