भारतीय इतिहास में सुशासन के अनेकों उदाहरण मिल सकते है। उन उदाहरणों में यही दिखता है कि अंतोगत्वा राजसिंहासन पर बैठा व्यक्ति ही सर्वोच्च पदासीन होकर अपने स्वः विवेक से शासन चलाता है तथा उसके आगे उसका वंश जब तक सिंहासन पर विराजमान है, तब तक ही उसका शासन तथा नीतियां जीवित रहती है। व्यक्ति समाप्त, शासन भी समाप्त। लेकिन इतिहास में ऐसा भी एक उदाहरण है, जिसे जन मानस ने जानता राजा कहकर पुकारा तथा उसके शासन की तुलना मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम से की तथा उस व्यक्ति जाने के बाद भी अगले 150 वर्षों तक सिर्फ उस व्यक्ति को विचार मानकर शासन चलता रहा और उसकी ओर से युद्ध लड़े जाते रहे । उनके किसी सामंत ने स्वयं को छत्रपति घोषित नहीं किया। ऐसे महानतम व्यक्तित्व का नाम है क्षत्रिय कुलवंतस श्री श्री छत्रपति शिवाजी महाराज है। जिनकी दुडुंभी बजने का मतलब ही यही था प्रजा जन का धर्म, अर्थ, जर जमीन ,स्वाभिमान , सम्मान सुरक्षित है।
शिवाजी महाराज अपने राज्याभिषेक के पश्चात अपनी दक्षिण विजय यात्रा पर जब निकले तो वे पूरे डेढ़ वर्ष राज्य विस्तार हेतु बाहर रहे, लेकिन उनकी अनुपस्थिति में पूरा राज्य उनके पेशवा मोरोपंत ने निर्बाध चलाया, जबकि उसी समय औरंगजेब अपने किले से भी बाहर निकलने में संकुचित रहता था ।
उनके राज्याभिषेक के साथ उन्होंने सामंती व्यवस्था को समाप्त कर, चौथाई कर की व्यवस्था लागू की, जिससे किसान और ज्यादा समृद्ध हुआ तथा राज्य को आत्मनिर्भर बनाने हेतु अपने 310 किलो में उपयोग आने वाली सामग्री के निर्माण हेतु 18 कारखाने स्थापित किए जिसमे बड़ी युद्धपोत जहाजों से लेकर हथियार दैनंदनी में उपयोग आने वाली सामग्री निर्माण का कार्य होता था राज्य की आर्थिक स्थति व्यापार होना आवश्यक है, इसलिए उन्होने नागप्पा शेट्टी जैसे व्यापारियों को अपने राज्य में व्यापार हेतु सुविधाएं उपलब्ध कराई। कर नीति ऐसी लागू की कभी भी आयात निर्यात से ज्यादा न हो, इसलिए दूसरे राज्य से आने वाली वस्तुओं पर इतना कर लगाया कि कभी वह स्वदेशी वस्तुओं से सस्ती न हो। उन्होंने कभी यह नहीं कहा यह मेरा राज्य है, उन्होंने सदैव कहा यह श्री का राज्य है इसलिए संभवतः उनके 50 वर्ष की आयु में 1689 में उनके देवलोकगमन के बाद भी स्वराज की लौ उनके पुत्र छत्रपति संभाजी , पुत्रवधु ताराबाई तथा कालांतर में बाजीराव पेशवा के रूप या फिर कहे कि मालवा माटी में मध्यभारत का नेपोलियन कहलाने वाले यशवंत राव होलकर ने संभाले जलाए रखी । छत्रपति शाहू जी महाराज के नेतृत्व में हिंदू पद पादशाही का ध्वज अटक से लेकर कटक तक लहराता दिखा।
ऐसे महानतम कार्य को करने वाले छत्रपति शिवाजी मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के समक्ष जब उपस्थित हुए तब उनके वैराग्य जागा और कहने लगे थे कि इस संसार में शिव सिवा कुछ है क्या ? तब उनके गुरुदेव श्री समर्थ राम दास ने कहा था जो स्वराज को प्राप्त करने के बाद भी वैरागी हो जाए तो वही श्रीमान योगी है।
पांच गांव की मनसबदारी से शुरू होकर इतना बड़ा हिंदवी स्वराज के स्वप्न को साकार करने वाले तथा उसके वांग्मय को स्थापित करने वाले योगी को इतिहास अपने स्वर्ण पृष्ठों पर स्थान देता है आज उस व्यक्तित्व को शब्दों में बांधना कठिन है लेकिन जो आज तक जनमानस के हृदय पर स्थापित है उनको 350 वे राज्याभिषेक दिवस पर नमन ।
– सचिन बघेल