
वर्तमान भारत को संपूर्ण विश्व एक महाशक्ति के रूप में देख रहा है। यह राष्ट्र प्राचीन समय से ही परम वैभव पर था और निश्चित आगे भी रहेगा। बीच के कुछ कालखंड में देश को तोड़ने वाली
नकारात्मक ताकते इसे कमजोर करने का साहस जरुर करती रही लेकिन असंख्य लोगों का तप,बलिदान से आज भारतराष्ट्र ऊंचाई को छू रहा,अनेक संघर्ष हुए,यातनाएं सही किंतु इस पुण्यभूमि पर जिसने जन्म लिया कभी उसने अपनी मातृभूमि पर आंच नहीं आने दी इस भूमि के ऋण को फिर चाहे अपने प्राण देकर ही क्यों न अदा किया हो। सदैव इस भूमि की गाथा गौरव के इतिहास से लिखी गई है। कुछ वर्षों का मुगलकाल व ब्रिटिश शासन ने जरूर यहां की संस्कृति,परंपरा,धर्म पर आघात किया फिर भी यहां का वैभवशाली इतिहास कम नही हुआ। युगों-युगों से चली आ रही भारतीय परंपरा आज भी जीवित है,जबकि विश्व के अनेक देश कुछ आघात से ही लुप्त हो चुके।
दुनिया के इतिहास में कुछ महत्वपूर्ण तारीख ऐसी होती है जो हमे गर्व का अनुभव करवाती सदैव के लिए वे स्मृति में रह जाती है। ऐसा ही एक दिन और तारीख 11 सितंबर 1893 है जो हम भारतीयों के लिए गौरवांवित तथा अनंत समय तक यह गर्व करवाती रहेगी। किंतु जहां एक ओर इस दिन को मानवता के कल्याण के लिए देखा जाता है। वहीं दूसरी ओर 2001 में मानवता को तार-तार करने वाली जिहादी मानसिकता की घटना भी हुई सयोंगवंश दोनों घटना एक ही देश “अमेरिका” में घटित हुई। जहां भारत के युवा संन्यासी ने संपूर्ण विश्व के समक्ष मानव जाति के कल्याण की बात कही,वही आज से 25 वर्षो पूर्व अलकायदा से जुड़े 19
आतंकवादियों ने चार अमेरिका यात्री विमान का अपहरण उसे आत्मघाती हमलों में उपयोग किया। जिसमें करीब तीन हजार बेकसूर आम लोग मारे गए थे। दो विमान अमेरिका के न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से टकराया और दोनों टावर ढ़ह गए,तीसरा विमान पेटांगन से और चौथा विमान पेंसिल्वेनिया में एक मैदान पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस दिन को अमेरिका में राष्ट्रीय सेवा और स्मरण दिवस मनाया जाता है। जबकि इसी तारीख को अखंड भारत के युवा सन्यासी ने अमेरिका के शिकागों शहर में आज से 132 वर्ष पूर्व पूरे विश्व के विद्वानों के समक्ष दो शब्दों में ही सभी को अपना बना लिया।
जब भारत के युवा संन्यासी स्वामी विवेकानंद ने भारतभूमि व भारत के दर्शन को विश्व के सम्मुख प्रस्तुत किया उपस्थित समस्त महानुभावों का मस्तिष्क एवं आंखें खुली रह गई। वसुधैव कुटुम्बकम् की परिभाषा का उल्लेख करते हुए उन्होंने संपूर्ण मानव जाति के कल्याण का आह्वान किया, उन्होंने न केवल अपने हिंदू धर्म के बारे में कहा,बल्कि जगत के समस्त धर्म के विषय में भी कहा,जो उन्होंने कहा वे केवल शब्दावली नहीं थी उन्होंने सत्य का साक्षात्कार किया,जिसे उन्होंने अपने भाषण में व्यक्त किया था। यही कारण था कि उनके शब्दों ने श्रोताओं पर अभूतपूर्व प्रभाव डाला। उनके भाषण का प्रभाव विद्युत की तरह रातों-रात चारों ओर प्रसिद्ध हो गया। सभा हॉल में बैठा विश्व का प्रत्येक व्यक्ति इतिहास का साक्षी बन गया।दुनिया के सभी धर्मों को एक साथ एकत्र कर चर्चा करवाने का संभवतः यह सर्वप्रथम प्रयास था। विश्व के समस्त धार्मिक संघो के प्रतिनिधिगण इसमे भाग लेने के लिए आने वाले थे। इस धर्म महासभा के लिए शिकागों के एक नव निर्मित भव्य भवन को चुना गया था।जिसका नाम ‘आर्ट इंस्टीट्यूट’ था।सभा का मुख्य हाल जिसकी क्षमता चार हजार लोगों के बैठने की थी उस दिन खचाखच भरा हुआ था।
स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म संसद सभा में विचार व्यक्त करते हुए आगे कहा कि मैं उसे देश से आया हूं जिसने विश्व के समस्त दिन-दुःखी,बेसहारा,पीड़ितों को आश्रय दिया। 11 सितंबर एक स्वर्णिम दिन जब अमेरिका की धरती पर भारत के युवा संन्यासी ने प्रिय भाइयों,बहनों इन दो शब्दों के माध्यम से विश्व को अपना बना लिया इस देश की संस्कृति में वो ताकत जिसने पूरे दुनिया को जोड़ दिया। उस समय भारत का चिंतन था जो विश्व को जोड़ रहा था जिसमें मानवता की महक थी। भारत के संत का दिग्विजय,अपनी संस्कृति-संस्कार के परिचय से पूरे विश्व को अवगत करवाया। केवल 30 वर्ष उम्र में हिन्दू संन्यासी के रूप में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए ऐतिहासिक भाषण दिया। इनके भाषण की अगली सुबह को प्रकाशित न्यूयॉर्क हेराल्ड ने लिखा ‘विवेकानंद निसंदेह धर्म ससद में सबसे बड़े व्यक्ति हैं।’ उन्होंने हिंदुत्व का भाव विश्व स्तर पर स्थापित कर अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर छाप छोड़ी,भारत की संस्कृति को गौरवांवित किया।
विश्व में भारत को सही मायने में जो लोग नहीं जानते थे वह अब भारत के दर्शन के लिए लालायित थे यह प्रभाव स्वामी विवेकानंद के द्वारा विश्व के समक्ष अपनी मातृभूमि के प्रेम व अपने गुरु के बताए गए मार्ग को दर्शाता है। जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानव
कल्याण,समाज,मातृभूमि के लिए समर्पित किया आज जब भारत विश्व के केंद्र में दिख रहा विश्व में बड़ी या छोटी घटनाओं पर दुनिया की आंखें भारत पर आकर रुक जाती है। इस प्रभाव में स्वामी विवेकानंद जी का महत्वपूर्ण योगदान को हम भुला नहीं सकते उस स्थिति में जब अखंड भारत का युवा सन्यासी अपने धर्म को विश्व के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए अनेक कठिनाइयों से गुजरते हुए कई दिनों तक भूखे रहकर अपने राष्ट्र (पूर्व) से विदेशी धरती अमेरिका (पश्चिम) का सफर तय करते हुए विश्व धर्म सभा का हिस्सा बने।
भवदीय
अमित राव पवार,देवास (म.प्र.)
युवा लेखक- साहित्यकार