राष्ट्रीय श्रम के साधक दत्तोपंत ठेंगड़ी

डॉ. प्रवीण दाताराम गुगनानी

एक समय था जब मजदूर संगठनों की बात पूंजीपति विरोध से ही प्रारंभ होती थी।

रोजगार देने वाले व रोजगार प्राप्त करने वालों में सौहाद्र, समन्वय व संतोष की न तो कामना की जाये और न ही आशा की जाये, यही कार्ल मार्क्स का संदेश था। कम्युनिस्टों के नारे थे ‘‘चाहे जो मजबूरी हो, माँग हमारी पूरी हों।” यहीं से वामपंथी मजदूर संगठनों व भारतीय मजदूर संगठन मे वैचारिक विभेद प्रारंभ होता है। एक समय विशुद्ध कम्युनिस्ट चीन में ठेंगड़ी जी के मजदूरों को दिये गए उद्बोधन का प्रसारण चीनी रेडियो से हुआ था। चीन जैसे बंद खिड़की वाले वामपंथी देश मे दत्तोपंत जी को इतना महत्व दिया जाना कौतूहल व आश्चर्य का विषय बना था।

मालिक, मजदूर व राष्ट्र तीनों दृष्टि की कृतित्व-शैली यदि किसी में दिखी तो वे दत्तोपंत ठेंगड़ी थे। ठेंगड़ी जी का नारा था – ‘‘देश के हित में करेंगे काम, काम के लेंगे पूरे दाम।’’


कार्ल मार्क्स व दत्तोपंत जी में यही मूल अंतर था। मार्क्स की मजदूर नीति शासकीय व आर्थिक स्वीकार्यता की धूरी पर घूमती थी, जबकि ठेंगड़ी जी की नीति, नैतिक व सामाजिक स्वीकार्यता के आधार पर कार्यरत रहती थी। कार्ल मार्क्स पर उन्हीं के देश जर्मनी के ब्यौर्न और सीमोन अक्स्तीनात बंधुओं ने एक पुस्तक “मार्क्स उन्ट एंजेल्स इन्टीम” प्रकाशित की है। इसमें मार्क्स के कई सारे ऐसे कार्यों, संदर्भों, उद्धरणों व भाषणों को प्रकाशित किया है, जिनसे मार्क्स की छवि ही बदल जाती है। इससे यह धारणा सुदृढ़ होती है कि कम्युनिस्ट सदा से ही बाहर कुछ और व भीतर कुछ और रहते हैं।


“दास केपिटल” के 150 वें वर्ष पर प्रकाशित इस पुस्तक को हाथों-हाथ लिया जाना मार्क्स के वैचारिक ह्रास का बड़ा परिचायक है। मार्क्स व एंजिल्स के वैचारिक ढकोसले को उघाड़ती यह पुस्तक सम्पूर्ण मार्क्सवादी विचार पर एक बड़ा प्रश्न उठाती है।


मार्क्स के सौ वर्ष बाद जन्मे दत्तोपंतजी ठेंगड़ी अपने व्यक्तित्व व कृतित्व से सम्पूर्ण मार्क्सवाद को अपने व्यक्तिवाद से नहीं, अपितु भारतीय दर्शन से खारिज कर करते हैं। यही मूल अंतर है मार्क्सवाद मे व ठेंगड़ी जी के राष्ट्रत्व में। यही कारण है कि भारत वर्ष में ही नहीं, बल्कि विश्व भर के मजदूर-किसान और श्रमिक वर्ग में दत्तोपंत जी ठेंगड़ी जी का नाम अत्यंत आदर और श्रद्धा के साथ लिया जाता है। भारत में मजदूर संगठन और मजदूर राजनीति के अत्यंत महत्वपूर्ण और संवेदनशील तत्व को पहलेपहल दत्तोपंत जी ठेंगडी ने ही समझा और आत्मसात किया था।


मजदूरों से बात करते-उनकी समस्याओं को सुनते और संगठन गढ़ते-करते समय जैसे वे आत्म विभोर ही नहीं होतें थे वरन सामनें वाले व्यक्ति या समूह की आत्मा में बस जाते थे।

दत्तोपंत जी कानून की शिक्षा प्राप्त कर वकील बनें, किन्तु वकालत उन्हें रास न आई और वे आरएसएस के प्रचारक रूप में कार्य करने लगे। प्रचारक के तपस्वी कार्य पर निकलनें की प्रेरणा के मूल में श्री गुरुजी गोलवलकर का सान्निध्य और उनकें साथ किये प्रवास ही रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मूल विचारों से प्रेरित दत्तोपंत जी 1942 से 1945 तक केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक के दायित्व को निर्वहन कर, 1945 से सन 1948 तक बंगाल में प्रांत प्रचारक के दायित्व को संभालें रहे।

1949 में श्री गुरूजी ने ठेंगड़ीजी को मजदूर क्षेत्र का संगठन और नेतृत्व करने का आदेश दिया। इसके बाद तो जैसे दत्तोपंत जी का जीवन किसान व मजदूर क्षेत्र की ही पूंजी बन गया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सृजनात्मक कार्यो के लिए एक विस्तृत पृष्ठभूमि तैयार करते हुए उन्होंने भारतीय किसान संघ, सामाजिक समरसता मंच, सर्व पंथ समादर मंच, स्वदेशी जागरण मंच आदि कई राष्ट्रवादी और महात्वाकांक्षी संगठनों की स्थापना की। ठेंगड़ी जी ने संस्कार भारती, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद, भारतीय विचार केंद्र, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत आदि संगठनों की स्थापना में सूत्रधार की भूमिका का निर्वहन किया था।

अपने पचास वर्षीय कार्य जीवन में ठेंगड़ी जी से इस देश का शायद ही कोई मजदूर क्षेत्र और संगठन अछूता रहा होगा।

देश के सभी मजदूर संगठन और इनसें जुड़े लोगों को दत्तोपंत जी में अपना स्वाभाविक नेतृत्व और विश्वस्त मुखिया का आभास और विश्वास मिलता था। दलित संघ, रेल्वे कर्मचारी संघ, कृषि, शैक्षणिक, साहित्यिक आदि विविध क्षेत्रों के संगठनों को उनके सक्रिय और वैचारिक मार्गदर्शन का लाभ मिला। प्रचंड वाणी, तीव्र प्रत्युत्पन्न्मति, तेज किन्तु संवेदनशील मष्तिष्क के धनी दत्तोपंत जी ने अपनें जीवन में मजदूरों-किसानों के संगठन और उनके हितों को अपना ध्येय मान सादा जीवन जिया व मृत्यु पर्यंत सक्रिय रहे। तीव्र मेघा एवं संज्ञेय बुद्धि के धनी ठेंगड़ी जी ने अपने जीवन काल में 26 हिंदी, 12 अंग्रेजी और 2 मराठी पुस्तकें  लिखी।

इनमें से “राष्ट्र” और “ध्येय पथ पर किसान” नामक किताबें मजदूर वर्ग और कार्यकर्ताओं में प्रकाश स्तम्भ के रूप में पढ़ी जाती हैं ठेंगड़ी जी संघ के विराट संसार में जैसे एक घुमते-विचरते धूमकेतु थे। हिंदुस्तान समाचार के आप संगठन मंत्री रहे। 1955 से 1959 तक मध्यप्रदेश तथा दक्षिण में भारतीय जनसंघ की स्थापना और जगह-जगह पर जनसंघ के विस्तार का कार्य भी किया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्थापक सदस्य रहे और भारतीय बौद्ध महासभा, मध्य प्रदेश शेडयूल कास्ट फेडरेशन के कार्यों की सतत निगरानी करते रहे। 

इन सभी कार्यों को करते हुए दत्तोपंत जी ने 23 जुलाई 1955 को भारतीय मजदूर संघ का स्थापना यज्ञ पूर्ण किया। आज भारतीय मजदूर संघ एक करोड़ से अधिक सदस्यों एक विराट संगठन है।

1967 में उन्होने भारतीय श्रम अन्वेषण केन्द्र की स्थापना कराई।  भारतीय संसद में 12 वर्षों तक राज्यसभा के सदस्य रहते हुए भारतीय मजदूर संघ का ध्वज उठाये दत्तोपंत जी ने अनेकों देशों की यात्राएं की थी। पुरे विश्व में मजदूर संगठनों के कार्यक्रमों में इन्हें बुलाया जाता रहा। विश्व के सभी छोटे बड़े देशों सहित चीन और अमेरिका के मजदूर संगठनों के कार्यों और पद्धतियों में ठेंगड़ी जी ने अपनी छाप छोड़ी थी।


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