वर्तमान मध्यप्रदेश के पश्चिमी हिस्से में निमाड़ इलाका है। पहले यहां दो प्रमुख रियासतें थीं – झाबुआ और बड़वानी। बड़वानी रियासत में पंचपावली जंगल में 62 झोपडि़यों की पंचमोहली बस्ती में स्वतंत्रता के मतवाले वनवासी भीमा नायक का घर था।
बड़वानी रियासत के मुंडन इलाका में ढाबा बावली भीमा नायक का क्षेत्र था। भीमा नायक के जीवन को लेकर अब भी कई तथ्य अबूझ ही हैं। उनकी जन्मतिथि भी अबूझ है। हालांकि अब तक हुए शोध के अनुसार भीमा का कार्य क्षेत्र बड़वानी रियासत से वर्तमान महाराष्ट्र के खानदेश तक रहा है।
1857 संग्राम के समय हुए अंबापावनी युद्ध में भीमा की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने ब्रिटिशर्स का डँटकर प्रतिकार किया और वनवासियों को 1857 स्वतंत्रता संग्राम के लिये एकजूट किया।
एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि तत्कालीन समय जब तात्या टोपे निमाड़ आये थे तो उनकी भेंट भीमा नायक से हुई थी। भीमा ने उन्हें नर्मदा पार करने में सहयोग किया था।
निमाड़ के पॉलिटिकल एजेंट आर.एच. कीटिंग के अनुसार – 04 फरवरी, 1857 को लगभग 200 भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों से सामना हुआ। 10 क्रांतिकारियों ने बलिदान दिया और भीमा की मां सहित चार बंदी बना लिये गये। 09 व 10 फरवरी को भीमा को खोजा गया, किंतु कोई जानकारी नहीं प्राप्त हुई।
भीमा व उनके चाचा ने 17 जुलाई, 1857 को नागपुर के पास कटोल पर आक्रमण किया। 3311 रुपये एक आना पैसा खजाना प्राप्त किये। इसके बाद गोई नदी के समीप भीमा व ब्रिटिशर्स के बीच दो बार युद्ध हुआ, जिसमें 25 क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया।
05 सितम्बर को सिनपुर के पास अंग्रेजों व 500 क्रांतिकारियों सहित भीमा के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में दो क्रांतिकारी बलिदान, दो लापाता और छह घायल हो गये।
नवम्बर, 1857 में सेंधवा मार्ग से खानदेश कलेक्टर के नेतृत्व में लाखों का सामान अंग्रेजों द्वारा इन्दौर से मुम्बई जा रहा था, जिसे भीमा नायक ने जब्त कर लिया। माल की सुरक्षा में 300 गार्ड तैनात थे, जो अपनी जान बचाकर भाग गये। 167 गार्ड पकड़ लिये गये और इनमें से 162 को 14 वर्ष की कैद की सजा दी गयी। कैद की सजा पाने वाले गार्ड्स पर आरोप लगा कि वे माल छोड़कर भागे क्यों?
भीमा की तलाश
02 अप्रैल, 1858 को मेजर इवान्स 50 सिपाहियों और पूना फोर्स के 12 सवारों के साथ निवाली पहुँचा। वहाँ लेमिंग्टन पहले से ही पड़ाव डाले हुए था। 03 अप्रैल को सूचना आयी कि काजा नायक और उसके साथी गोई नदी के तट पर परसूल से तीन मील दूर ठहरे हुए हैं। इवान्स परसूल पहुँचा तो पता चला काजा नायक अंबापावनी में है, जो भीमा और मोवासिया नायक के ठहरने का स्थान है। इसके बाद अंबापावनी के क्रम में इवान्स 10 अप्रैल, 1858 को सुबह ढाबा बावली रवाना हो गया। इवान्स के साथ दो तोपखाना, घुड़सवार सेना, 19वीं देसी पलटन, भील कोर के सिपाही और अन्य तीन हजार लोग भी शामिल थे।
क्रांतिकारियों की पत्नियों व बच्चों को अंग्रेजों ने बनाया बंदी
भीमा और काजा तीन हजार क्रांतिकारियों के साथ पहाड़ पर विचरण कर रहे थे। इवान्स के अतिरिक्त अंग्रेजों की दो अन्य सैनिक टुकड़ियाँ पहले ही अम्बापावनी पहुँच चुकी थीं। यहाँ अंग्रेज सैनिकों व भीमा के बीच युद्ध हुआ, तोपों के समक्ष क्रांतिकारी शाम होते-होते बिखर गये।
अंबापावनी युद्ध में 150 सेनानी बलिदान हुए व 52 बंदी बना लिये गये। 57 क्रांतिकारियों को गोली से उड़ा दिया गया। अंग्रेजों की क्रूरता का अंदाजा इस घटना से लगाई जा सकती है कि सेनानियों की पत्नियों व बच्चों समेत 200 को हिरासत में ले लिया गया।
छोटे-छोटे बच्चों व स्त्रियों के बंदी बना लिये जाने से परेशान भीमा नायक 1858 के प्रारम्भ में कर्नल स्टाकले के सामने समर्पण किये, हालांकि शीघ्र ही उनके चंगुल से निकलने में सफल भी हुए।
पुन: मई, 1858 में मेजर कीटिंग के समक्ष हाजिर हुए और उन्हें कुछ दिनों तक मण्डलेश्वर किले की जेल में रखा गया, परंतु मेजर कीटिंग ने इस शर्त पर छोड़ दिया कि वह मोवासिया नायक की गिरफ्तारी में सहयोग करेंगे।
अंग्रेजों के चंगुल से छुटने के लिये यह अवसर भीमा खोना नहीं चाहते थे, उन्होंने अंग्रेज अधिकारी की बात मान ली, हालांकि कीटिंग के समक्ष वापस नहीं लौटे और न ही किसी प्रकार की कोई सहायता की। बाद में एक बार फिर वह अंग्रेजों के समक्ष हाजिर हुए, लेकिन पुन: भागने में सफल हो गये।
कीटिंग का खानदेश के एक्टिंग कलेक्टर को पत्र
01 अप्रैल, 1858 को कीटिंग ने खानदेश के एक्टिंग कलेक्टर को लिखे पत्र में असीरगढ़ के पश्चिम में सहयोग मांगते हुए स्वीकार किया है कि भीमा नायक के पास बड़ी सेना है। भील क्रांतिकारी उसके साथ बिना वेतन लिये तैनात हैं।
भीमा नायक को गोई घाटी में ठहरने के लिये मौका नहीं मिलना चाहिये और लेहेनसन और हाल को उनकी मौजूदा स्थिति से नहीं हटाया जाना चाहिये।
खरगोन कमाविजदार ने भीमा का पीछा करते हुए खरगोन के दक्षिण की पहाड़ी में एक विशाल सेना के साथ प्रवेश किया है और उसने (कीटिेंग) अपनी पश्चिमी सीमा पर दो पुलिस चौकियाँ स्थापित कर दी है।
तात्या टोपे के संपर्क में भीमा
तात्याँ टोपे निमाड़ से होकर गुजर रहे थे तो कुछ अंग्रेज सैनिक वहाँ से महू को भेज दिये गए, जिसके बाद अवसर देख भीमा नायक खिड़की के से 27 नवम्बर, 1858 को भाग निकले। इसी दौरान तात्या टोपे से उनकी भेंट हुई थी।
आत्म-समर्पण से इनकार
1864 तक भीमा की क्रांतिकारी गतिविधियाँ जारी रहीं। भीमा को आत्मसमर्पण करने के लिये तीन मौके दिये गये, परंतु उन्होंने समर्पण नहीं किया। 1864 से 1867 तक उन्होंने कोई आंदोलन नहीं किया, जबकि अंग्रेज पुलिस उन्हें पकड़ने के लिये लगी रही, लेकिन कामयाबी नहीं मिली।
बंदी बनाये गये रिश्तेदार
भीमा को पकड़ने में असफल अंग्रेज उनके अनेक रिश्तेदारों को बंदी बना लिये। पहाड़ों पर व जंगलों में अंग्रेजी पुलिस तैनात की गयी। 1866-67 के ठण्ड के मौसम तक भीमा को पकड़ने का सघन अभियान चलता रहा, लेकिन सफलता नहीं मिली।
मुखबिरी के शिकार हुए भीमा
02 अप्रैल, 1867 को अंग्रेज पुलिस ने मुखबिरी से पता किया कि बालकुआ से तीन मील दूर घने जंगल में एक झोपड़ी में भीमा हैं, मौके से चार अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें दबोच लिया। उन्होंने भागने की कोशिश की, लेकिन कुछ दूर पत्थर से टकराकर गिर गये और बन्दी बना लिये गये।
कालापानी की सजा
1857 स्वतंत्रता संग्राम के इस क्रांतिकारी भीमा नायक को कालेपानी की सजा दी गयी। उन्हें अंडमान-निकोबार की जेल में रखा गया। जेल में ही उनका निधन 29 दिसम्बर, 1876 को हुआ। हालांकि उनकी मृत्यु को लेकर अभी भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। जनश्रुतियों में उनको फाँसी होने की बातें होती हैं। भीमा नायक की वास्तविक फोटो को लेकर भी अब तक कोई साक्ष्य नहीं है।
— संदर्भ पुस्तक – 1857 मध्यांचल के विस्मृत सूरमा
लेखक – डॉ. सुरेश मिश्र, प्रकाशक – राष्ट्रीय पुस्कत न्यास, भारत
जय श्री राम