
पर्यावरण को किस तरह ठीक रखा जाए इस पर चिंतन और मनन होता ही है, किन्तु यह भौतिक पर्यावरण है जो हमारे आसपास रहता है। लेकिन एक मानसिक पर्यावरण भी है। जो हमारे अंदर होता है जिसका संबंध मन से होता है। विचारों से होता है। इस पर हम कभी ध्यान नहीं देते। हम इसी मानसिक पर्यावरण को समझने का प्रयास करेंगे, और इसे किस प्रकार ठीक रखा जा सकता है। उस पर चिन्तन और मनन करेंगे।*
आधुनिक युग की किसी भी शिक्षा में जानने का अर्थ उसे समझना नहीं है। जानने और समझने में बहुत अंतर है। एक व्यक्ति जिसने 8 बार शोधकार्य कर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी। वह एक संन्यासी से मिला। अपनी उपलब्धि पर उसे गर्व था। इसी कारण वह अपनी आत्मप्रशंसा उस संन्यासी के सामने कर रहा था। उसके गर्व को देखकर संन्यासी ने कहा, ‘तुम अपने जीवन में इतने मूर्ख क्यों रहे…?’ संन्यासी की इस बात से वह व्यक्ति थोड़ा विचलित हुआ और उस व्यक्ति ने कहा, ‘आपको गलतफहमी हुई है, मैंने 8 बार पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है।’
‘मैंने तुम्हें ठीक समझा है। चिड़ियों, चांद और तारों का आनंद उठाने के बजाय जीवन के सर्वोत्तम भाग में केवल पढ़ते रहना मूर्खता ही तो है।’ व्यक्ति के पास सारी विधाएं हो सकती हैं, पर स्पष्टता न हो और उसे बहुत कुछ मालूम हो, तो क्या लाभ?
समझ और जानने के बीच स्पष्टता की कमी उलझन को उत्पन्न करती है। व्यक्ति को समझना चाहिए कि व्यक्ति के कई केंद्र होते हैं।
- बौद्धिक केंद्र, 2.भावनात्मक केंद्र और
3.शारीरिक केंद्र।
प्रत्येक केंद्र में यांत्रिक और चुंबकीय भाग होता है। यांत्रिक भाग यंत्र की तरह काम करता है। जबकि चुंबकीय भाग अधिक सचेतना के साथ काम करता है। व्यक्ति को स्वयं को परिवर्तित करना होता है। यांत्रिक गतिविधियों को बदलना पड़ता है। पसंद और नापसंद को बदलना पडता हैं। यांत्रिक भावना जैसे ईर्ष्या और घृणा को भी रूपांतरित करना पड़ता है, इसके बाद चेतना को जाग्रत करो और जीवन को रूपांतरित होते देखो। जड़ वस्तु में भी प्राण होते हैं। प्रेम-भरी चेतना के साथ किसी भी वस्तु के साथ व्यवहार करो। यह रहस्यपूर्ण तरह से तुम्हारा मार्गदर्शन करेगी। इस संदेश को पाकर तुम्हारी सहज बुद्धि और पवित्रता बढ़नी चाहिए।
जब तुम स्नान करते हो, तो प्रेम से पानी से बात करो। जब तुम सोते हो तो प्रेम-भरी चेतना के साथ तकिए से रजाई से गादी से बात करो और एक दिव्य संबंध स्थापित हो जाता है। यह मैंने स्वयं अपनी आंखों से देखा है। मेरी नानी रात को सोते समय तकिए को बोलकर सोती थी कि सुबह मुझे इतनी बजे उठना है। उस जमाने में गांव में हर किसी के घर अलार्म घड़ी नहीं होती थी। और ठीक उसी समय उनकी नींद खुल जाती थी और वह अपने दैनंदिन कार्य कर लेती थी। बचपन में मुझे बड़ा आश्चर्य होता था। कुतूहल होता था लेकिन अब जाकर के समझ में आ रहा है कि जिन्हें हम अनपढ़ मूर्ख गंवार कहते हैं। वस्तुतः वही जीवन के असली सौंदर्य को आनंद को अनुभूत कर पाते हैं ।
नकारात्मक भावनाएं जीवन को विषमय बना देती हैं। विषैले भोजन की तरह नकारात्मक भावनाओं को मत अपनाओ। अब तो विज्ञान ने भी सिद्ध कर दिया है कि नकारात्मक भावनाओं के कारण आपके शरीर में विषैले हारमोंस स्त्रावित होते हैं। जो आपके शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। वर्तमान समय में डायबिटीज, ब्लड प्रेशर इन सब के पीछे सबसे प्रमुख कारण नकारात्मक विचारों से उत्पन्न वे विषैले हारमोंस ही हैं। जो आपको बीमारियों के रूप में आकर पीड़ित करते हैं। आजकल तो एक आम आदमी भी यह कहते हुए सुना जाता है कि टेंशन बढ़ने से उसकी शुगर बढ़ गई है। अत्यधिक क्रोध से उसका ब्लड प्रेशर बढ़ गया है। यह सब इन्हीं हारमोंस की वजह से होता है। नकारात्मक भावों के प्रति सावधान और सचेत रहो। उन्हें आने दो, क्योंकि उनका आना स्वाभाविक है। परिस्थितिजन्य है। पर उनके साथ जुड़ो या एकरूप मत हो। अपने प्रिय व्यक्ति को आलिंगन करने से हमारे शरीर में ऑक्सीटॉनिन नामक हार्मोन सक्रिय होता है। जो हमें पूर्णानंद परिपूर्णता सुरक्षा साहस आदि प्रदान करता है। अपने बचपन को याद कीजिए जब घबराकर हम अपनी माँ के आंचल में छुप जाते थे तो उस समय किसी भी प्रकार का डर नहीं रहता था। अपने किसी जिगरी दोस्त से गले मिलने पर जो अनुभूति होती है वह आपको अलग से बताने की आवश्यकता नहीं है।
इस पूरी प्रक्रिया में कार्टिसोल नामक हार्मोन स्रावित होता है। जो हमारे तनाव, एंग्जाइटी, स्ट्रेस आदि को नष्ट करता है। हमें आनंदित करता है प्रसन्न रखता है।
किसी अच्छे स्पर्श से मस्तिष्क का सेरेब्रल ब्रेन सिस्टम (यह वह हिस्सा है जो हमारे अंदर प्यार और विश्वास की अनुभूति करवाता है) सक्रिय होता है।
कनाडा की एक यूनिवर्सिटी में हुए शोध के अनुसार नियमित गले लगने हाथ मिलाने से संबंधों में प्रगाढ़ता आती है। जादू की झप्पी से पूरे दिन आपके अंदर उत्साह का भाव बना रहता है। आत्मीय और पारिवारिक संबंधों के लिए रोज जादू की झप्पी अनिवार्य होती है।
‘द हग थेरेपी’ पुस्तक की लेखिका प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक ‘डॉक्टर कैथलीन किटिंग’ ने अपने अनुभव के आधार पर लिखा है कि हग अर्थात आलिंगन [गले लगाना] दवाइयों के सेवन के मुकाबले में अधिक फायदेमंद साबित होता हैं।
वृद्ध लोगों को प्यार से पकड़ने उन्हें गले लगाने से उनमें जीवन जीने की इच्छा शक्ति बढ़ती है। इसे ही जिजीविषा कहते हैं। गले लगाने से अकेलापन डर और भूलने की बीमारी, अनिद्रा से मुक्ति मिलती है। इसलिए नई इच्छाशक्ति की रचना करने का चुनाव करो। नकारात्मक भावों से चलित मत हो। वे तुम्हारी शक्ति को नष्ट करते हैं। वे तुम्हें सुलाए रखते हैं। वे हानिकारक और बोझिल हैं। वे तुम्हारे जीवन को जटिल बनाते हैं। इसलिए सदैव आनंद में रहो। प्रसन्नता से जीओ। इस प्रकार अपने मानसिक पर्यावरण को भी स्वस्थ तंदुरुस्त रखने का प्रयत्न करो।
श्रीपाद अवधुत की कलम से