भारतीय राजनीति का अटल चेहरा:- भारतरत्न श्री अटलबिहारी वाजपेयी

भारतीय राजनीति का एक ऐसा चेहरा जो हमेशा सबका चहेता रहा। अजातशत्रु कहे या फिर सर्वदलीय पसंद चहरा। २४ दलों को साथ लेकर लंबे समय तक सरकार चलाना ही अटलजी के राजनीतिक कौशल का ऐतिहासिक प्रमाण है। अपनी कविता को राजनीति के साथ मिलाकर वे हमेशा के लिए भारतीय राजनीति में अमर हो गए। उन्होंने दिखा दिया कि कवि प्रधानमंत्री ही शांति के लिए पश्चिम तथा पूर्व दोनों दिशाओं में बस यात्रा की जोखिम उठा सकता है। अटलजी मनुष्य के जुझारूपन के कायल थे और उनका स्वयं का व्यक्तित्व कम जुझारू नहीं रहा।

इसलिए ही वे अपनी एक कविता में कहते है:-   


                  आदमी को चाहिए कि वह जूझे
                    परिस्थितियों से लड़े
                    एक स्वप्न टूटे
                     तो दूसरा गढ़े।


श्री वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में रहने वाले एक विनम्र स्कूल शिक्षक के परिवार में हुआ। श्री वाजपेयी जी अपने छात्र जीवन के दौरान पहली बार राष्ट्रवादी राजनीति में तब आये, जब उन्होंने वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन जिसने ब्रिटिश उपनिवेशवाद का अंत किया, में भाग लिया। वह राजनीति विज्ञान और विधि के छात्र थे और कॉलेज के दिनों में ही उनकी रुचि विदेशी मामलों के प्रति बढ़ी।उनकी यह रुचि वर्षों तक बनी रही एवं विभिन्न बहुपक्षीय और द्विपक्षीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने अपने इस कौशल का परिचय अपने जीवन के अंतिम दशक तक दिया।


श्री वाजपेयी जी ने अपना करियर पत्रकार के रूप में शुरू किया था और 1951 से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में कार्य करते हुए भारतीय जन संघ में शामिल हुए। इसके बाद पत्रकारिता से थोड़ा दूर जरूर हुए पर वे अपनी कविताओं से अपने विचार राष्ट्र के सामने रखते रहे। जब पहली बार संसद में बलरामपुर से चुनकर पहुंचे तो पंडित जवाहर लाल नेहरू तक को अटलजी ने अपनी ओजस्वी वाणी से प्रभावित किया। ओर यह सिलसिला अटलजी के राजनीतिक जीवन के छः दशकों तक चलता रहा। आज जहाँ राजनीति में सुचिता व ईमानदारी दिनोंदिन घटती जा रही है, ऐसे में अटलजी की कमी सबसे ज्यादा खटकती है। जहाँ अटलजी ने राजनीति में सफलता जनसेवा व आम आदमी के बीच रहकर प्राप्त की थी, वहीं वर्तमान में राजनीति धनबल व चुनावों के ही ईर्दगिर्द रह गई हैं।


निजी जीवन में प्राप्त सफलता उनके राजनीतिक कौशल और भारतीय लोकतंत्र की देन है। भारतीय राजनीति में वे एक ऐसे नेता के रूप में उभरे जो विश्व के प्रति उदारवादी सोच और लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता को महत्व देते थें। महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक समानता के समर्थक श्री वाजपेयी भारत को सभी राष्ट्रों के बीच एक दूरदर्शी, विकसित, मजबूत और समृद्ध राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ते हुए देखना चाहते थे। वह ऐसे भारत का प्रतिनिधित्व करते रहे, जिस देश की सभ्यता का इतिहास 5000 साल पुराना है और जो अगले हज़ार वर्षों में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है।


भारतीय जनमानस के बीच प्रसिद्ध अटल बिहारी वाजपेयी अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे। 13 अक्टूबर 1999 को उन्होंने लगातार दूसरी बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नई गठबंधन सरकार के प्रमुख के रूप में भारत के प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया। वे 1996 में बहुत कम समय के लिए प्रधानमंत्री बने थे। पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद वह पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जो लगातार दो बार प्रधानमंत्री बने।


भारतरत्न श्री वाजपेयी जी राजनीति के क्षेत्र में पाँच दशकों तक सक्रिय रहे। वह लोकसभा (लोगों का सदन) में नौ बार और राज्य सभा (राज्यों की सभा) में दो बार चुने गए, जो अपने आप में ही एक कीर्तिमान है। भारत के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, संसद की विभिन्न महत्वपूर्ण स्थायी समितियों के अध्यक्ष और विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने आजादी के बाद भारत की घरेलू और विदेश नीति को आकार देने में एक सक्रिय भूमिका निभाई।

उन्हें भारत के प्रति उनके निस्वार्थ समर्पण और पचास से अधिक वर्षों तक देश और समाज की सेवा करने के लिए भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न 2015 में दिया गया। अपने नाम के ही समान, अटलजी एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेता, प्रखर राजनीतिज्ञ, नि:स्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता, सशक्त वक्ता, कवि, साहित्यकार, पत्रकार और बहुआयामी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। अटलजी जनता की बातों को ध्यान से सुनते थे और उनकी आकाँक्षाओं को पूरा करने का भरपूर प्रयास करते थे। उनके कार्य राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण को दिखाते थे।


जब प्रधानमंत्री सड़क योजना शुरू हुई तो अटल जी के कारण ही गांव के लोगों को पहली बार पता चला कि पक्की सड़क भी होना इस देश में उनका अधिकार है। वहीं सर्वशिक्षा अभियान के कारण लाखों गांवों तक स्वतंत्रता के बाद पहली बार प्राथमिक शिक्षा को संवैधानिक अधिकार की तरह आम जनता ने जाना व नयी पीढ़ी का बड़ा हिस्सा प्राथमिक शिक्षा से वंचित होने से बची।


            भारतीय संसदीय इतिहास में बहुत कम ऐसे सांसद रहे हैं, जिन्हें दोनों सदनों में ध्यान से सुना जाता था। देश की तीन-तीन पीढ़ियों ने बढ़े होते हुए अटलजी के भाषणों से राजनीति व राष्ट्र को जाना। इन्हीं भाषणों व जनमानस के नेतृत्व के कारण वर्तमान भाजपा सत्ता के शिखर पर है। भारत के गांव-गांव में आज भी अटलजी को हर नौजवान, स्त्री-पुरूष उनके ईमानदार राजनीतिक व्यक्तित्व के कारण प्रेम से याद करती हैं। भारत को सड़कों के माध्यम से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज योजना व प्रधानमंत्री सड़क योजना अभूतपूर्व कार्य रहे हैं। सर्वशिक्षा अभियान भी अटलजी की सरकार की दूरदर्शी का ही शिक्षा के क्षेत्र में कदम रहा है। पोखरण परीक्षण का निर्णय हो या फिर कारगिल विजय उनके अदम्य साहस के ही उदाहरण है। अटलजी ने ही भारत के महान सैनिकों को शहीद होने के बाद उनकी अंतिम यात्रा से जुड़े सभी सम्मान की शुरुआत की।

हिन्दी व साहित्य के प्रति भी अटलजी का गहरा संबंध था। उन्होंने ने विदेश मंत्री रहते हुए ४ अक्टूबर १९७७ को संयुक्त राष्ट्रसंघ के मंच से अपना ऐतिहासिक भाषण दिया। भारत की वाचिक परम्परा के विलक्षण कवि रहे अटलजी ने संसद व अन्य राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों से  हिन्दी में ही एक से बढ़कर एक ऐतिहासिक भाषण दिए। वो फिर वीर सावरकर पर हो या संसद में एक वोट से गिरती अपनी सरकार का भाषण या फिर १९८० में बंबई मे भाजपा के गठन के समय दिया ओजस्वी भाषण, सभी भाषण भारतीय जनमानस के दिलोदिमाग पर आज तक अंकित है।


अटलजी का राजनेता रूप बड़ा था या साहित्यकार रूप यह चर्चा शौधार्थीयो के लिए अच्छा विषय है, पर उन्होंने इन दोनों क्षेत्रों में समन्वय करके अपने व्यक्तित्व का निर्माण किया था। वे हमेशा अपनी कविताओ से अपने अंदर के राजनेता को समय समय पर माँजते रहे और राजनीति की काली कोठरी मे जीवनपर्यंत बेदाग रहे। अटलजी ने वर्षों पहले कहाँ था कि: “ आर्यश्रेष्ठ चाणक्य की संकल्पशक्ति लेकर, सम्राट चन्द्रगुप्त की विजिगीषु वृत्ति अपनाकर, महात्मा बुद्ध की करूणा, तीर्थंकर महावीर का तप और गुरु गोविंदसिंहजी का तेज हृदय में धारणकर हमें अंतर-बाह्य संकटों पर विजय प्राप्त करना है और भारत को शक्तिशाली तथा समृद्ध बनाकर विश्व गुरु के रूप में सम्मान का स्थान दिलाना है।”
इस सपने को पूरा करने के लिए जिस उल्लासित ज्वार व बल की जरूरत होती है वह उनके ही शब्दों में:
        
            एक हाथ में सृजन,
            दूसरे में हम प्रलय लिए चलते हैं,
            सभी कीर्ति ज्वाला में जलते
            हम अँधियारे में जलते हैं।
            आँखों में वैभव के सपने,
            पग में तूफानों की गति हो,
            राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता,
            आये जिस-जिसकी हिम्मत हो।

आज जब राजनीति में सिर्फ़ आरोप प्रत्यारोप ही रह गया है और जननेता गीनेचुने ही बचे हैं तो अटलजी का जीवन चरित्र युवाओं के लिए आदर्श है। राजनीति में रूचि रखने वाले युवाओं को अटलजी के भाषण सुनना चाहिए तथा उनके बारे में पढ़ना चाहिए। वहीं वर्तमान में सभी राजनीतिक दलों को भी कुछ अटलजी की राजनीति से सिखना चाहिए। सिर्फ़ उनके जन्मदिन को सुशासन दिवस घोषित करने से सुशासन नहीं आ सकता है। स्वराज व सुशासन के लिए अटलजी के आदर्शों को भी कार्यप्रणाली में जीवित रखना होगा। तब कहीं अटलजी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि व भावना मानी जाएगी

श्री भूपेन्द्र भारतीय


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