सम्पूर्ण मालवा प्रांत में शिवाजी द्वारा स्थापित हिन्दवी स्वराज्य दिवस के ३५० वें वर्ष के अवसर पर होंगे वर्ष भर कार्यक्रम आयोजित

हिन्दवी स्वराज्य समारोह समिति ने प्रेस कांफ्रेंस कर दी जानकारी, शिवाजी महाराज के चरित्र को जन-जन तक पहुंचाने का लक्ष्य

छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक अर्थात् ‘हिन्दवी स्वराज्य’ की स्थापना का ३५०वाँ वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी तदनुसार २ जून, २०२३ शुक्रवार से प्रारंभ हो रहा है। लंबे और सतत संघर्षों के परिणामस्वरूप हुए शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक और हिन्दू पदपादशाही की स्थापना के विजयोत्सव को समिति द्वारा बड़े स्तर पर पुरे मालवा प्रांत में मनाया जावेगा। प्रांत के सभी २८ जिलों में गणमान्य नागरिकों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं की समितियों का गठन किया जा रहा है। प्रांतीय समिति एवं जिला समितियों के द्वारा हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना के ३५० वर्षपूर्ण होने पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जावेंगे।

विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों में भी विभिन्न गोष्ठियों, परिचर्चा, सेमिनार एवं छात्रों के बीच व्याख्यानसत्रों का आयोजन इस निमित्त होगा। विद्यालयों में भी शिवाजी के राज्याभिषेक और हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना को चिरस्थायी बनाने के उद्देश्य से व्याख्यान सहित विभिन्न कार्यक्रम जैसे भाषण, प्रश्नमंच, चित्रकला और अभिनय प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जावेगा।

राज्याभिषेक के विषय को पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी एवं प्रेरक प्रसंगों के प्रकाशन द्वारा भी जनव्यापी बनाया जावेगा। शिवाजी महाराज के प्रेरक जीवन प्रसंगों पर आधारित साहित्य के प्रचार-प्रसार का कार्य भी ज़िला स्तरीय समितियों द्वारा किया जावेगा।

छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के समय देश की स्थिति

सतत आक्रमणों, युद्धों और देश के अलग-अलग क्षेत्रों में पराजय से जनित निराशा के कारण ग़ुलामी की मानसिकता देश के अधिकांश क्षेत्र पर छा रही थी। पृथ्वीराज चौहान की पराजय से लेकर देवगिरी में यादवों तथा विजयनगर साम्राज्य के पराभव का प्रभाव सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्थाओं पर परिलक्षित होने लगा था।विदेशी मुगलों के साथ होने वाले समझौतों एव् संधियों को भारत के साथ संधि-समझौतें माना जाने लगा था। अपने आप को भारतीय ना मानकर तुर्क मानने वाले मुग़लों ने भारत की जनता को दोयम दर्जे का बना दिया था। कोई राज्य मुगलों के मनसबदार बनते जा रहे थे। जजियाकर जैसे अमानवीय करों और हिन्दुओं के साथ भेदभाव एवं हिन्दू मंदिरों को तोड़ना मुगलों की शासन व्यवस्था का घोषित लक्ष्य बन गया था। इन परिस्थितियों में लंबे और सतत संघर्षों का परिणाम शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक और हिन्दू पदपादशाही की स्थापना थी।

शिवाजी के राज्याभिषेक का उद्देश्य एवं प्रभाव

धैर्य और विवेक के साथ पूरे हिन्दू समाज को संगठित करके छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगल सत्ता को चुनौती दी। मुगल अर्थात् भारत के शासक ऐसा मिथक तोड़ने के लिये शिवाजी ने व्यापक एवं राष्ट्रीय सोच के साथ मुगलों को परास्त करके तात्कालिक भारतीय राजाओं में आत्मविश्वास जागृत किया।शिवाजी के राज्याभिषेक ने विदेशी शक्तियों के सामने शिवाजी के भारत के वास्तविक शासक होने के दावें को स्थापित किया। शिवाजी द्वारा दिये जाने वाले ‘इनाम’ को वैधानिक (लीगल) मान्यता मिली। राज्याभिषेक ने जहाँ एक ओर हिन्दू समाज में सुरक्षा और उत्साह के भाव का संचार किया, वहीं दूसरी ओर विदेशी आक्रांताओं और शासकों को हताश भी किया। राज्याभिषेक के पश्चात् विदेशी और आक्रमणकारियों के प्रभावों को हटाने का कार्य द्रुतगति से प्रारंभ हुआ। भारतीय भाषाओं में फारसी के मिश्रण की अशुद्धि के लिये भाषाशुद्धि अभियान चलाया गया। मुगलों के अनाचार से विवश होकर मुस्लिम हो चुके परिवारों की हिन्दू धर्म में घर वापसी की शुरुआत शिवाजी ने की। मुगलों के शासनकाल में तोड़े गये हिन्दू मंदिरों का पुनर्निर्माण शिवाजी ने कराया। केवल महाराष्ट्र ही नही, अपितु महाराष्ट्र से बाहर भी शिवाजी ने मुगलों द्वारा तोडे गये मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया। शिवाजी के राज्याभिषेक का तात्कालिक उद्देश्य हिन्दूओं की सुरक्षा तथा इस्लामिक साम्राज्य को ध्वस्त करना था। शिवाजी, पुरे देश में स्वराज्य प्राप्ति के आदर्श बने। छत्रसाल जैसे कई राजाओं को शिवाजी से प्रेरणा मिली। शिवाजी, भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के भी प्रेरणापुँज है।

छत्रपति शिवाजी महाराज का हिन्दवी स्वराज्य

वैदिक एवं धार्मिक परंपराओं के साथ गागाभट्ट के मार्गदर्शन में सम्पन्न राज्याभिषेक की भव्यता के प्रमाण समकालीन साहित्य में उपलब्ध है। हिन्दवी स्वराज्य, सुशासन का पर्याय सिद्ध हुआ। जीजमाता और विजयनगर साम्राज्य के ग्रंथों से प्रेरणा प्राप्त कर शिवाजी ने ‘प्रजा के राज’ की कल्पना को मूर्त रूप दिया। कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिये राज्यव्यवहारकोष की रचना की और अष्टप्रधानमंडल के माध्यम से लोककल्याण और सामान्यजन के जीवन को स्वावलंबी, स्वाभिमानी और सुखी बनाने में हिन्दवी स्वराज्य का स्थान महत्वपूर्ण है। भारत की सर्वश्रेष्ठ भू-राजस्व प्रणाली हिन्दवी स्वराज्य में विकसित हुई, जिसमें न्यूनतम कर और किसानों की सुविधा का ध्यान रखा गया। भारतीय नैतिक मूल्यों को व्यवहार में रखते हुए शिवाजी ने पहली बार वैतनिक सैन्यव्यवस्था का गठन किया, जिसमें युद्ध के उच्चादर्शों का पालन किया जाता था। शिवाजी ने नौसेना पर भी विशेष ध्यान दिया। नारी सम्मान और सामाजिक सद्भाव शिवाजी के राज्य की प्रमुख विशेषता थी। लेककल्याणकारी राज्य की दृष्टि से हिन्दवी स्वराज एक आदर्श शासन व्यवस्था सिद्ध हुआ।

शिवाजी महाराज के राज्य के ३५०वें वर्ष पर समिति ने राज्याभिषेक के पूर्व एवं समकालीन देश की सामाजिक, राजनैतिक परिस्थिति; राज्याभिषेक के प्रयास, लक्ष्य एवं संघर्षगाथा; राज्याभिषेक की विधि एवं पद्धति; राज्याभिषेक के तात्कालिक एवं दीर्घकालिक प्रभाव एवं सामाजिक समरसता-सद्भाव और राष्ट्रीय चेतना के जागरण में हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना के योगदान के विषयों को जन-जन तक ले जाने का संकल्प लिया है।

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