
डॉ. अण्णाभाऊ साठे (1 अगस्त 1920 – 18 जुलाई 1969) महाराष्ट्र के सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत, प्रखर लोकशाहीर, लेखक और जनकवि थे। वे समाज के वंचित वर्ग से आए, लेकिन अपनी लेखनी और लोककला के माध्यम से उन्होंने सामाजिक अन्याय, जातिगत विषमता, श्रमिक जीवन और नारी शोषण के विरुद्ध क्रांतिकारी स्वर उठाया।
उनका जन्म सांगली जिले के वाटेगांव गाँव में हुआ। केवल डेढ़ दिन की स्कूली शिक्षा के बावजूद उन्होंने लोकशैली में, जो साहित्य रचा, वह आज भी समाजशास्त्रियों, साहित्यकारों और छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने मराठी में 35 उपन्यास, 15 लघुकथा संग्रह, अनेक पोवाड़े, लावणियाँ, पटकथाएँ और गीत लिखे। उनका प्रसिद्ध उपन्यास ‘फकीरा’ सामाजिक विद्रोह और मानवीय करुणा का प्रतीक बन गया है।
श्री साठे ने जनसाहित्य को आंदोलन से जोड़ा। संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन, गोवा मुक्ति संग्राम जैसे आंदोलनों में उनकी भूमिका प्रेरणास्पद रही। लोकभाषा, लोकशैली और लोकजीवन को केंद्र में रखते हुए, उन्होंने सामाजिक चेतना का साहित्य रचा। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की प्रखर लेखनी को समर्पित ‘फकीरा’ में साठे ने माँग समुदाय में जन्मे एक वीर फकीरा का चित्रण किया है, जो अपने समुदाय को भुखमरी से बचाने के लिए ग्रामीण रूढ़िवादिता और ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करता है।
उनकी रचनाएँ सिर्फ साहित्य नहीं, परिवर्तन की मशाल थीं। वे कलम के योद्धा थे – अन्याय के विरुद्ध और समानता के पक्ष में।
आज उनकी 105वीं जयंती पर विश्व संवाद केन्द्र मालवा की ओर से सादर नमन