प्रकृति पूजन हमें वेदों से प्राप्त हुआ जिसके प्रति नगरीय समाज की अपेक्षा जनजातीय समाज अधिक आग्रही रहा। यदि गंभीरता से देखे तो जनजातीय समाज भारत के पूर्ण समाज का अविभाज्य अंग रहा है। कुछ तथाकथित राजनैतिक लोग हमारे समाज कों बाट कर अपना उल्लू तो सीधा करते है किंतु वह हमारे देश कों बाटने ओर कमजोर करने की चेष्ठा भी कर रहें है। आज मूल रूप से हमें एकीकृत समाज की आवश्यकता है। भारतीय समाज मे अनेक ऐसे महापुरुष हुए है जिन्होंने अपना जीवन ही समाज की एकता ओर समुदाय कों सुदृढ करने मे अर्पित किया था जिसमे एक नाम है जनजाति नायक भगवान बिरसा मुंडा का। भगवान बिरसा मुंडा का नाम लेते ही अचानक से शिराओ मे रक्त संचारित होने लगता है।
बचपन मे उनकी पढ़ाई सलगा से हुई किंतु उन्हें जल्द ही एक जर्मन मिशन स्कुल भेज दिया गया। यही पर उनका मतांतरण करवा कर उन्हें बिरासत मुंडा से बिरसा डेविड बना दिया गया। उन्हें शीघ्र ही ईसाई मतांतरण के रहस्यों का आभास हो गया ओर उन्होंने बिच मे ही अपनी पढ़ाई छोड़कर घर वापसी की। यहाँ से अपने स्वयं के मत मे आस्थावन हो कर उसका प्रचार प्रसार किया। उन्होंने शीघ्र ही अपना स्वयं का मुंडा राज घोषित किया ओर लोग उन्हें प्रेम से धरती आबा कहने लगे। मात्र 25 वर्ष की आयु मे भगवान बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के दाँत खट्टे कार दिए थे जबकि आजकल के युवा इस आयु मे अपने काम भी ठीक से नहीं कर पाते है। अंग्रेजो ओर साहूकारों से जमीन छुड़ाने के लिए आपने एक आंदोलन प्रारम्भ किया जिसे उलगुलान नाम से पुकारा जाने लगा। इस आंदोलन से अब अपनी भूमि पर अपना ही अधिकार हो रहा था ओर अंग्रेजो कों कर नहीं देने के लिए भी लोग तैयार हो रहें थे। इन सभी के बाद अंग्रेजो ने भगवान बिरसा के ऊपर 500/-₹ का नगद पुरस्कार घोषित किया ओर उन्हें पकड़ कर 2 वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया। उस समय यह राशि 500/-₹ आज की तरह सामान्य नहीं थी अपितु बहुत अधिक थी।
जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ आंदोलन करने के लिए अपने लोगों के साथ गोपनीय बैठकें प्रारम्भ कर दी। इसी कारण वर्ष 1899 मे उनका राज्य छोटानागपुर मे 550 वर्ग किलोमीटर तक व्याप्त हो गया ओर उनका संघर्ष अंग्रेजो से डोम्बारी पहाड़ी मे हुआ। इस संघर्ष मे 400 जनजाति योद्धाओं कों वीरगति प्राप्त हुई जबकि अंग्रेजो मे मात्र 11 की मृत्यु की ही पुष्ठी की थी। 03 मार्च 1900 मे भगवान बिरसा मुंडा कों गिरफ्तार कर लिया गया ओर उन्हें जेल मे कठोर कारावास भुगतना पड़ा। उन्हें दिन मे केवल 1 घंटे ही अपनी अँधेरी कोठरी से बाहर आने दिया जाता ओर किसी से मिलने नहीं दिया जाता था। शनै शनै उनकी तबियत बिगड़ती रही ओर 09 जून 1900 कों सुबह 09 बजे उन्होंने अपनी अंतिम श्वास ली। कई क्रांतिकारियों द्वारा अंग्रेजो पर जहर दे कर मरने का आरोप भी लगाया गया किंतु अंग्रेजो ने मृत्यु का कारण हैजे कों ही माना जिसका कोई प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ था।
वास्तव मे भगवान बिरसा मुंडा का योगदान केवल भारतीय स्वतन्त्रता के लिए ही नहीं अपितु जनजातीय समुदाय के उत्थान के लिए भी सतत संघर्ष किया। उनके अप्रतिम संघर्ष ओर त्याग के चलते देशभर मे उन्हें उलगुलान ओर भगवान मानने लगे ओर विधिवत उनका पूजन अर्चन भी प्रारम्भ हो गया। विगत कुछ वर्षों से शासन द्वारा उनके जन्मदिवस कों भगवान बिरसा मुंडा जयंती के रूप मे मनाया जाने लगा है जो भारत के जनजातीय समाज को ही नहीं अपितु पुरे राष्ट्र कों अपने भगवान से परिचित करवाने का काम कर रही है। हम आशा करते है की भारत का सम्पूर्ण समाज अपने वास्तविक नायको कों पहचाने ओर उनके शरणागत हो जाए तभी हर भारतीय जनजाति ओर हर जनजाति भारतीय हो जायेगा।
– डॉ. उत्तम मोहन सिंह मीणा