मदरसे हो बना रहे है बागी

मदरसे बैरी हो गये हमार…..

जी हॉं, सही सुना आपने। मदरसा – यानी मज़हबी शिक्षा का केन्‍द्र होना चाहिए, मगर मज़हबी शिक्षा की आड़ में राष्‍ट्रविरोधी एवं हिन्‍दू-विरोधी विमर्श के जो पाठ अबोध बच्‍चों के कानों में फूँके जा रहे हैं, उससे कट्टरपंथी मस्तिष्‍कों की एक बड़ी आबादी तैयार हो रही है। ज्ञातत्‍व है कि भारत की स्‍वतंत्रता प्राप्ति के पश्‍चात् एवं धार्मिक आधार पर विभाजन के बावजूद भारत में गैर-हिन्‍दुओं (मुस्लिम एवं ईसाई मतावलंबी) जिन्‍हें ‘अल्‍पसंख्‍यक’ कहा गया, को अपने मज़हब एवं रिलीजन के प्रचार-प्रसार की बिना शर्तों की खुली छूट दे दी गई। इसके विपरीत, गुरुकुलों पर प्रतिबंध लगा दिया गया एवं हिन्‍दुओं को अपने धर्म के प्रचार पर रोक भी लगा दी गई, जिसका परिणाम यह हुआ कि आम हिन्‍दू समाज जिसे तकनीकी, व्‍यावहारिक शिक्षा के साथ-साथ ही धार्मिक शिक्षा भी मिलनी चाहिए थी, वह उससे वंचित हो गया और एक तरह से अपने धर्म से दूर जाता रहा।

मदरसों की किताबें आम बुक स्‍टोर्स में क्‍यों नहीं मिलतीं –
जहॉं एक ओर अन्‍य शिक्षण संस्‍थानों की शैक्षणिक किताबों के स्‍वीकृतीकरण की एक नियमबद्ध प्रक्रिया है, वहीं दूसरी ओर मदरसों की किताबों पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं है। मदरसों में क्‍या पढ़ाया जाता है, उनका पाठ्यक्रम क्‍या होता है, सरकार एवं प्रशासन द्वारा यह जानने की कभी कोशिशें ही नहीं कीं गईं। मदरसों की किताबें क्‍यों किसी भी बुक स्‍टोर पर खुलेआम नहीं मिलतीं हैं, जबकि बाकी सारी शैक्षणिक किताबें आसानी से दस्‍तयाब होती हैं? कारण स्‍पष्‍ट है कि उनके पाठ्यक्रम में अवश्‍य ही वे चीज़ें मौजूद हैं, जो कि बच्‍चों में कट्टरता के बीज बो सकें, अन्‍यथा सॉंच को ऑंच क्‍या! जब कभी मदरसों को नियमबद्ध करने की बात की जाती है, तब कट्टरपंथी समूह तुरंत विरोध में सामने आ जाते हैं, जबकि मदरसों को सरकारी अनुदान भी मिलता है। मदरसों में पढ़ाने वाले मौलवियों का वेतन सरकारी ख़ज़ाने से जाता है, तो सरकार को यह अधिकार है कि वह मदरसों के शैक्षिक पाठ्यक्रम की उचित जॉंच करवाये एवं जहॉं आवश्‍यकता हो, उसे बदलवाऍं। सरकारी अनुदान प्राप्‍त मदरसों के अलावा कई निजी मदरसे भी चलन में हैं, जिन पर भी किसी तरह की विजिलेंस नहीं है। सरकारों को चाहिए कि वे इन शिक्षण संस्‍थानों पर नज़र रखे एवं उनमें भी आधुनिक शिक्षा प्रणालियों को लागू करवाये।

सहारनपुर का मदरसा कर रहा था स्‍लीपर सेल तैयार-
मदरसों में चल रही कट्टरपंथ की फैक्ट्रियों की सूचना यदा-कदा सामने आती ही रहती हैं। मार्च 2022 में बंगाल एस.टी.एफ. द्वारा फ़ैज़ल एवं बेंगलुरु से पकड़े गये हसन शेख की गिरफ्तारी से यह बात सामने आई थी कि ये लोग बंगाल से लेकर उत्‍तराखण्‍ड तक आतंकी सेल तैयार करने में लगे हुए थे। फ़ैज़ल सहारनपुर के एक मदरसे में रहकर देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने में जुटा हुआ था एवं उसका संबंध प्रतिबंधित आतंकी संगठन ‘अलक़ायदा’ से था। इसके अलावा जम्‍मू कश्‍मीर के किश्‍तवाड़ के मदरसे का मौलवी भारत के रक्षा संस्‍थानों से संबंधित जानकारियॉं पाकिस्‍तान को भेजने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया था। ऐसी अनेक घटनाओं से यह स्‍पष्‍ट है कि मदरसों में मज़हबी शिक्षा के नाम पर क्‍या गोरखधंधे किये जा रहे हैं! (स्रोत: दैनिक जागरण)

प्रयागराज के मदरसे में पकड़ाया नकली नोटों का धंधा –
अनियंत्रित मदरसे किस तरह अनैतिक कार्यों के केन्‍द्र बनते जा रहे हैं, यह इस बात से पता चलता है कि प्रयागराज के ‘जामिया हबीबिया’ नामक मदरसे में कई महीनों से अवैध नोट छापने का धंधा चल रहा था। इस मदरसे को विदेशों जिनमें सऊदी अरब, दुबई, तुर्की समेत कई खाड़ी देश शामिल हैं, से भी भारी मात्रा में फंडिंग होने के प्रमाण भी मिले हैं। अब यह विदेशी फंडिंग आखिर किस नीयत से की जा रही थी, ये भी जॉंच का विषय है। जॉंच एजेंसियों को यह भी शक़ है कि आरोपियों के तार बांग्‍लादेश से भी जुड़े हुए हैं। इससे यह पता चलता है कि यह मदरसा भारत में आर्थिक-आतंकवाद फैलाने की फिराक में था। शिक्षण संस्‍थान की आड़ में भारत की आर्थिकी को नुक़सान पहुँचाने का संभवत: यह पहला मामला है, इसका यह अर्थ है कि भारत में बार-बार जिस जिहाद की बात की जाती है, उसका एक आयाम यह भी हो सकता है।

मदरसों का हो रहा तालिबानीकरण-
अभी तक की घटनाओं से लगता है कि मदरसों का तालिबानीकरण किया जा रहा है, वर्ना छोटे-छोटे बच्‍चों में गैर-मुस्लिमों (विशेषत: हिन्‍दुओं) के प्रति इतनी घृणा का भाव कहॉं से आता है? सोशल मीडिया पर अनेक ऐसे वीडियोज़ उपलब्‍ध है, जहॉं मदरसों में पढ़ने वाले छोटे-छोटे मुस्लिम बच्‍चे हिन्‍दुओं के प्रति अपनी घृणाऍं खुले तौर पर ज़ाहिर करते रहते हैं, मगर सरकार अभी इस स्‍तर पर सचेत नहीं हुई कि इनके विरूद्ध कोई कड़ी कार्यवाही करे। कार्यवाही करने की सार्थकता भी तभी होगी, जब इन बच्‍चों में राष्‍ट्रीयता की भावना का रोपण हो। मदरसों में बच्‍चों के शिक्षण में जो प्रेरक-प्रसंग सुनाए जाते हैं, वे किसी भारतीय महापुरुषों के नहीं होते, बल्कि महमूद गजनवी, औरंगजेब, मोहम्‍मद गोरी, चंगेज़ ख़ान, तैमूरलंग, बाबर आदि जैसे विदेशी आततायियों-आक्रमणकारियों के होते हैं, जिन्‍होंने भारत को लूटा, सोमनाथ जैसे पवित्र हिन्‍दू मंदिरों को ध्‍वस्‍त किया एवं हिन्‍दुओं का क़त्‍लेआम किया। ऐसी कहानियॉं वे बड़ी शान से सुनाते हैं और बच्‍चों को बताते हैं कि यह बड़े सवाब (पुण्‍य) का कार्य है। आखिर, यह किस तरह की शिक्षा है?

मदरसों का स्‍वरूप कैसा होना चाहिए-
वैसे भारत प्रत्‍येक नागरिक को अपने धार्मिक अधिकार देता है, मगर जहॉं मज़हब के नाम पर कट्टरता बोई जा रही हो, उसे किसी भी हाल में बर्दाश्‍त नहीं किया जाना चाहिए। मदरसों का स्‍वरूप कैसा होना चाहिए, इस बारे में कुछ सुझाव निम्‍न हैं –
१. मदरसों का पाठ्यक्रम राष्‍ट्रीय विचारधारा से प्रेरित होना चाहिए।
२. मदरसों में उर्दू के अलावा अन्‍य भारतीय भाषाओं में भी पढ़ाई करवाई जानी चाहिए।
३. मदरसों के पाठ्यक्रम सरकार द्वारा मान्‍यता प्राप्‍त होना चाहिए, जिनमें कट्टरवाद की कोई संभावना नहीं हो।
४. मदरसों में मज़हबी तालीम के अलावा विज्ञान, भूगोल, नैतिक एवं तकनीकी शिक्षाऍं भी दी जानी चाहिए।
५. मदरसों के पाठ्यक्रम भारतीय महापुरुषों पर केन्द्रित होने चाहिए, न कि विदेशी आक्रांताओं के।
६. मदरसों को राज्‍यीय बोर्ड अथवा सीबीएससी जैसे बोर्ड से संबद्ध करना चाहिए।
७. गैर-मुस्लिमों (हिन्‍दुओं) को काफिर कहकर संबोधित करना बंद हो।
८. अभारतीय देशों (विशेषकर पाकिस्‍तान एवं बांग्‍लादेश) से प्रकाशित पुस्‍तकें तुरंत प्रतिबंधित की जानी चाहिए।
९. मदरसों के पाठ्यक्रम इस तरह डिजाइन किये जाने चाहिए, जिनमें बच्‍चों में दूसरे धर्म, रिलीजन, पंथों के प्रति किसी दुर्भावना का विकास न हो, बल्कि वे दूसरे धर्मों का भी सम्‍मान करना सीखें।
१०. रोज़गारपरक शिक्षा पर ज़ोर दिया जाये।
११. बच्‍चों को अपने देश एवं राष्‍ट्र के प्रतीकों एवं महापुरुषों (यथा – राष्‍ट्रध्‍वज, राष्‍ट्रगान, राष्‍ट्रगीत) के प्रति आदर का भाव उपजे।
१२. नागरिक अनुशासन के विषय भी पाठ्यक्रम में अवश्‍य सम्मिलित किये जाने चाहिए।

लेखक – दुर्गेश कुमार साध

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