22 नवम्बर दुर्गादास राठौड़ की पुण्यतिथि होती है। इस वर्ष हमने उन पर कुछ रिपोर्ट बनाने का विचार किया और दुर्गादास से संबंधित ग्रंथों को पढ़ते समय कुछ ऐसे चरित्र सामने आये जिनके बारे में देश में बहुत कम लोगो को पता है और यह भी ध्यान आ गया कि वही षड्यंत्र इन चरित्रों के साथ हुआ है जो भोपाल की रानी कमलापती के साथ हुआ था, जब हबीबगंज स्टेशन का नाम उनके नाम पर रखा गया तब हमें पता चला कि मध्यप्रदेश में भी एक पद्मावती थी जिसने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जल-जौहर किया था। वैसे ही जब दुर्गादास राठौड़ का इतिहास पढ़ते हैं तब पता चलता है कि गोरा टांक नाम की एक धाय हुई, उसने पन्ना धाय के समान ही अपने कुलदीपक की लौ इसलिए बुझा दी ताकि राष्ट्र की लौ जलती रहे।
जोधपुर के राजा जसवंतसिंह की मृत्यु के कुछ समय बाद उनकी पत्नी जसकंवर की कोख से अजीतसिंह का जन्म हुआ। औरंगजेब उसे मारना चाहता था, ताकि मारवाड़ का उत्तराधिकारी न होने पर वो सदा के लिए मारवाड़ पर हरा झंडा लहरा सके। उसने कुंवर अजीतसिंह के संरक्षक दुर्गादास राठौड़ को एक पत्र में कहा कि वो कुंवर के जन्म का जश्न दिल्ली दरबार में मनाना चाहते हैं इसलिए वे कुंवर को लेकर दिल्ली आयें, दुर्गादास मना कर नहीं सकते थे, किन्तु धूर्त मुगलों के छलिया व्यवहार का उन्हें ध्यान था।
मारवाड़ी सरदारों का दल दिल्ली पहुंचा तो उनका भव्य स्वागत हुआ। इसी स्वागत-सत्कार के मध्य औरंगजेब अपने घृणित लक्ष्य की प्राप्ति के भी जाल बुनता, उसने दल के सरदारों को जागीरों के लालच दिए कि तुम मेरा साथ दे दो बस, किन्तु देशभक्त सरदार उसके जाल में नहीं फंसे, जब ऐसा ही लालच उसने दुर्गादास राठौड़ को दिया और कहा कि मुझे अजीतसिंह को सौंप दो, मैं तुम्हे जोधपुर का सम्राट घोषित कर दूंगा तो दुर्गादास का संदेह विश्वास में बदल गया।
दुर्गादास ने तुरंत सरदारों, रानियों और दल के अन्य लोगों को एक कक्ष में बुलाया और बताया कि कुंवर के प्राण संकट में हैं तुरंत निकलना पड़ेगा, किन्तु औरंगजेब हमारे निवास के बाहर सैनिकों को तैनात कर चुका है, हम सब तो निकल सकते हैं लेकिन कुंवर को निकालना लगभग असम्भव है, यदि अजीतसिंह को लेकर युद्ध करते हुए निकलते हैं तो भी कुंवर के प्राण संकट में रहेंगे, यदि एक तलवार भी लगी और जैसे ही कुंवर का लाल रक्त भूमि पर गिरेगा तो मारवाड़ का भविष्य हरा हो जायेगा।
ऐसे सभी प्रकार के चिन्तन उस कक्ष में चल रहे थे, कुंवर को दिल्ली से दूर तो छोड़ो उस कक्ष के बाहर युद्ध किये बगैर निकालना असम्भव ही था, सबके चेहरों पर स्पष्ट दिख रहा था कि मारवाड़ का भविष्य गहरे संकट में है और सबके चेहरों को देखकर गोरा टांक, जो महल की धाय थी, परिस्थिति की गम्भीरता समझ गयी।
वह अपनी गोद में स्वयं के पुत्र और अजीतसिंह को लिए हुए बैठी थी, कहने लगी कि ‘मैं सामान्य बुद्धि की महिला हूँ किन्तु एक छोटी सी विनती है, मेरा पुत्र कुंवर सा की उम्र का ही है, उसे कुंवर सा के स्थान पर रख दिया जाए और मैं मेहतरानी के वेश में कुंवर सा को अपने टोकरे में लेकर यहाँ से दूर ले जाऊं तो सैनिकों को मुझ पर कोई संदेह भी नहीं होगा और हम सुरक्षित निकल जायेंगे।‘
कक्ष में उपस्थित एक-एक व्यक्ति भावविभोर हो गया, दुर्गादास बोले ‘अद्भुत गोरा! तुम तो साक्षात् जगदम्बा बन संकट का निवारण करने आयी हो। तुमने इतिहास को दोहरा दिया, तुम मेवाड़ की पन्नाधाय के समान मारवाड़ की माँ बनकर आयी हो, तुम्हारा यह बलिदान मारवाड़ में सदा अमर रहेगा।‘
उसके बाद योजना पर क्रियान्वयन हुआ, वह सिंहनी देश के भविष्य के लिए अपने भविष्य को तलवार की नीचे छोड़कर, कुंवर को टोकरी में रखकर जंगल में ले गई और वहां संपेरे के वेश में बैठे दुर्गादास राठौर के विश्वस्त सरदार को सौंप दिया।
उधर औरंगजेब ने अपने सैनिकों से सरदारों के निवास पर हमला करने को कहा और अजित सिंह को अपने पास उठाकर लाने के आदेश दिए, निवास पर हमला हुआ, सरदारों ने भी केसरिया बाना पहन लिया, हर हर महादेव के स्वर से महल गूंज गया, मुगलों को गाजर-मूली की तरह काटते हुए मारवाड़ी योद्धा रानियों को लेकर निकल गये।
लेकिन गोरा के बेटे को पकड़ लिया गया और उसे ही अजीतसिंह घोषित कर दिया गया। उसका धर्मांतरण करके मुस्लिम बना दिया गया और उसका नाम मुहम्मदी राज रख दिया गया फिर 1688 ईस्वी में वह प्लेग की बीमारी से मर गया और चूँकि उसे मुस्लिम बना लिया गया था तो उसे दफनाया गया।
अब आप सोचिये आपने पहले कभी गोरा धाय के बारे में सुना था क्या? सुना था तो कितनी बार सुना था? दुर्गादास राठौर के बारे में कितना सुना था? वास्तविकता में दुर्गादास नहीं होते तो मारवाड़ पर सदाकाल के लिए मुस्लिमों का शासन हो जाता, यदि गोरा नहीं होती तो मारवाड़ में सबकी सुन्नत होती, लेकिन गोरा टांक, पंचोली केसरीसिंह, रानी कमलापती और दुर्गादास राठौड़ जैसे अगणित योद्धाओं के बारे में हमने इसलिए नहीं सुना, इसलिए नहीं पढ़ा, क्योंकि एक षड्यंत्र रचा गया और इनके बारे में उपलब्ध साहित्य को या तो समाप्त किया गया अथवा विकृत किया गया।
क्योंकि जैसे पन्ना धाय से गोरा धाय ने प्रेरणा ली, वैसे ही भावी पीढ़ियां अपने इतिहास पुरुषों से प्रेरणा लेती हैं, अन्यथा दुनिया के इतिहास में जितने महापुरुष हुए होंगे, उतने तो पिछले 200 वर्षं में भारत में हुए हैं।
किन्तु अब सत्य उद्घाटित हो रहा है और हमारे महापुरुषों के जीवन पर प्रकाश जाने लगा है।
~अमन व्यास Aman Vyas