आज बबलू के महाविद्यालय में वीर क्रांतिकारी भीमा नायक के बलिदान पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता ने अपने संबोधन में 1857 के स्वाधीनता संग्राम में भीमा नायक जी की भूमिका पर प्रभावी भाषण दिया। बबलू के कानों में पड़ने वाला एक एक शब्द उसके मानस में विचारों के झंझावात खड़े कर रहा था। वह रोमांच से भर कर अपने आदर्श भीमा नायक के विषय मे सोचता रहा। भाषण में एक जगह क्रांतिकारियों के ज्योतिपुंज तात्या टोपे से भीमा नायक की भेंट का उल्लेख भी आया जिस पर बबलू के मन मे प्रश्न उठा खड़े हुए।
कार्यक्रम के बाद वह सोचता-विचरता अपने प्राध्यापक के पास पहुचा ओर उनसे पूछा, “सर! तात्या टोपे ओर भीमा नायक के बीच नदी के रास्ते जाते हुए नाव में क्या कुछ बाते हुई? मेरा मन यह जानने को व्याकुल है कि दो क्रांतिकारियों के मध्य क्या संवाद हुआ होगा?”
प्राध्यापक ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “वैसे तो कोई नही जानता कि उनके बीच क्या बातचित हुई। लेकिन जिसके देश पर विदेशियों का कब्जा है उस पराधीनता के दंश से छटपटाते दो क्रांतिकारियों के बीच जो बातें हो सकती है वही हुई होगी।” प्रध्यापक देरी का बहाना बनाते हुए वहां से चले गए, देशभक्त बबलू की कभी न समाप्त होने वाली जिज्ञासा से वह भलीभांति परिचित जो थे। घर पहुँचने पर भी बबलू के मन मे वही प्रश्न कौंधता रहा। सोचते-विचरते कब उसकी आंख लग गई उसे पता नहीं चला। नींद में भी बबलू की जिज्ञासा ने उसका पीछा नही छोड़ा और वह उस दृश्य को अपने स्वप्न की कल्पना शक्ति से सजीव कर उठा।
स्वप्न में बबलू को घना अधेरा दिखाई देता हैं, चारों तरफ सिर्फ जंगल ही जंगल होता हैं और एक तम्बू में भीमा नायक अपने साथियों के साथ बठै कर अग्रेजों से लड़ने की योजना पर कार्य कर रहे थे,
तभी एक क्रांतिकारी वहां आता है, “सरकार कुछ आवश्यक सचूना हैं, अभी अभी सन्देश प्राप्त हुआ हैं की महान क्रन्तिकारी तात्या टोपे और उनकी सेना को मदद की जरुरत हैं, अंग्रेजों ने उन्हें चारों और से घेर लिया हैं, वो लोग कि सी भी समय पकड़े जा सकते है और उनके सेना के पास पर्याप्त रसद और हथियार भी नहीं हैं।’’
सिपाही की बात सनु कर भीमा नायक के चेहरे पर तनाव और ख़शुी का मिश्रित भाव देखने को मिलता हैं और वह कहते हैं, “महान क्रांति कारी तात्या टोपे की मदद का सौभाग्य तो बिरले ही मिलता हैं, उन्होंने हमे सहायता के योग्य समझा यह हमारे लिए गौरव की बात हैं, उनकी मदद की तयैारियां की जाये कोई कमी नहीं रहनी चाहिए।’’
सभी लोग रसद, हथियार और सेना की आवश्यक सामग्री की व्यवस्था में लग जाते हैं और नायक की सेना तात्या
टोपे की सहायता के लिए निकल पड़ती हैं।
तात्या टोपे अपनी सेना के साथ भीमा नायक और उनके साथियों से मिलते हैं वह समय ऐतिहासिक था, दोनों गले मिलते हैं और भीमा नायक अपने क्षेत्र में तात्या टोपे का स्वागत करते हैं।
तात्या बोले “धन्यवाद भीमा, तुमने सही समय पर आकर हमारी सहायता की हैं, हम तुम्हारे आभारी रहेंगे।’’
भीमा ने विनम्रता से उत्तर दिया “नहीं नहीं सरकार, हम तो छोटे आदमी हैं, आपके अभियान में हम लोगों को भी सेवा का अवसर मिला यह बहुत बड़ी बात है। आपकी वीरता के किस्से तो देश के कोने-कोने में प्रसिद्द हैं।’’
तात्या ने पुनः कहा “ऐसी बात नहीं हैं भीमा, 1857 की क्रांति सभी के सहयोग से सभंव हो पाई हैं, भले ही हमे तत्काल सफलता ना मिले परन्तु इस क्रांति की लपटे वर्षों तक लोगों को प्रेरित करती रहेगी।”
इस पर भीमा ने कहा “जी सरकार, सही कहा आपने, क्रांति से अंग्रेज बहुत डर गए हैं, देश में उनके प्रति घृणा उत्पन्न हो गई हैं, अब वो अजेय नहीं रहे, कही स्थानों पर अंग्रेजों की हार ने हमारा मनोबल बढ़ाया हैं। जब हमें खबर मिलती की झांसी की रानी, नाना साहब, कंवर सिहं ओर आप ने अग्रेजों की नाक में दम कर दिया हैं, उस समय हमारा मनोबल दगुना
हो जाता हैं।”
तात्या की आवाज में भारीपन था, वो बोले “झांसी की रानी ने क्रांति में जोश भर दिया हैं, उनकी कमी मुझे सदैव खलेगी। मनु की वीरता के किस्से युगों-युगों तक याद किये जायगें, उसके वीरगति को प्राप्त होने के बाद उत्तर भारत का मोर्चा स्वयं मेने अपने हाथों में ले लिया हैं।
क्रांति की आग को अंग्रेज अपने आधनिुनिक हथियारों के दम पर कुचलते जा रहे हैं, कई स्थानों पर क्रांति को कुचलने में सफल हुए हैं, इसलिए हमने अग्रेजों से लड़ने के लिए छापामार युद्ध का सहारा लिया हैं ताकि कम संसाधनों में भी
लम्बे समय तक टीके रहे।’’
भारी आंखों से भीमा बोले “जी सरकार, हम भी गोरों के सामने कम ही आकर लड़ते हैं क्योकि हमारे पास भी सीमित संसाधन ही हैं। हम अग्रेजों के खजानों को लटू कर अपने लोगों में बाँट देते हैं और बाकि अपनी सेना की जरूरतों को पूरा करने में लगा देते हैं।’’
तात्या बोले “इसीलिए तो तुम्हे निमाड़ का सबसे बड़ा क्रांतिवीर कहते हैं भीमा, इतने पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र में रहकर अंग्रेजो से टक्कर लेना आसान नहीं हैं, तुम और तुम्हारे साथियों ख्वाजा नायक, दौलतसिंह, कालुबाबा और मालसिन के अथक प्रयास से ही सभंव हो पाया हैं। तुम सभी वीर योद्धाओं को मेरा नमन हैं।”
भीम आशाभरे स्वर में बोले “सभी के एकजटु प्रयास से ही हम अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्त हो पाएंगे, हमें मिलकर आगे बढ़ने की आवश्यकता हैं।’’
तात्या ने प्रतिउत्तर दिया “हां भीमा, सही कहा तुमने।”
इसी प्रकार भीमा नायक और तात्या टोपे नर्मदा पार करते समय देश, क्रांति और क्रांतिकारियों की चर्चा करते
हैं और नदी का तट आ जाता हैं।
तात्या भारी मन से बोले “चलो भीमा अभी आगे जाने का समय आ गया हैं, हम विदा लेते हैं।’’
तात्या टोपे ने अपनी तलवार निकली और अपने अंगूठे को काट कर भीमा का विजय तिलक किया और नर्मदा
का तट भारत माता के जय-जयकार से गूंज उठता हैं।
स्वप्न में खोया बबलू नींद में ही जोर-जोर से माँ भारती का जयनाद करने लगा। बबलू की माँ ने उसे जागते हुआ पूछा,
“ओ भारत माता के सपूत! उठ जा, आज क्या देखा सपने में?”
बबलू ने अपनी माँ को देखा और मुस्कुराते हुए बोला “कुछ नही माँ, बस तुझे ही देख लिया सपने में”
माँ बोली “चल अब बिस्तर छोड़ ओर जा परचूनी की दुकान से कुछ सामान ला दे।”
बबलू प्रसन्नभाव से दुकान पर चल दिया, वो आज बहुत खुश था क्योंकि उसके सपने में आज दो-दो क्रांतिवीरों ने उसे दर्शन दिए। इस स्वप्न ने बबलू के युवा मन पर देशभक्ति का संस्कार और भी दृढ़ कर दिया।
लेखिका :- प्रेरणा पाटिल
सधेंवा, बड़वानी