विक्रम संवत 1251 से सतत चली आ रही परम्परा
ठीकरी – नगर में 827 वर्षों से गाड़े खींचने की परंपरा
चली आ रही है। इसी परंपरा का निर्वहन खांडेराव महाराज का जयघोष लगाकर होली दहन के अगले दिन शुक्रवार को मेले के साथ हुआ। धुलेंडी पर गाड़ा खिंचाई का अनोखा ,अद्भुत व चमत्कारिक आयोजन शादी समारोह जैसी संपूर्ण रस्म के साथ हुआ।
एकादशी से बड़वा एडु यादव का मुंडन संस्कार सम्पन्न होता है द्वादशी के दिन हल्दी कि रश्म होती है।त्रयोदशी एवं चौदश के दिन राठौड़ परिवार के यहाँ से तेल लाया जाता है। जिससे खांडेराव महाराज की ज्योत जलाई जाती है इसी दिन से छड़ी जुवारने का काम भी होता है। इसमें खांडेराव महाराज का आव्हान कर दुःखी एवं पीड़ित लोगों का उपचार एवं मार्गदर्शन किया जाता है।
प्रदेश भर से हजारों श्रद्धालु आते है।
प्रदेश भर से हजारों श्रद्धालु गाड़े खिंचाई का अनोखा व चमत्कारिक आयोजन देखने पहुंचें। आयोजन से 15 दिन पूर्व पत्र लिखकर आयोजन में अपनी भूमिका निभाने वाले मेहमानों को बुलाया जाता है। जो अपनी जिम्मेदारी का पूरी तरह निर्वाह करते आ रहे हैं।
बड़वा एडु यादव ने बताया कि गाड़ा खिंचाई की परम्परा 827 वर्ष पुरानी है खांडेराव महाराज नर्मदा स्नान के लिये जेजुरी से ग्यारह लिंगी घोड़े पर सवार होकर आए थे। संध्या सुमिरन कर अपने गंतव्य की ओर जाने से पूर्व रात्रि ठीकरी में यादव परिवार के यहां रात्रि विश्राम किया था। रात्रि विश्राम के दौरान अपनी चमत्कारिक शक्ति दिखाकर अपने वास्तविक रूप के दर्शन कराए थे। तभी ग्राम में ताम्रपत्र पर गाड़ा खींचने की पूरी विधि का विवरण लिखा गया था जो आज तक कायम है। इस धार्मिक आयोजन के दौरान दूर-दराज के क्षेत्रों से सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु आते है।