
अमेरिकी सत्ता सम्हालने के बाद ट्रंप का “टैरिफ टेरर” चर्चा मे है ।
ट्रंप एक दक्षिणपंथी विचारधारा के समर्थक और अमेरिकी हितों का ध्यान रखने वाले एक राष्ट्रभक्त व्यक्ति हैं। एक नागरिक होने के नाते उनकी सोच बहुत सोची समझी और एक रेखीय दिखाई पड़ती है ।
ट्रम्प की टेरीफ़ नीति को ले कर कुछ विद्वान भारत और अमेरिका को आमने सामने खड़ा देखने का प्रयास कर रहे हैं । मगर वास्तविकता तो यह लगती है कि इस मुद्दे पर दोनों राष्ट्राध्यक्ष नूराकुश्ती खेलकर एक बहुत बड़ी समस्या के समाधान को अमलीजामा पहना रहे है।
यूरोप को प्रथमदृष्टया यह बात भले ही सामान्य लग रही हो मगर अब यूरोप को बहुत कुछ सोचना ही पड़ेगा। बहुत सी नीतियां,बहुत से कानून और अपनी राज्य व्यवस्था को नए सिरे से अवलोकन कर तदनुसार नीतियां कानून और व्यवस्था बनानी पड़ेगी। क्यों कि अमेरिकन पैसों के बल पर नाटो की छतरी की आड़ में यूरोप की हवाई उड़ान लगभग बंद होने वाली है। अमेरिका के खैरात और रूस की धौंस के बल पर झटका जाने वाला सारा माल अब प्रतिबंधित कर दिया गया है।
वास्तव मे घोर पूंजीवादी अमेरिका की आड़, मदद और शह से यूरोप में वामपंथ अपनी जड़े जमा चुका था। छोटी छोटी “सिटी कंट्री” भी जिनका अपना कुछ भी नहीं वे भी अपने नागरिकों को बहुत कुछ फ्री की सुविधाएं, भत्ते और पेंशन दे रहे थे जिनका कोई औचित्य नहीं है। वहां पर बेरोजगारी भत्ता, यदि नौकरी से निकल दिए गए हो तो आपकी आखिरी सेलरी का 90% तक का भुगतान सरकार करती थी।
अवैध अप्रवासियों को हर महीने एक निश्चित धन राशि और उनके रहने खाने की व्यवस्था के साथ साथ उनके बच्चों की पढ़ाई लिखाई आदि का खर्च भी इन्हीं बेकार की सरकारी योजनाओं का हिस्सा बनकर रह गई थी। इन कारणों से यूरोप में अप्रवासियों की बाढ़ आ चुकी है और यूरोप का जनसांख्यिकी स्वरूप इस्लामिक होते जा रहा है। फ्रांस, ब्रिटेन इसके उदाहरण के रूप में देखे जा सकते है। स्पष्ट है कि अमेरिका का सबसे बड़ा शत्रु इस्लामिक जगत उस के पैसों से अपरोक्ष रूप से पल्लवित होता रहा और अपनी जड़े गहरी करता गया और अमेरिकन लोगो को कुछ सोचने समझने की जगह भी नहीं बचने दी गई।
यूरोप पूंजीवादी व्यवस्था के होते हुए भी साम्यवाद की जकड़ में जकड़ चुका था। अब जबकि ट्रंप ने सारे यूरोप को उसके हाल पर छोड़ने की ठान ली तो यूरोप की सारी खैराती योजनाएं एकदम से बंद होने लगी। सारे भत्ते सुविधाएं और लोकलुभावनी योजनाएं बंद हो रही है।
अमेरिकी सरकार ने लगभग यही कहा कि खुद कमाओ और खुद खाओ । तुम भी जियो और हमे भी जीने दो।
ट्रम्प द्वारा लिए गए निर्णयों से सीधे प्रभावित होंगे अवैध मुस्लिम आप्रवासी और इसी विश्वव्यापी समस्या से भारत भी दो चार हो रहा है । संभवतः भारत ने अमेरिका के साथ रूस को भी यह अच्छे से समझा दिया है कि इस्लामिक जगत के साथ विश्व का सबसे बड़ा खतरा चीन है और वह इन इस्लामिक राष्ट्रों का सबसे बड़ा पैरोकार बनकर उभरने का प्रयास करेगा।
हाँलकी चीन भी भीतर से खोखला हो चुका है, उसका सिर्फ ऊपरी आवरण ही सशक्त होने का आभास दिलाता रहता हे असल में उसके अंदर का गुदा सड़ चुका है। वह एक स्टीरॉयड लेने वाले पहलवान की भांति बनकर रह गया है। इस वैश्विक “गेम प्लान” से सबसे ज्यादा फायदा भी भारत को ही होगा। अब यूरोप भारत की गोद में बैठने के लिए मचलेगा।
साफ है की ट्रम्प का टैरिफ वार दरअसल अवैध इस्लामिक आप्रवासियों की समस्या के लिए कड़वी दवाई है जिसका भारत को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष लाभ ही होने जा रहा है ।
श्री योगेश जोशी (अधिवक्ता)