राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठतम प्रचारक धनप्रकाश जी का 102 वर्ष की आयु में निधन

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जयपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठतम प्रचारक धनप्रकाश जी का शुक्रवार शाम चार बजे जयपुर में निधन हो गया. उन्होंने संघ कार्यालय भारती भवन में अंतिम सांस ली. इसी माह 10 जनवरी को धन प्रकाश जी का 103वां जन्मदिन मनाया गया था. इस दौरान संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले जी ने उनको माला पहनाकर व शॉल भेंटकर शुभकामना दी थी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इतिहास में धनप्रकाश जी ऐसे पहले प्रचारक हैं, जिन्होंने अपने जीवन के 103 बसंत देखे.

संघ कार्यालय प्रमुख सुदामा शर्मा के अनुसार धनप्रकाश स्वस्थ थे. शुक्रवार सुबह भी प्रतिदिन की तरह सुबह जल्दी उठे और अपने दैनिक कार्य सम्पन्न किए. स्नान पूजा करके दोपहर में भोजन किया था. धनप्रकाश जी का अंतिम संस्कार शनिवार सुबह नौ बजे किया जाएगा. इससे पहले उनकी पार्थिव देह भारती भवन पर दर्शनाथ रखा जाएगा.

धनप्रकाश जी देश के उन चुनिंदा प्रचारकों में से एक हैं, जिन्हें संघ के सभी सरसंघचालकों का सान्निध्य और उनके साथ काम करने का सौभाग्य मिला है. उम्र के अंतिम पड़ाव तक भी लेखन और अध्ययन में अपना समय व्यतीत करते थे.

सबसे लंबे समय तक स्वस्थ होकर जीने वाले

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इतिहास में धनप्रकाश ऐसे पहले प्रचारक हैं, जिन्होंने अपने जीवन के 103 बसंत देखे. लगातार काम, प्रवास और अपने स्वास्थ्य की उपेक्षा के कारण अधिकांश प्रचारक जीवन के आठ दशक भी पूरे नहीं कर पाते. संघ के इतिहास में कई उतार चढ़ाव के साक्षी रहे वरिष्ठ प्रचारक धनप्रकाश जी एक स्वयंसेवकत्व को चरितार्थ करते हुए अंतिम समय तक अपने दैनिक काम स्वयं करते रहे. उन्होंने कभी दूसरों को कष्ट देना उचित नहीं समझा. सुबह पांच बजे से अपनी दिनचर्या की शुरूआत करते थे, शाखा जाना, व्यायाम, प्राणायाम करना और उसके बाद स्वाध्याय करना यह उनके दैनिक कार्यों का अनिवार्य हिस्सा था. संघ कार्यालय पहुंचने वाले सभी स्वयंसेवकों से खुलकर बातचीत करना और सहज भाव से मनोविनोद कर लेना उनकी कला है.

धनप्रकाश त्यागी जी का जन्म 10 जनवरी 1918 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिला स्थित महेपुरा गांव में हुआ. 1942 में दिल्ली से संघ का प्राथमिक शिक्षा वर्ग, 1943 में प्रथम वर्ष, 1944 में द्वितीय वर्ष तथा 47 में संघ शिक्षा का तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण लिया था. केन्द्र सरकार में नौकरी त्याग कर अपना पूरा जीवन संघ को दे दिया. वर्ष 1943 में दिल्ली में विस्तारक बने. सहारनपुर नगर, अलीगढ़ नगर, अम्बाला, हिसार, गुरूग्राम, शिमला एवं होशियारपुर में संघ के विभिन्न दायित्वों को निर्वाह किया. संघ पर लगे प्रथम प्रतिबन्ध के समय धनप्रकाश जेल में भी रहे. 1965 से 1971 तक जयपुर विभाग प्रचारक के रूप में जिम्मेदारी रही. इसके बाद सेवा भारती, विद्याभारती की जिम्मेदारी भी उन पर रही. राजस्थान में भारतीय मजदूर संघ के विस्तार में धनप्रकाश जी की बड़ी भूमिका रही. कठिन चुनौतियों और प्रतिकूलताओं के बीच उन्होंने अपने जीवन का लंबा समय भामसं के काम को खड़ा करने और उसके दृढ़ीकरण में लगाया.

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