
धर्म और मानवता की रक्षा के लिये अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सिख पंथ के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुरजी के शहीदी दिवस पर सादर नमन् करते हुये बारम्बार प्रणाम।
गुरु तेग बहादुर सिंह का जन्म १६ अप्रैल १६२१ को पिंड पिंडर, पंजाब में हुआ। वे गुरु हरि राय जी के पुत्र और गुरु हरि सिंह जी के छोटे भाई थे। बचपन से ही धर्म, शौर्य और सेवा के गुणों से परिपूर्ण, उन्होंने अपने जीवन को जन‑जन तक पहुँचाने वाले प्रकाश के रूप में अपनाया।
१७५७ में, जब मुगल शासक औरंगजेब ने हिन्दू धर्म के विरुद्ध अत्याचार शुरू किया, तब गुरु तेग बहादुर ने बिना डर के आवाज़ उठाई। उन्होंने कहा, “धर्म की रक्षा के लिये यदि मेरे प्राण भी चले जाएँ तो वह मेरा सौभाग्य होगा।” इस प्रकार, उन्होंने अपने शिष्यों के साथ दिल्ली के क़िले में शहादत प्राप्त की। उनका यह बलिदान न केवल सिख धर्म के लिए, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए एक अमूल्य उपहार है।
उनकी शिक्षाएँ
- धर्म की रक्षा : सभी धर्मों का सम्मान और उनका सह-अस्तित्व।
- सेवा भाव : हर इंसान की सेवा में ही असली पूजा है।
- साहस और निष्ठा : कठिनाइयों में भी सत्य के मार्ग पर चलना।
संदेश
आज जब हम अपने‑अपने जीवन में व्यस्त हैं, गुरु तेग बहादुर की शहादत हमें याद दिलाती है कि सच्ची सम्पत्ति हमारे विचारों और कर्मों में है, न कि धन‑सम्पत्ति में। आइए, हम भी उनके आदर्शों को अपनाकर:
- दूसरों की मदद के लिये आगे आएँ,
- धर्म और न्याय के लिये आवाज़ उठाएँ,
- अपने परिवार और समाज के प्रति प्रेम और सम्मान रखें।
डॉ बालाराम परमार ‘हॅंसमुख’