सुनियोजित रूप से श्रीराम की महिमा भंग करने का प्रयास, सीता निर्वासन का मिथ्या आरोप!!
किसी भी देश के इतिहास और संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त करने का सबसे उत्तम माध्यम होता है,साहित्य और जब भी कोई शत्रु देश,अन्य देश पर आक्रमण करता है तो सर्वप्रथम उसके साहित्य,ग्रंथो को नष्ट कर देता है,नालंदा और मार्सेली इसका उदाहरण है। साहित्य नष्ट कर देना अपराध है परंतु उससे भी बड़ा कुकर्म है ग्रंथो में वर्णित,वृतांतो में असत्य,तथ्य जोड़कर उसके महत्व और पवित्रता को खंडित कर देना।वाल्मीकी कृत रामायण के साथ यही षड्यंत्र रचा गया है। सदियों से इसी झूठ को सच दिखाया गया कि राम ने माता सीता को धोबी के कहने पर निर्वासित कर दिया था और उसका वर्णन उत्तरकांड में है परंतु सत्य तो यह है कि उत्तर कांड कभी वाल्मीकि रामायण का अंश था ही नहीं और इसके अनेक प्रमाण हैं।
रामायण काल लगभग 7323 ईसा पूर्व अर्थात वर्तमान से 9341 वर्ष पूर्व त्रेता युग का है लगभग पौने दो करोड़ वर्ष पूर्व का जो सतयुग नाम से जाना जाता है और वर्तमान में चल रहा है कलयुग। युग परिवर्तन के साथ ही,सामाजिक परिस्थितियों और साहित्यिक क्षेत्र के विचारों में भी परिवर्तन आया और आधुनिक साहित्यकारों ने रामायण युगीन नारी की विशेषता,आदर्श,पतिव्रता व कर्तव्यनिष्ठ नारी के स्थान पर,आत्मनिर्भर, पुरुष मुक्त, स्वतंत्र व उन्मुक्त नारी को वरीयता दी।इस परिवर्तन ने नारी विमर्श की दिशा ही बदल दी।नारी को युगों से,पीड़ित,अबला और शोषित बताकर, पुरुष वर्ग को शोषक और अत्याचारी रूप में प्रस्तुत किया गया।नारीवाद का मुख्य उद्देश्य था नर और नारी को समान अधिकार और महत्त्व परंतु अब इसका उद्देश्य,पुरुष को अक्षम,अशक्त, दिखाना और अपमानित करना रह गया है और वामपंथियों ने इस आग में घी की तरह सहयोग किया है फलस्वरूप वामपंथियों के साथ नारीवादी संगठनों ने पुरुषों के साथ संत,वाल्मीकि और तुलसीदास जी ही नहीं श्रीराम को भी सीधे सीधे स्त्री और दलित विरोधी घोषित कर दिया है और यही,राष्ट्र,सनातन संस्कृति विरोधी समूह आज श्रीराम मंदिर स्थापना पर अपनी कुत्सित विचारधारा लिए,रामायण के कथित उत्तरकांड में वर्णित प्रसंग,शंबूक वध,सीता निर्वासन जैसी घटनाओं को सत्य बताकर श्रीराम की महिमा भंग करने की कुचेष्टा कर रहे हैं जो कि घोर निंदनीय है।
रामायण में छह कांड ही थे,बौद्ध काल में षड्यंत्र पूर्वक उत्तरकाण्ड को जोड़ा गया जिसने राम की छवि को कलंकित करने का प्रयास तो किया ही भारतवर्ष में विष घोलने का कार्य भी किया।हिंदू व नारी विरोधी मानसिकता,धर्म परिवर्तन जैसी घटनाओं को जन्म दिया।कम्ब रामायण (तमिल) रंगनाथ (तेलगु) तोरवे रामायण ( कन्नड़) इनमें कहीं भी उत्तरकाण्ड का उल्लेख नहीं है,इन सभी रामायणों में राम के राज्य अभिषेक के बाद,सुग्रीव,विभीषण अपने राज्य लौट जाते हैं,राजदरबार का वर्णन और अयोध्या में आनंद का वर्णन कर रामायण समाप्त कर दी गईं! तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस (अवधि) में उत्तर काण्ड अवश्य है परंतु उसमें कहीं भी,शम्बुक वध,सीता निर्वासन,या लव कुश का उल्लेख ही नहीं है!राम राज्य अभिषेक का वर्णन वाल्मीकि जी,छठे कांड में करते हैं तो तुलदीदास जी ने सातवें कांड में किया है!वाल्मीकी जी ने फलश्रुति (रामायण पाठ के लाभ) युद्धकांड के अंत में ही लिखी है अगर उत्तर कांड लिखा होता तो उसके अंत में लिखते तो यहीं सिद्ध हो जाता है कि उत्तरकांड कभी लिखा ही नहीं गया!
अग्नि परीक्षा भी राम के द्वारा नहीं ली गई थी वह माता सीता की इच्छानुरुप थी।युद्ध कांड के 116वें सर्ग में सीता जी कहती हैं, ‘यथा मे हृदयम नित्यम नापसरपति राघवात’ तथा ‘लोकस्य साक्षी मां सर्वतः पातु पावक:’। अर्थात मेरा हृदय एक क्षण के लिए भी श्रीराम से विमुख न रहा हो तो सम्पूर्ण लोकों के साक्षी अग्नि देव मेरी रक्षा करें।’अग्निदेव ने स्वयं प्रकट होकर श्रीराम से कहा था कि देवी सीता दोष रहित हैं आप इन्हें स्वीकार करें और भगवान राम ने अग्निदेव के समक्ष प्रण लिया , ‘विशुद्धा त्रिशु लोकेशु, मैथिली जनकात्मजा.. ना विहातुम मया शक्या कीर्ति रात्मवता यथा’।अग्नि देव, मैं आपको वचन देता हूं कि जैसे एक यशस्वी व्यक्ति अपनी कीर्ति का त्याग नहीं करता, मैं जीवन भर सीता का त्याग नहीं करूंगा।’
अब विचार कीजिए क्या राम ने अग्निदेव को दिए गए वचन का पालन नहीं किया होगा? जिस कुल की रीति ही यही हो कि,’प्राण जाए पर वचन न जाई’ तो क्या राम ने सीता को सप्तपदी में कोई वचन नहीं दिया था? जो राम यह कहते हैं कि बिना सीता के वह स्वर्ग भी स्वीकार नहीं करेंगे, वह त्याग सकते हैं सीता को? या फिर जो राम सीता वियोग में सौ योजन समुद्र पर सेतु बांध लंका पहुंच गए वह सीता को स्वयं से दूर कर देंगे?
एक और प्रमाण रामानंद सागर द्वारा निर्मित रामायण के कलाकारों द्वारा यह स्वीकार किया जाना कि, रामानंद जी उत्तरकाण्ड की कथा दिखाने के पक्ष में नहीं थे परंतु तत्कालीन सरकार द्वारा उन पर दबाव बनाया गया कि उन्हे उत्तर काण्ड भी दिखाना ही होगा।अब सरकार किसकी थी और ऐसा क्यों किया गया यह तो आप समझ ही जाइए!
कलयुग, चरित्रहीनता का युग है दुराचार,भोग विलास बढ़ रहा है और लोग जैसे समाज,संगत में रहते हैं उनकी मानसिकता वैसी बन जाती है। एक चरित्रवान समाज के आकलन करने का सामर्थ्य है एक चरित्रहीन समाज में?उस चरित्रवान युग (सतयुग) के नायक को,कलयुग का चरित्रहीन, तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग स्त्री विरोधी दिखाने का प्रयास कर रहा है, जिस युग का खलनायक भी इतना सिद्धांतवादी था कि जिसने अपहरण करके लाई गई स्त्री को भी छूने का प्रयास तक नहीं किया बस निवेदन ही करता रह गया तो उस युग के नायक राम का चरित्र कितना उत्तम और आदर्श वादी रहा होगा विचार कीजिए!क्या आज आप यह सोच भी सकते हैं कि किसी स्त्री का अपहरण कर लिया जाए तो वह बलात्कार से बच जाएगी?आज नारीवाद के ढोल पीटने वाली स्त्रियां जो बिना विवाह किए कितने पुरुषों के साथ लिव इन में रहती है वह समझ पायेगी विवाह संस्कार का महत्त्व,पति – पत्नी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्य और निष्ठा को?सीता भी, जिन्हें स्वयं की भांति अबला और शोषित नजर आती है, उन्हे ज्ञात भी है कि सीता कितनी तेजस्वी पतिव्रता स्त्री थी ?
मुझे गंगुबाई फिल्म का वह सीन याद आ रहा है जिसमें नायिका भाषण देते हुए कहती है कि, लोग कपड़े बेचते हैं, सब्जी बेचते हैं, हम अपना शरीर बेचते हैं तो क्या गलत करते हैं? और एक संवाद था ‘ इज्जत से जीने का ‘ जिस पर लोग तालियां बजाते हैं!क्या होती है इज्जत?अगर स्त्री देह को बेचना इज्जत है तो फिर हमारे देश की सैकड़ों वीरांगनाएं जिन्होंने मुगलों से सतीत्व की रक्षा हेतु जौहर करके स्वयं की आहुति दे दी वह मुर्ख थीं? हमारा देश संवाद का देश है कोई बात कहां से आरंभ होकर कहां तक, किस रूप में पहुंचेगी अंदाजा लगाना कठिन है !तब ऐसी आधुनिक संस्कृति जिसमें स्त्री, देह को आय का साधन समझ ले,जिसकी दृष्टि में परिवार और माता- पिता का कोई सम्मान नहीं,जो विवाह जैसे पवित्र संस्कार को मजाक समझे,जब मन किया संबध तोड़ दिया, वह भला समझ पायेगी राम सीता के अटूट रिश्ते की पवित्रता को? वास्तव में सीता निर्वासन का मुद्दा हमारे संगठित सनातन समाज के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने और नारी अस्मिता को ठेस पहुँचाने के लिए रचा गया षड्यंत्र है ।भगवान राम के प्रति हमारे पूज्यभाव पर किया गया कुठाराघात है।
विपिन किशोर सिन्हा ने एक छोटी शोध पुस्तिका लिखी है जिसका नाम है- ‘राम ने सीता-परित्याग कभी किया ही नहीं।’ यह किताब संस्कृति शोध एवं प्रकाशन वाराणसी ने प्रकाशित की है इसमें सारे प्रमाण हैं कि राम ने कभी सीता का परित्याग नहीं किया।
अगर शम्बूक वध और सीता निर्वासन जैसे मनगढंत प्रसंग सत्य होते तो क्या गीताप्रेस जैसे उत्कृष्ट प्रकाशन की पुस्तकों में प्रकाशित नहीं होते? उत्तर कांड ना महर्षि वाल्मीकि की रचना है और ना ही ये कभी मूल रामायण का भाग था इसीलिए जान-बूझ कर फैलाये जा रहे इस असत्य,पाखंड और षडयंत्र को समझिये,और स्वविवेक से काम लीजिए।
जय सियाराम..