भारतीय संविधान दिवस — क्या सीखें, क्या सिखाएँ?

हर वर्ष 26 नवंबर को मनाया जाने वाला भारतीय संविधान दिवस, न केवल एक ऐतिहासिक स्मरण है, बल्कि लोकतंत्र के निर्मल नभ की जीवंतता व सक्रियता को समझने का अवसर भी है।

इस दिन हमें संविधान के मूल सिद्धांतों—समता, न्याय, स्वाधीनता, बंधुता और धर्मनिरपेक्षता को गहराई से जानना चाहिए और उन्हें अपने दैनिक जीवन में लागू करने का संकल्प लेना चाहिए।

पहला, संविधान का महत्व समझना आवश्यक है। यह दस्तावेज़ न केवल सरकार की संरचना तय करता है, बल्कि नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को भी परिभाषित करता है। इसलिए विद्यालयों में संविधान के प्रमुख अनुच्छेद, जैसे मौलिक अधिकार, निर्देशात्मक सिद्धांत और राज्य के नीति‑निर्देशक तत्व, को सरल भाषा में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

दूसरा, संविधान के निर्माण की प्रक्रिया को सिखाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। संविधान सभा के 2 जुलाई 1946 से 26 जनवरी 1950 तक के सफर को नाटक या कहानी‑रूप में बताने से छात्रों में इतिहास‑बोध और राष्ट्रीय गर्व विकसित होता है।

तीसरा, संविधान के आदर्शों को व्यवहार में लाने के लिए व्यावहारिक कार्यशालाएँ आयोजित की जा सकती हैं। उदाहरण के लिये, मतदान के अधिकार का महत्व समझाने हेतु मॉक इलेक्शन, सामाजिक न्याय के मुद्दों पर चर्चा‑सत्र और पर्यावरण संरक्षण को मौलिक कर्तव्य के रूप में प्रस्तुत करना।

अंत में, संविधान दिवस को केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि निरंतर सीखने‑सिखाने का मंत्र और मंच बनाना चाहिए। जब हम अपने अधिकारों के साथ अपने कर्तव्यों को भी समझेंगे, तभी लोकतंत्र की बुनियाद मजबूत होगी और भारत एक समृद्ध, न्यायपूर्ण और समावेशी राष्ट्र बन सकेगा।


आज के दिन केवल बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर की स्टेच्यू पर माल्यार्पण करना पर्याप्त नहीं है। उनकी जय बोलना भी पर्याप्त नहीं है। बल्कि उनके जीवन संघर्ष से कुछ सीखने की जरूरत है।

डॉ अंबेडकर ताउम्र विद्यार्थी रहे हैं, इस पर भी उनके अनुयायियों को गंभीरता से विचार करना चाहिए। ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो’ उनका ऐसा चिंतन और दर्शन है, जिस पर यदि उनके अनुयाई एक प्रतिशत भी चले और अनुपालन करें तो आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक स्थिति उतरोतर सुदृढ़ हो सकती है।


सरकार और धार्मिक ग्रंथो की छिछालेदर और धर्म परिवर्तन करने की बजाय आधुनिक सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य और उन्नति के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की
पूर्वजोर चेष्टा करनी चाहिए।


आशा की जाती है कि संविधान दिवस हम सब 140 करोड़ भारतवासियों के जीवन में एक नया उजाला लेकर आएगा और हम सब संविधान की रूप-रेखा “संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक समाजवादी पंथनिरपेक्ष गणराज्य की उन्नति और श्रेष्ठता की ओर चार कदम आगे बढ़ेंगे।

लेखक प्राचार्य केंद्रीय विद्यालय संगठन से सेवानिवृत है तथा वर्तमान में मध्य प्रदेश शासन में पाठ्य पुस्तक देखरेख एवं निर्माण समिति के स्थाई सदस्य हैं तथा विद्या भारती मध्य क्षेत्र मध्यप्रदेश के सदस्य हैं।

डॉ बालाराम परमार ‘हॅंसमुख’


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