कार सेवक की भावानुभूति

1990
इन्दौर से हम करीब 25 स्वयंसेवक अयोध्या के लिए रवाना हुए। कुछ लोग झांसी से जुड़ गए। जब हम फैजाबाद पहुंचे तो हमें गिरफ्तार कर लिया गया। हमें दुबग्गा में रखा गया। वहां संभवतः कोई बड़ी जेल नहीं थी और जो थी वो भर चुकी थी, इसलिए हमें नई बनी हुई दुकानों के कॉम्प्लेक्स में रोक दिया गया था। शासन की ओर से हमें दो बार भोजन और दो बार चाय उपलब्ध कराने के लिए 5/- प्रति व्यक्ति की राशि आवंटित की गई थी। जाहिर है यह राशि बहुत कम थी। परन्तु आसपास के गांव के लोग स्वत: स्फूर्त हमारे लिए भोजन बना कर ले आ रहे थे। भोजन की कोई कमी नहीं थी।

गिरफ्तार होने के पश्चात भी हम सभी स्वयंसेवकों का उत्साह चरम पर था। हमें जहां रखा गया था, हमने वहीं शाखा लगाना शुरू कर दिया! एक दिन हम सुबह शाखा में बैठे हुए थे। तभी एक सिपाही आ कर बोला DIG साहब आ रहे हैं। मन में आया कि पता नहीं साहब का क्या रुख रहे। मुलायम सिंह के नेतृत्व में सरकार का रुख कारसेवक विरोधी हो नज़र आ रहा था। खैर, कुछ ही देर में साहब आ पहुंचे। आते ही उन्होंने आस पास के सभी सिपाहियों को बाहर भेज दिया। उसके बाद बोले भाई, जो राम आप के अंदर है वो हमारे अंदर भी है। चाहते तो हम भी वही हैं परन्तु नौकरी की वजह से मजबूर है!

हमारे समूह में, जो अब लगभग 75 लोगों का हो चुका था, महाराष्ट्र के महान गायक एवं संगीतकार सुधीर फड़के भी थे। वृद्ध हो चुके थे परन्तु फिर भी राम सेवा में उपस्थित हुए थे। जब लोगों ने उन्हें कुछ गा कर सुनाने का निवेदन किया तो बोले कि मुझे हारमोनियम लगेगा। कुछ ही देर मे हारमोनियम भी जुटा लिया गया। उन्होंने ने अपनी चिर मधुर आवाज में ‘मनुष्य तू बड़ा महान है…’ गीत सुनाया जो आज भी स्मृति में अंकित है।

हमारे बंदीगृह में ही हमें खबर मिली की कारसेवकों पर गोलियां चलाई

1992

1990 के बजाय 1992 में कहीं ज्यादा तनाव था। तैयारी भी ज्यादा थी। इस बार इंदौर से हम बड़ी संख्या में जा रहें थे। हमारी कॉलोनी लोकमान्य नगर से ही करीब तीस लोग जा रहे थे। ट्रेन से हम लोग फैजाबाद पहुंचे। इस बार वहां कल्याण सिंह जी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी। भारी सुरक्षा व्यवस्था थी। बाबरी ढांचे के चारों ओर बड़ी तादाद में सुरक्षाबल तैनात थे। नजदीक की इमारतों पर सुरक्षाबल दुर्बीनें लगा कर निगरानी रख रहे थे और लखनऊ और दिल्ली सूचनाएं भेज रहे थे। दूसरी ओर पूरे देश से जमा हुए लाखों स्वयंसेवक, शिवसैनिक, विहिप, बजरंग दल के कार्यकर्ताओं और अन्य श्रद्धालुओं का उत्साह भी प्रचण्ड था।

6 दिसंबर को सुबह शरयु स्नान कर हम सभी अनुशासन में अपने नियत स्थान पहुंच गए। वहां मंच पर आडवाणी जी, उमा भारती जी एवं राजमाता विजयाराजे सिंधिया सहित अनेक प्रभावी नेता उपस्थित थे। मंच से लगातार घोषणाएं की जा रही थी कि कोई भी अनुचित कार्य नहीं करना है और अनुशासन बनाए रखना है। इसी दरमियान एक श्रद्धालु विवादास्पद ढांचे के उपर चढ़ गया और उसने वहां भगवा ध्वज फहरा दिया। यह देख कर उपस्थित भीड़ बेकाबू हो गई और कईं लोग ढांचे पर चढ़ गए और उसे पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। मंच से शीर्ष नेतृत्व लगातार संयम बरतने के लिए कह रहा था। अनुशासन बद्ध स्वयंसेवक नियत स्थान पर ही मौजूद रहें।

अगले दिन सुबह जब हम ढांचे के स्थान पर पहुंचे तो ध्वस्त ढांचे का मलबा भी वहां से हट चुका था। हमें शीघ्र ही वहां से निकल जाने के निर्देश दिए गए। ट्रेन उपलब्ध थी और स्थान स्थान पर भोजन आदि की व्यवस्था भी उत्कृष्ट थी।

जैसा श्री अनन्त गणेश लोंढे द्वारा श्रीरंग पेंढारकर को बताया गया। श्री अनन्त लोंढे आज 88 वर्ष के हैं और राम मन्दिर के बनाए जाने से भाव विभोर हैं।

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