संघ शताब्दी वर्ष
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में महिलाओं की भूमिका
डा पिंकेश लता रघुवंशी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है और जितनी जिज्ञासा, प्रश्न भ्रम इस संगठन को जानने के लिए न केवल भारतीय मीडिया अपितु वैश्विक मीडिया, विश्व समाज में हैं संभवतः अन्य किसी भी संगठन को लेकर होंगे l किंतु संघ उस विशाल सागर के समान है जिसके बारे में दूर खड़े होकर आप उसके आकार, परिमाप, विस्तार, स्वभाव के बारे में वास्तविक आंकलन कर ही नहीं सकते मात्र कल्पना के आधार पर मिथक तय कर सकते हैं किंतु संघ समुद्र के समान उतना ही सरल भी है कि जैसे समुद्र के निकट जाकर मात्र अंजुली भर पानी पीने से उसके स्वभाव, वृत्ति का पता चल जाता है ठीक वैसे ही विश्व के इस सबसे बड़े न केवल भारत वर्ष अपितु अनेक देशों में व्याप्ति वाले संगठन का स्वभाव जानने के लिए एक छोटे से स्थान पर लगने वाली शाखा ही पर्याप्त है l जैसे समुद्र अपनी व्यापकता, गम्भीरता और गहराई का वर्णन स्वयं नहीं करता वैसे ही संघ भी अपने कार्यों का, अपनी व्यापकता का, मनुष्य निर्माण से लेकर राष्ट्र निर्माण की सतत् प्रक्रिया में मौन साधना में बिन प्रसिद्धि बिन प्रचार- प्रसार के सदेव सक्रिय हो चलायमान है l इसीलिए संघ को लेकर समय समय पर अनेक अनावश्यक विमर्श भी खड़े किये गये हैं, किये जा रहे हैं l सामान्यतः संघ इन विमर्शो के प्रतिउत्तर देने में अपनी ऊर्जा का व्यय करने की अपेक्षा और अधिक गति से उसी क्षेत्र में कार्य विस्तार करने में लग जाता है l
संघ को लेकर चलने वाले अनेक विमर्शो में से एक है संघ में महिलाओं की स्थिति उनकी भूमिका को लेकर कि संघ में महिलाओं का सम्मान नहीं, उनकी सहभागिता नहीं है l आश्चर्य होता है इस विमर्श पर और दया आती है इस भ्रम को समय समय पर संसद से लेकर सोशल मीडिया, वैश्विक समाज तक बिना शोध बिना जानकारी प्रचारित करने वालों की बुद्धि पर और संघ को लेकर मनों में बसी हुई कुंठा पर l राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना करते समय एक छोटे लक्ष्य नहीं अपितु भारत माता को परम वैभव पर ले जाने की संकल्पना को लेकर डा केशव बलिराम पंत हेडगेवार जी ने विजयादशमी १९२५ को नागपुर में नींव रखी l पराधीन भारत में हिंदुत्व के विचार को लेकर भारत के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, राजनेतिक स्वातंत्र्य के विशाल उद्देश्य को लेकर जब संघ अस्तित्व में आया तब तत्कालीन परिस्थितियों में स्वभाविक है पुरुषों का ही संगठन तैयार किया किंतु इसकी कार्यशैली, आत्मीयता व अनुशासन से परिपूर्ण आचार पद्धति के कारण शीघ्र ही नागपुर से निकल कर भारत के अनेक प्रांतों में विस्तार होना आरंभ हो गया l समाज में भी परिवर्तन प्रत्यक्ष परिलक्षित होने लगा था l वर्धा महाराष्ट्र में रहने वाली एक साधारण किंतु असाधारण कार्य आरंभ करने वाली लक्ष्मी बाई केलकर जी ने अपने बालकों में संघ की शाखा में जाने के कारण आये गुणात्मक विकास को देख कर डा हेडगेवार जी से संपर्क किया और महिलाओं, बेटियों के लिए भी शाखाओं में आने की अनुमति मांगी l हेडगेवार जी ने तात्कालिक परिस्थितियों में ऐसा होना संभव न होने के कारण अलग महिला संगठन जो संघ के समान ही महिलाओं के लिए कार्य करे आरंभ करने की प्रेरणा दी और विजयादशमी १९३६ को एक और आर एस एस अर्थात राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना हुई l क्या कोई कल्पना कर सकता था कि जो देश अंग्रेजों के आधिपत्य में हो, समाज हीनता के भाव से ग्रसित हो उस देश में महिलाओं का कोई विश्व व्यापी संगठन भी खड़ा हो सकता है और संगठन की स्थापना के पीछे प्रेरणा किसकी उसी संघ की जिसे महिला विरोधी बताया जाता है l
राष्ट्र सेविका समिति महिलाओं का एक ऐसा संगठन बन कर उभरा जो महिलाओं के अंदर राष्ट्रभक्ति के भाव और सनातन संस्कृति के प्रति सम्मान सिखाने के साथ साथ आत्म सुरक्षा, अनुशासन, शारीरिक, मानसिक विकास के गुण विकसित करने का कार्य करता था l राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने महिलाओं के लिए अपना नहीं अपने जैसा ही संगठन खड़ा करने में सहयोग किया जिसकी रीति नीति, आचार पद्धति पूर्ण रुपेण संघ के ही समान थी l शाखा, बैठक, योजना, वर्ग प्रशिक्षण, प्रचारिकाएँ, लक्ष्य सभी कुछ संघ के जैसा l जहाँ संघ व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की बात करता है तो समिति स्त्री को राष्ट्र की आधार शिला मान तेजस्वी राष्ट्र के पुनर्निर्माण की बात करती है l संघ की महिलाओं को लेकर ये एक व्यापक दूर दृष्टि ही तो थी कि महिलाओं को दिशा दिखाने का कार्य उनके जीवन में सुधार लाने का कार्य कभी भी पुरुष नहीं कर सकते महिलाएं अपनी समस्याओं का समाधान पाने में स्वयं सक्षम हैं l
राष्ट्र सेविका समिति और संघ का संबंध एक परिवार के भाई और बहिन के समान है जिनकी जड़े, विचार धारा, लक्ष्य सभी एक समान हैं किंतु कार्य करने की पद्धति समान होते हुए भी स्वतंत्र है l संघ, समिति का सहयोग आरंभ में हेडगेवार जी से लेकर वर्तमान में मोहन भागवत जी तक सदेव करता आया है l १९३६ में संघ प्रेरणा से स्थापित हुई राष्ट्र सेविका समिति वर्तमान में विश्व का सबसे बड़ा महिला संगठन है जिसकी कार्य विस्तार की सीमाएं भारत भूमि से बाहर निकल लगभग २८ देशों में दिखाई देती हैं l हम जब तुलनात्मक रूप से विश्व के सबसे बड़े महिला संगठनों का अध्ययन करते हैं तो एक नाम आता है अमेरिका के महिला संगठन NOW (National Organization for Women) जिसकी स्थापना १९८८ में और दूसरा है यूरोप में सक्रिय महिला संगठन ICW (International Council of Women) जिसकी स्थापना १८८१ में हुई lइन दोनों संगठनों और राष्ट्र सेविका समिति में महिला संगठन होने के बाद भी सबसे बडे अंतर कि समिति कार्य वैश्विक होने पर भी समिति महिलाओं के अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्यों की बात करती है जबकि अमरीका यूरोप के नारीवादी संगठन अपने अपने क्षेत्रों में सीमित रहकर मात्र अधिकारों की बात करते हुए परिवार, समाज की महत्ता को नहीं मानते l
राष्ट्र सेविका समिति संघ के समानांतर संगठन है तो संघ के अनुषांगिक चलने वाले विविध संगठनों में भी महिलाओं की भूमिका न केवल प्रभावी रहती है अपितु निर्णायक भी होती है l जैसे भारतीय स्त्री शक्ति भी महिलाओं के मध्य महिलाओं के द्वारा ही चलने वाला संगठन है जिसकी स्थापना १९८८ में हुई और जो पांच उद्देश्यों को लेकर महिलाओं के लिए कार्य करता है वे हैं शिक्षा एवं कौशल विकास, मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य, आत्म-सम्मान, आर्थिक स्वतंत्रता और लैंगिक समानता l विद्या भारती शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाला ऐसा संगठन है जिसके माध्यम से संपूर्ण भारत में हिंदुत्वनिष्ठ, राष्ट्र भक्ति से ओत प्रोत शिक्षा प्रदान की जाती है और क्रियांवयन करने वाली अर्थात शिक्षा देने वाली महिला आचार्यों की सहभागिता ९५ % से अधिक की है l १९७७ से ही सरस्वती शिशु मंदिरों के माध्यम से सर्व सुलभ, सर्व स्पर्शी शिक्षा प्रदान करने वाला यह विश्व का सबसे बड़ा गैर सरकारी शेक्षणिक संगठन है जहाँ छात्राओं की संख्या भी और अध्यापिकाओं की संख्या भी सर्वाधिक है और पाठ्यक्रम में बालिकाओं को संस्कारों के साथ साथ आत्मरक्षा के गुण भी सिखाये जाते हैं l अखिल भारतीय विधार्थी परिषद में लाखों छात्राएं सदस्यता लेकर नेतृत्व, स्वाबलंबन् के गुण विकसित करती हैं तो पूर्णकालिक व बड़े बड़े दायित्वों का निर्वहन कर अपनी निर्णायक भूमिका निभाती हैं l भारतीय जनता पार्टी एक राजनेतिक संगठन है जिसे भी विश्व के सबसे बड़े राजनेतिक दल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई है वहाँ हम ग्राम पंचायतों, नगरीय निकायों से लेकर प्रदेश सरकारों में ही नहीं वर्तमान में केंद्रीय महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं की गरिमामयी उपस्थिति देखते हैं फिर चाहे वह पूर्व में स्व सुषमा स्वराज जी हो, सुमित्रा ताई महाजन हो या निर्मला सीतारमन जी अथवा देश के सर्वोच्च पद पर विराजमान महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू जी ही क्यों न हो l शक्ति वंदन बिल के माध्यम से भाजपा महिलाओं की संसद में और भी अधिक स्थिति को सुद्रण करने की पक्षधर है l भारतीय मजदूर संघ, सेवा भारती, संस्कार भारती, प्रज्ञा प्रवाह, संस्कृत भारती, विज्ञान भारती अनेकानेक संगठन जो संघ विचार से अनुप्राणित हैं और जिनमें महिलाओं की भूमिका न केवल संख्यात्मक, गुणात्मक रूप से सक्रिय है अपितु निर्णायक रूप से भी महत्वपूर्ण है अतः ये विमर्श कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ महिलाओं के प्रति दुराग्रह रखता है पूर्णतः निराधार है l यदि ऐसा होता तो संघ की दो सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बैठकों अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल और प्रतिनिधि सभा की बैठको में महिलाओं की उपस्थिति नहीं होती l
संघ सदेव से ही मानता आया है कि घर,समाज और राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की महती भूमिका होती है इसलिए ऐसे किसी भी विमर्श की कोई प्रासंगिकता नहीं रह जाती है जो तथ्यपरक न हो मात्र विरोध भर के नाम पर जब जो चाहा भ्रम फेला दिया किंतु सत्य, सत्य होता है उसे किसी प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं होती समाज उसके कार्यो, व्यवहार से ही उसकी प्रमाणिकता को स्वीकार करता है l