धरती को माँ कह कर, मिट्टी माथे से कौन लगाएगा? (श्रीकृष्ण सरल की कविता)
सन 1857 पूरे भारत में स्वतंत्रता संग्राम की अलख जग चुकी थी । एक रोटी और एक कमल के साथ यह संदेश पूरे देश भर में फैलाया जा चुका था कि अब हमें आजाद होना है और अंग्रेजी सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकना है ।
इसके लिए सशस्त्र संघर्ष भी करना पड़े तो हम करेंगे और उसकी तैयारी प्रारंभ हो चुकी थी । दुर्भाग्य से तय तिथि से पहले क्रांति की शुरुआत के कारण 8 अप्रैल 1857 को सैनिक विद्रोह को दमन करने के लिये मंगल पांडे को फासी पे चढ़ा दिया गया था तथा सैनिक विद्रोह और क्रांति की जानकारी अंग्रेजी सरकार को लग चुकी थी ।
जबलपुर की 52 वी पलटन को मेरठ के सिपाहियों के विद्रोह की जानकारी मिल चुकी थी । जबलपुर में भी वहां की जनता ने गोंडवाना साम्राज्य (वर्तमान का जबलपुर मण्डला) राजा शंकर शाह के नेतृत्व में अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति प्रारंभ कर दिया था । जबलपुर क्रांतिकारियों का गतिविधि गया केन्द्र हो गया था ।
राजा शंकर शाह, कुंवर रघुनाथ शाह दोनो पिता पुत्र एक बहुत अच्छे कवि भी थे अपनी ओजस कविता के माध्यम से वे जनमानस में क्रांति का संदेश दिया करते थे अंग्रेजों की 52 वी बटालियन के सैनिकों को रात्रि में अपने महल में अपनी कविता सुनाकर विद्रोह की ज्वाला सुलगा रहे थे ।
सन 1857 में सितंबर माह के अंत में मोहर्रम के दिन अंग्रेजों पर आक्रमण की योजना बनी क्योंकि उस दिन अत्यधिक भीड़ भाड़ चहल-पहल रहेगी । अंग्रेजी सरकार ने खुफिया रूप से अपने एक गुप्तचर को फकीर के रूप में भेज दिया राजा की योजना की जानकारी उन्हें प्राप्त हो चुकी थी ।
अंग्रेज सरकार की 52 वी रेजीमेंट का कमांडर क्लार्क के गुप्तचर उसको समय समय पर सूचना देते थे । विद्रोह का दिन पास आ गाया था । लेकिन उसके पहले ही 14 सितंबर 1857 को आधी रात में क्लार्क के द्वारा राजमहल घेर लिया गया राजा की तैयारी पूरी नहीं हो पाई राजा शंकर शाह, कुंवर रघुनाथ शाह सहित तेरह अन्य लोगों को भी बंदी बना लिया गया ।
मूंद मुख डंडिन को, चुगलों को चबाय खाई।
खूंद डार दुष्टन को, शत्रु-संहारिका।
मार अंगरेजन, रेज कर देय, मात चंडी।
बचौ नहीं बैरी, बाल-बच्चे संहारिका।
शंकर की रक्षा कर, दास प्रतिपाल कर।
दीन की पुकार सुन, जाय मात हालिका।
खाय लै मलेच्छन को, देर नहीं करौ माता।
भच्छन का, तत्छन वेग, शत्रुनको कालिका।
वह कहते हैं ना युद्धों में कभी नहीं हारे, हम डरते हैं छल छंदों से, हर बार पराजय पायी है अपने घर के जयचंदों से राजा के राज्य में भी एक जयचंद था जिसका नाम गिरधारी लाल दास था । वह क्लार्क को राजा के साहित्य की कविताओं का अनुवाद करके अंग्रेजी में बताता था । कविता के आधार पर मुकदमा चलाया गया ।
3 दिन में मुकदमा चलाया गया निर्णय भी हो गया और सजा का भी प्रारंभ कर दिया गया । 17 सितंबर 1857 को दोनों पिता-पुत्र को मौत की सजा सुनाने वक्त उनसे कहा था कि यदि वे माफी मांग ले तो सजा माफ कर दी जाएगी परंतु,
‘’यही तो खूबी है हमारे सच्चे वीरों देशभक्तों की उनके सर कट गए लेकिन सर झुके नहीं उन आजादी के मस्तानों और दीवानों ने क्षमा नहीं मांगी’’
भारत माता के वीर सपूत राजा शंकर शाह रघुनाथ शाह ने भारत माता के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए । तोप से उड़ाते समय वहां उपस्थित एक अंग्रेज अधिकारी लिखता है कि- ‘मैं अभी-अभी क्रांतिकारी राजा और उनके पुत्र को तोप से उड़ाये जाने का दृश्य देखकर वापस लौटा हूं। जब उन्हें तोप के मुंह पर बांधा जा रहा था तो उन्होंने प्रार्थना की कि भगवान उनके बच्चों की रक्षा करें ताकि वे अंग्रेजों को खत्म कर सकें।’अंग्रजों का इस तरह सरेआम राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को तोप से बांधकर मृत्युदंड देने का उद्देश्य लोगों और राजाओं में अंग्रजों का डर पैदा करना था परन्तु अंग्रेजों के इस कदम से क्रांती और ज्यादा भड़क गई ।
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का शंखनाद करने वाले गोंडवाना के अमर शहीद राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता । यह बलिदान की शुरुआत थी जबलपुर ने भी 1857 के समर में कितना बड़ा योगदान किया । हिमालय से ऊंचा साहस उनका जो सर किसी के सामने झुका नहीं मातृभूमि के खातिर किया सब अर्पण ऐसे वीरों को मेरा नमन …
लेखक – श्री चंद्रशेखर जी पटेल