भारत के उत्थान के लिए “भारत प्रथम” के सिद्धांत पर चलना अनिवार्य

VSK Bharat

गुवाहाटी, 19 नवम्बर 2025।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने असम और सम्पूर्ण पूर्वोत्तर के युवाओं से अपील की कि वे संघ के बारे में किसी प्रकार की पूर्वाग्रही धारणाओं या प्रायोजित प्रचार के आधार पर राय न बनाएं। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी को संघ को नज़दीक से देखना और समझना चाहिए।

बुधवार को शहर के बरबाड़ी स्थित सुदर्शनालय में आयोजित युवा नेतृत्व सम्मेलन में विभिन्न क्षेत्रों से आए सौ से अधिक युवा प्रतिनिधियों के समक्ष उन्होंने संघ के सिद्धांतों, आदर्शों और कार्यपद्धति पर विस्तार से रखा और संगठन के बारे में चल रही बहसों पर भी प्रकाश डाला।

दो दिवसीय असम प्रवास के तहत कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आज संघ एक व्यापक चर्चा का विषय बन चुका है। “लेकिन चर्चाएँ तथ्यों पर आधारित हों।”

अंतरराष्ट्रीय मंचों और कई डिजिटल माध्यमों पर उपलब्ध आरएसएस संबंधी जानकारी का 50 प्रतिशत हिस्सा या तो गलत होता है या अधूरा। “विभिन्न मीडिया संस्थानों द्वारा संघ के खिलाफ सुनियोजित दुष्प्रचार भी चलाया जाता है।”

कार्यक्रम की शुरुआत गायक शरत राग द्वारा प्रस्तुत एक देशभक्ति गीत से हुई। आयोजन को पूरे पूर्वोत्तर के युवाओं के लिए संघ को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है।

सरसंघचालक जी ने संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की दृष्टि का उल्लेख करते हुए बताया कि संघ का मूल उद्देश्य भारत को ‘विश्वगुरु’ बनाना है। राष्ट्र तभी उठता है, जब समाज उठता है। और प्रगतिशील भारत के लिए एक संगठित, गुणवान और गुणवत्तापूर्ण समाज का निर्माण आवश्यक है। उन्होंने विकसित देशों के इतिहास का अध्ययन करने की आवश्यकता बताई और कहा कि उन देशों ने पहली सौ वर्षों की यात्रा में समाज को एकजुट और मजबूत बनाने पर विशेष ध्यान दिया। “भारतीय समाज को भी इसी प्रकार विकसित होना होगा।”

संघ के शताब्दी वर्ष पर घोषित पांच सामाजिक परिवर्तन सिद्धांत (पंच परिवर्तन) इसी भावना को व्यक्त करते हैं। सरसंघचालक जी ने कहा कि भाषा, क्षेत्र और विचारों की विविधताओं का सम्मान करना भारत की प्राचीन परंपरा है। “दुनिया के कई देशों में यह मानसिकता नहीं मिलती।”

भारत की परंपरा कहती है – “मेरा मार्ग सही है, लेकिन तुम्हारी परिस्थिति में तुम्हारा मार्ग भी सही हो सकता है।” उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जो लोग भारत से अलग हुए, उनकी विविधताएँ समाप्त होती गईं, जैसे पाकिस्तान में पंजाबी और सिंधी समाज अब उर्दू अपनाने पर विवश है। उन्होंने कहा कि विविधता का सम्मान करने वाला समाज हिन्दू समाज ही है और ऐसा समाज निर्मित करना ही संघ का प्रमुख उद्देश्य है। “जब तक भारतीय समाज संगठित और गुणयुक्त नहीं होगा, देश की नियति नहीं बदलेगी।”

उन्होंने गुरु नानक और श्रीमंत शंकरदेव का स्मरण करते हुए कहा कि इन महान संतों ने विविधता का सम्मान किया और समाज को एकता का संदेश दिया।

मोहन भागवत जी ने कहा कि आरएसएस एक आदर्श मनुष्य-निर्माण पद्धति है। संगठन का उद्देश्य जमीनी स्तर पर ग़ैर राजनीतिक सामाजिक नेतृत्व तैयार करना है। व्यक्ति के निर्माण से समाज बदलता है और समाज बदलता है तो व्यवस्था स्वयं बदल जाती है। उन्होंने युवाओं को आमंत्रित किया कि वे संघ की शाखाओं में प्रत्यक्ष अनुभव लें कि वहां किस प्रकार व्यक्तित्व का निर्माण, चरित्र का विकास और गुणों का संवर्धन किया जाता है।

उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार का अंत कानून से नहीं होगा, बल्कि चरित्र निर्माण से होगा। इसी प्रकार, गौ-संरक्षण केवल कानूनी प्रावधानों से संभव नहीं है; इसके लिए समाज में जागरूकता भी आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि भारत के उत्थान के लिए “भारत प्रथम” के सिद्धांत पर चलना अनिवार्य है। भारत को किसी भी विदेशी देश के प्रति न तो पक्षपाती होना चाहिए और न ही विरोधी। अमेरिका और चीन अपने-अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर चलते हैं, और उनकी आपसी प्रतिस्पर्धा भी इन्हीं हितों का परिणाम है, चाहे वे वैश्विक भाईचारे की कितनी ही बातें क्यों न करें। हमारी नीति बिल्कुल स्पष्ट होनी चाहिए – भारत की विदेश नीति पूर्णतः ‘प्रो-भारत’ होनी चाहिए, न कि अमेरिका या चीन के पक्ष या विपक्ष में। जब हम अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हैं, तो वैश्विक कल्याण अपने-आप सुनिश्चित होता है। एक मजबूत और आत्मनिर्भर भारत किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम होगा और भविष्य में विश्व में उत्पन्न विभिन्न संघर्षों को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए एक अधिक सौहार्दपूर्ण वैश्विक व्यवस्था स्थापित कर सकेगा।

युवाओं से आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि वे अपनी रुचि, समय, क्षमता और अवसर के अनुसार संघ की गतिविधियों से जुड़ें। संघ समाज का अविभाज्य हिस्सा है और पूर्वोत्तर भारत में इसका आधार लगातार मजबूत होता जा रहा है।


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